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अंतर्मुखी-3: संस्कार, संस्कृति और संरक्षण… संकल्प

आज हमें आवश्यकता है युवा शक्ति की। चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो या फिर सामाजिक, सभी क्षेत्रों में हमें युवाओं की जरूरत है

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Sunil Sharma

Sep 26, 2017

param pujya

Muni Pujya Sagar Maharaj

- मुनि पूज्य सागर महाराज

आज हमें आवश्यकता है युवा शक्ति की। चाहे वह धार्मिक क्षेत्र हो या फिर सामाजिक, सभी क्षेत्रों में हमें युवाओं की जरूरत है। आज के युवा में शक्ति तो है लेकिन विचार और आचरण की कमी है। उत्साह में वे अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। हम अपनी पहचान खोते जा रहे हैं, अपना स्वाभिमान छोड़ते जा रहे हैं और जिसका स्वाभिमान न हो, उसे मानव नहीं कहा जा सकता। मानव का एक साधारण लक्षण है और वह है स्वाभिमन। अब जिसके पास स्वाभिमान ही नहीं, वह कैसा मानव? जिस प्रकार भोजन के बिना मानव का जीवित रहना संभव नहीं, उसी प्रकार स्वाभिमान भी उसके जीवन के लिए जरूरी है।

आप सभी के भी कुछ सपने होंगे, वे भी पूरे होने चाहिए लेकिन यह देखना जरूरी है कि कहीं उन सपनों के पूरे होने पर हमारा भविष्य तो अंधकार में नहीं जा रहा? और अगर ऐसा है तो हमें क्या करना है, यह आप सोचें। यह आपका अपना फैसला है कि आप अपने आने वाले कल को प्रकाशमान बनाना चाहते हैं या अंधकारमय? आप जो भी चाहें लेकिन भविष्य का ध्यान अवश्य रखें। तभी हमारी सोच बदल पाएगी, तभी हम समाज के सामने आने वाली समस्याओं से निपट पाएंगे। आज हमें चारों ओर से एक ही आवाज सुनाई देती है, ‘बच्चों को समझाना मुश्किल हो गया है, क्या करें, समझते ही नहीं। जो मन में आता है, वही करते हैं। कोई उपाय ही नहीं है।’

देखा जाए तो इस तरह से सोच कर हम उनके अनुरूप हो जाते हैं। यही हमारी गलती है पर हमें इस समय यह सोचना होगा कि यह किसका परिणाम है कि हमारी संतान हमारी ही नहीं सुन रही है। हमें यह भी सोचना होगा कि हमने ही उसके बचपन में उसे बच्चा समझ कर उसके आचरण पर ध्यान नहीं दिया और हम उसे अब समझाने की कोशिश कर रहे हैं, जब वह हमारे संस्कारों से दूर हो गया है, कॉलेज और पाश्चात्य संस्कृति में रम गया है, आखिरकार उसने बचपन से यही देखा है।

क्या आप कभी अपने बच्चे को धार्मिक कार्यों में अपने साथ लेकर गए? क्या आपने उसे संतों के, तीर्थक्षेत्रों के दर्शन करवाए? क्या उसे देव, गुरु, शास्त्र का स्वरूप बताया? उस समय तो आप यही कहते रहे कि बच्चा है, पढ़ाई कर रहा है। बचपन में आप उसे संस्कार दे देते तो वह युवा होने पर समझ सकता अपने परिवार, धर्म, विचार, कत्र्तव्य, शील के बारे में। गलती हमने की है और उसकी सजा आने वाली पीढ़ी, बच्चों को मिले, यह आप विचार करना और अपने मन से पूछना, आपको उत्तर अपने आप मिल जाएगा। इसलिए बच्चों को दोष देने से पहले आप अपने आचरण के बारे में सोचें कि वह कैसा था। वह किस प्रकार के संस्कारों से बना था।

अगर अच्छा है तो आपने जिस प्रकार अपने बचपन की दिनचर्या बनाई थी, उसी प्रकार आप अपने बच्चों की बनाएं। अगर बुरा है तो आपके भीतर जिस प्रकार बुरी आदतें पड़ी, वैसी बच्चों में न पडऩे दें। करना क्या है, यह आपका अपना फैसला है। आप अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते हैं, धन और ज्ञान या फिर धन, ज्ञान और संस्कार। यह आपको सोचना है।

धन, ज्ञान तो आपके बच्चे को बड़ा व्यवसायी बना सकते हैं लेकिन वह सफल भी होगा या नहीं, यह जरूरी नहीं, वह आलसी बन सकता है, उसके अंदर अहंकार का बीज अंकुरित हो सकता है। वह आपको मान-सम्मान दे सकता है लेकिन तभी तक, जब तक आपके पास धन, ज्ञान है। उसके बाद क्या होगा, यह आप भी जानते हैं।

धन और ज्ञान के साथ अगर संस्कार भी हो तो ये बच्चों को न केवल बड़ा व्यवयासी बना सकते हैं, बल्कि उन्हें सदाचारी, उदारमना और विशाल दृष्टि वाला भी बना सकते हैं। आप उन्हें कुल मिलाकर सर्वगुणसंपन्न बना सकते हैं। वे आदर्शवादी तो होंगे ही, उन्हें सभी से सम्मान भी प्राप्त होगा। अब यह आप पर है कि आप अपने बच्चों को क्या देना चाहते हैं।

अगर आप अपने बच्चों का वर्तमान और भविष्य दोनों, उज्ज्वल बनाना चाहते हैं तो यह संस्कारों के बीजारोपण से ही संभव है। अगर आप उनका केवल वर्तमान उज्ज्वल बनाना चाहते हैं तो केवल धन और ज्ञान के पाठ से आपका काम चल जाएगा। आगे क्या करना है, यह आपको विचार करना है। यह उन सबके लिए विचारणीय है, जो भूत, भविष्य और वर्तमान में युवा हैं।