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सांझ होते ही आ रही संझा की आवाज

locationरतलामPublished: Sep 18, 2019 10:17:11 am

Submitted by:

Ashish Pathak

Sanjha Festival In Madhya Pradesh : अधिक समय नहीं हुआ जब गांव से लेकर शहर तक श्राद्ध पक्ष में घर की चौपाल पर संझा बनाई जाती थी। आसपास की बालिकाएं एकत्रित होकर मां पार्वती के इस रुप की पूजा करती थी व विभिन्न गीत गाती थी। अब ये प्रचलन गांव तक रह होकर गया है।

Sanjha Festival In Madhya Pradesh

Sanjha Festival In Madhya Pradesh

रतलाम। Sanjha Festival In Madhya Pradesh : अधिक समय नहीं हुआ जब गांव से लेकर शहर तक श्राद्ध पक्ष में घर की चौपाल पर संझा बनाई जाती थी। आसपास की बालिकाएं एकत्रित होकर मां पार्वती के इस रुप की पूजा करती थी व विभिन्न गीत गाती थी। अब ये प्रचलन गांव तक रह होकर गया है। श्राद्ध पक्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में शाम को गोबर से संझा बनाई जा रही है। इस दौरान संझा गीत गाए जा रहे हैं। हालांकि वर्षों पुरानी यह परम्परा अब लुप्त होने लगी है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कई स्थानों पर संझा देखी जा सकती है।
श्राद्ध पक्ष में 16 दिन तक रोज लड़कियां दिवालो पर गाय के गोबर से आकृतियां बनाती है ,जो संजा कहलाती है, संझा इन 16 दिनों तक अपने पीहर (मायके) में सखियों के साथ है, रोज नई आकृतियां, रोज शाम को आरती, रोज गीतों की गुज फिर प्रसाद के साथ समापन। इसके बाद 17 वे दिन विसर्जन किया जाता है। बालिकाएं प्रतिदिन शाम को गोबर से दीवारों पर संझा बनाकर सजावट कर पूजा कर रही है। संझा गीत और आरती के बाद यथासंभव प्रसाद बांटती है। गोबर से अलग-अलग आकार में संझा दीवारों पर बनाई जाती है। प्रतिदिन अलग-अलग शृंगार किया जाता है। उज्जैन के वरिष्ठ ज्योतिषी दयानंद शास्त्री ने रतलाम में बताया कि शाम को दीवारों संझा की प्रतिमा बनाने के पीछे पौराणिक मान्यता भी है। बताया जाता है कि यह सब माता पार्वती की आराधना के लिए किया जाता है।
ये है संझा के प्रमुख गीत

संजा जीमेल ,जुठले
जिमाऊ सारी रात

चट्टक चांदनी की रात
फुल्ला भरी है परात

एक फुल्लों टूटी गयो ने
संजा माता रुसगी

(2)

संजा बाई का लाड़ा जी
लुगाड़ो लाया जाड़ा जी
असा कई लाया दारिका
लाता गोट किनारी का

संजा बाई तो ओल पोल
लुगड़ो लाया झोल पोल..

(3)

संजा के पीछे मेंदी को झाड़, मेंदी को झाड़
एक एक पत्ती जुठी जाय, जुठी जाय
उधर से आयो मामो मामो
मामो लायो जरी की साड़ी

मामी लाइ मेथी
मेथी से तो माथो दुखे घी का घेवर भावे

(4)

अणि कुड़ा (कुआ) पे कुण कुण पोथी बाचेरे भम्मरिया
अणि कुड़ा पे चांद सूरज वीरों पोथी बांचे रे भम्मरिया
चांद सूरज भायो तो यूं के
की म्हाने झमक सी लाडी लइदो रे भम्मरिया

झमक सी लाडी ने ओढ्ता नई आवे, पेरता नी आवे
संजा ननद ने बुलई दो रे भम्मरिया

संजा ननद को ऊंचो नाक, नीचो नाक
अटलक टिकी,वटलक टिकी
मोत्यां से मांग भरई दो रे भम्मरिया।।
(5)

छोटी सी गाडी लुढ़कती जाय, लुडकती जाय
जिमें बैठ्या संजा बाई, संजा बाई

घाघरो घमकाता जाय
चुड़लो चमकता जाय

बाई जी की नथनी झोला खाय
बाईजी म्हने झुलों सिखाई दो।
(6)

संजा तो मांगे हरो हरो गोबर
कहां से लाउ भई हरो हरो गोबर

किसान घरे जऊं
व्हां से लाउं

ले भई संजा हरो हरो गोबर,
संजा तो मांगे

हरो पीला फुलड़ा
कहां से लाऊं भई
हरा पीला फुलड़ा
माली घरे जऊ

व्हां से लऊं
ले भई संजा हरा पीला फुलड़ा।

संजा तो मांगे
दूध पतासा

कहाँ से लउं भई
हलवाई घरे जाऊ

व्हां से लाउं
के भई संजा

दूध पतासा
(7)
गाड़ी नीचे जीरो बोयो
सात सहेल्यां जी,

अणि जीरा की साग बनाई
सात सहेल्यां जी

साग बनाई ने वीरा जी ने मेलि
सात साहेल्या जी

विराजी के म्हणे खाटी खाटी लागे
सात सहेल्यां जी

वाई खीर मैं भैस ने दे दी
सात सहेल्यां जी
भैस ऐ लई म्हने दुधडो दी दो
सात सहेल्यां जी

अणि दूध की खीर बनाई
सात सहेल्यां जी

खीर बनाई ने वीरा जी ने मेली
सात सहेल्यां जी

वीरा जी के म्हणे मीठी मीठी लागे
सात सहेल्यां जी ,
वीरा जी ले म्हने चुनर ओढाई
सात सहेल्यां जी

चुन्नड़ ओडी पाणी चाल्या
सात सहेल्यां जी

पाणी चाल्या काटों भाग्यो
सात सहेल्यां जी

काटो भाग्यो खून निकल्यो
सात सहेल्यां जी

खून निकल्यो चुनर से पूछ्यो
सात सहेल्यां जी
चुनर के तो धब्बा पड़ग्या
सात सहेल्यां जी

वाई चुनर में धोबी ने दी दी
सात सहेल्यां जी

धोबी इ लई म्हने धोई धोई दे दी
सात सहेल्यां जी

वाई चुनर में रंगरेज ने दे दी
सात सहेल्यां जी
रंगरेज लाइ म्हने रंगी रंगी देदी
सैट सहेल्यां जी।

(8)

काजल टिकी लो भई

काजल टिकी लो
काजल टिकी लई ने म्हारी

संजा बाई ने दो
संजा बाई को सासरो सांगा में

पदम्पधारया बड़ी अजमेर
राम थारी चाकरी गुलाम म्हाको देस
छोडो म्हाकी चाकरी
पधारो आपका देस….।

(9)

मैं गोबर ले के सड़क पे खड़ी
मुझे बतलादो संजा की गली…

अजी वई हे गली
अजी वई हे गली

जहां पीपल का पेड़ अनार की कली।
मैं फुलवा ले के सड़क पे खड़ी..
मैं प्रसाद ले के सड़क पे खड़ी..

(10)

संजा तू थारे घर जा
की थारी बाई मारेगा के कुटेगा

के डेली में डचोकेगा
के चांद गयो गुजरात

के हिरन का बड़ा बड़ा दांत
के छोरा छोरी डरपेगा
के जनावर भुसेगा
के छोरा छोरी डरपेगा।।

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