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धर्म और अध्यात्म

अन्तर्मुखी – 4: दो कुलों को रोशन करती है बेटी

बेटी विवाह से पहले पिता के घर और विवाह के उपरान्त ससुराल को दीप्ति प्रदान करती है

Oct 04, 2017 / 12:38 pm

सुनील शर्मा

param pujya

Muni Pujya Sagar Maharaj

– मुनि पूज्य सागर महाराज

प्रकाश सबको समान रूप से एक-सा उजाला देता है। वह किसी से भेदभाव नहीं करता। प्रकाश यह नहीं देखता कि उसके उजाले में कौन क्या कर रहा है। भारतीय संस्कृति में नारी की महत्ता भी प्रकाश से कहीं कम नहीं है। इसकी महत्ता का विस्तार से उल्लेख है। नारी मां, बहन, बेटी, पत्नी आदि स्वरूपों में हमारे जीवन को आलोकित करती है। इसमें भी बेटी की महत्ता कहीं अधिक है। बेटी एक ऐसा दीपक है, जो दो कुलों को उजियारा देता है। बेटी विवाह से पहले पिता के घर और विवाह के उपरान्त ससुराल को दीप्ति प्रदान करती है। यह बेटी ही है, जिसे हम निस्वार्थ की प्रतिमा से निरूपित कर सकते हैं।
बेटी अपने जीवन में अनेक रूपों में जानी जाती है। बेटी का पहला लक्ष्य संस्कृति ज्ञान का अध्ययन करना होता है। उसके बिना वह बेटी धर्म नहीं निभा सकती। वाणी, आचार, विचार का समुचित ज्ञान नहीं होने पर वह जीवन में अंधेरा भी कर सकती है। मां से कार्य कुशलता, कला, धर्म की शिक्षा लेकर अनुभव भी कर लेनी चाहिए। बेटी को मर्यादा के बंधन में रहने का पुरुषार्थ करना चाहिए, तभी हम संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे।
यूं भी हमारी संस्कृति में बेटी को विचारों की स्वतंत्रता है, लेकिन मर्यादा का उल्लंघन करने की आजादी नहीं है। चूंकि बेटी को सहनशीलता का प्रतीक कहा गया है तो उसे सहन भी करना आना चाहिए, तभी वह वात्सल्य की मूर्ति कही जा सकेगी। वैसे देखा जाए तो बेटी परिवार को सजग करने का कार्य भी करती है। बेटी ही घर को स्वर्ग और नर्क बनाने में समर्थ है। बेटी की आंखों में आंसू देखकर जितना दुख मां-बाप को होता है, उतना किसी को नहीं होता।
वर्तमान समय में बेटी को जन्म लेने से पूर्व ही गर्भ में मौत के घाट उतारा जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि बेटियों की गर्भ में हत्या करने की परम्परा सी चल पड़ी है। कन्या भू्रण हत्या के कारणों को जानना भी जरूरी है। बेटी का अपनी इच्छा से विवाह कर लेना और मां-बाप का तिरस्कार भी कन्या भू्रण हत्याओं के पीछे एक कारण माना जा रहा है। जबकि भारतीय परम्परा में विवाह से पूर्व तक बेटी को मांगलिक कहा जाता है। भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में बेटियों को समझना चाहिए कि उनकी मर्यादाएं क्या हैं। उन्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। कहने का सीधा सा अर्थ है कि बेटी धर्म का प्रतीक है।
भगवान आदिनाथ ने भी अपनी दोनों बेटियों ब्रह्मी और सुन्दरी को अंक अक्षर विधा का ज्ञान दिया था। हमें यह भी समझना चाहिए कि परिवार को शिक्षा देने का कार्य बेटियों का है। भारतीय परम्परा में बेटी का कन्यादान करने वाले को पुण्यशाली माना जाता है। बेटी का जीवन पतंग की तरह होना चाहिए। आकाश में वह उड़ान तो भरे, लेकिन उसकी डोर मां-बाप के हाथ में रहे।
बेटी को जीवन में राह में कांटे मिलेंगे। वह सावधानीपूर्वक रास्ता तय कर ले तो वहीं कांटे, उसके लिए फूल भी बन सकते हैं। ब्रह्मी और सुन्दरी ने भी मां-बाप के सम्मान के लिए विवाह नहीं करके आर्यिका दीक्षा धारण कर आत्मकल्याण का कार्य किया। अब हमें विचार करना होगा कि वर्तमान में जो हो रहा है, वह कितना सही है। ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर कैसे रोक लगाई जा सकती है, इसका समाधान कैसे निकाला जा सकता है, यह सब स्वयं हर बेटी को सोचना होगा।
antarmukhi

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