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अंतर्मुखी 5 – धर्म की राह पर चलने से होती है परमात्मा पद की प्राप्ति

व्यक्ति जब धर्म की शक्ति और उसे फल के बारे में जानता है तो उसका अनुसरण भी करता है

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Sunil Sharma

Oct 10, 2017

param pujya

Muni Pujya Sagar Maharaj

- मुनि पूज्य सागर महाराज

मानव के जीवन में सुख और दुख के आने-जाने का क्रम चलता रहता है। जब जीवन इस चक्र से छूट जाता है तो अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त कर उसके गुणों के आधार पर परमात्मा के नाम से जाना और पहचाना जाता है। मानव में गुणों का प्रवेश धर्म के माध्यम से बढ़ता है। धर्म से ही सुख और दुख की पहचान होती है। जब मानव सुखी होता है तो उसे धर्म का फल कहा जाता है। जब दुखी होता है तो उसे बुरे कर्म या अधर्म का फल कहा जाता है। मानव का स्वभाव अच्छा हो या बुरा, उसकी श्रद्धा धर्म पर ही रहती है। जब वह कोई भी और कैसा भी कार्य करने जाता है, तब अपने आराध्य अथवा परमात्मा का अवश्य स्मरण करता है। स्पष्ट है कि मानव अपनी सफलता के पीछे किसी शक्ति को आधार अवश्य मानता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उसे किसी न किसी रूप में धर्म पर विश्वास है।

व्यक्ति जब धर्म की शक्ति और उसे फल के बारे में जानता है तो उसका अनुसरण भी करता है। लेकिन वही व्यक्ति अगर धर्म के नियमों का उल्लंघन कर किसी राह पर चलता है तो उस रास्ते की नहीं, बल्कि व्यक्ति की हानि होती है। धर्म के नियमों का पालन करने या तोडऩे से ही पुण्य या पाप का फल मिलता है। पुण्य के फल से मानव के भीतर मानवता का विकास होता है, जिससे परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास के साथ सहिष्णुता, भाईचारे का भाव विकसित होता है। ज्ञान की सरिता भी निरंतर बहती है और आत्मा अपने शरीर की ओर चलती रहती है। धरती का कण-कण उसके यश का प्रशस्तिगान करता है। बूंद-बूंद से उसमें करुणा, दया, वात्सल्य, प्रेम का सागर बन जाता है, जहां सभी आकर अपना सर्वस्व समर्पण कर देते हैं। बूंद अपना अस्तित्व समाप्त कर सागर का रूप ले लेती है। यह सब धार्मिक नियमों के पालन करने का महात्म है।

परिवार, समाज और राष्ट्र को इस परिस्थिति तक पहुंचाने के लिए उसे अपने वातावरण को पुरुषार्थ के द्वारा सहज, सरल और पे्ररणादायक बनाना होगा, जिससे सभी में इन गुणों का प्रादुर्भाव हो। यही सबसे बड़ा धर्म होगा। मानव जब यह करने में सफल हो जाएगा तो वातावरण शुद्ध होते ही उसके विचारों में बदलाव होगा। परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति त्याग, बलिदान, कत्र्तव्य, निष्ठा जैसे गुणों का विकास स्वत: ही आरंभ हो जाएगा। यहीं से हमें धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा भी मिलेगी और इसी राह पर चलकर मानव परमात्मा पद की प्राप्ति कर लेगा। तो हम अपने इन्हीं भावों के निर्माण का पुरुषार्थ करते हुए देव, शास्त्र और गुरु की आराधना करें। इससे परिवार, समाज और राष्ट्र को कुछ अर्पण करने की जीवन यात्रा शुरू होगी और उसका फल मिल सकेगा।