
संतोषी माता वृतः आज करें इन विधि से पूजा मिलेगा लाभ
रतलाम। उपवास और आराधना में अपार शक्ति होती है। सही विधी और पूर्ण आस्था से व्रत करने पर तुरंत लाभ मिलता है। मां संतोषी की आराधना भी ऐसे ही तुरंत फल देने वाली होती है। शुक्रवार को मां की आराधना विधि-विधान से करने पर फल मिलता है। आईये जाने कैसे करें मां की आराधना और व्रत-
पूजा और कथा
पं. दीपक शर्मा के अनुसार व्रत-पूजा के लिए माँ संतोषी के चित्र के सामने जल से भरे पात्र के ऊपर एक कटोरी में गुड और भुने हुए चने रखें। गुड-चने की मात्रा अपनी सहूलियत के अनुसार कुछ भी रख सकतें हैं, कम-ज्यादा का कोई विचार न करें। जितना बन पड़े श्रद्धा और प्रेम से प्रसन्न-मन व्रत करना चाहिए, क्यों कि माता तो भावना कि भूखी है। इस व्रत को करने वाला कथा कहते समय हाथों में गुड और भुने हुए चने रखे। सुनने वाले 'संतोषी माता की जय' मुख से बोलते जायें। सुनने वाला कोई न मिले तो दीपक जला कर उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहें। कथा पूरी होने पर आरती, भोग लगाने के समय की विनती और चालीसा का पाठ करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड और चना गौमाता को खिलावें। कलश पर रखा गुड-चना सबको प्रसाद के रूप में बाटें। कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिडकें, बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में सींच देवें।
उद्यापन
व्रत के उद्यापन में ढाई सेर खाजा, मोयमदार पुरी, चने कि सब्जी और खीर का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कथा के समय नैवेद्य रखे घी का दीपक जला संतोषी माता कि जय जय कार बोल नारियल फोड़ना चाहिए । इस दिन खटाई न खावें, खट्टी वस्तु खाने से माता का कोप होता है। इसलिए उद्यापन के दिन भोग कि किसी सामग्री में खटाई न डालें। न आप खाएं, न किसी दुसरे को खानें दें। इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें। देवर-जेठ घर कुटुंब का मिलता हो पहले उन्हें बुलावें। न मिलें तो रिश्तेदारों, ब्राह्मणों या पड़ोसियों के लड़के बुलावें। भोजन कराने के बाद उन्हें यथा-शक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे या खटाई कि कि कोई वस्तु न देवें। व्रत करने वाला कथा सुन एक समय भोजन-प्रसाद ले। इस प्रकार माता अत्यन्त प्रसन्न होंगी। दुख दरिद्रता दूर होकर चाही मुराद पूरी होगी।
सन्तोषी माता की आरती
जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता ।।
जय सन्तोषी माता....
सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो।
हीरा पन्ना दमके तन श्रृंगार लीन्हो ।।
जय सन्तोषी माता....
गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ।।
जय सन्तोषी माता....
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे।
धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे।।
जय सन्तोषी माता....
गुड़ अरु चना परम प्रिय ता में संतोष कियो।
संतोषी कहलाई भक्तन वैभव दियो।।
जय सन्तोषी माता....
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।
भक्त मंडली छाई कथा सुनत मोही।।
जय सन्तोषी माता....
मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।
बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई।।
जय सन्तोषी माता....
भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै।।
जय सन्तोषी माता....
दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए।
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिए।।
जय सन्तोषी माता....
ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो।।
जय सन्तोषी माता....
चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे।।
जय सन्तोषी माता....
सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे।।
जय सन्तोषी माता....

Published on:
11 Oct 2019 06:30 am
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