
bageshwar dham uttarakhand
सरयू और गोमती नदी के संगम पर स्थित बागेश्वर जनपद 2246 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह उत्तराखंड का तीसरा सबसे छोटा जनपद है। मानस खंड में सरयू को गंगा और गोमती को यमुना नदी का दर्जा दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस प्रकार गंगा नदी को भगीरथ धरती पर लाए थे। उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था। भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को जाता है ।
बागेश्वर के प्राचीन इतिहास से जुड़ी है शिव-पार्वती कथा
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्तराखंड भगवान शिव, माता पार्वती का निवास स्थान रहा है तो उत्तराखंड का बागेश्वर शिव की लीलास्थली रही है। इस कारण इसे "तीर्थराज" के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव के गण चंदिका ने इसकी स्थापना की थी।
स्कंद पुराण में वर्णित कथा अनुसार एक समय मार्कंडेय नाम के ऋषि नील पर्वत पर तपस्या कर रहे थे और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ देवलोक से विष्णु की मानस पुत्री सरयू को लेकर आ रहे थे। लेकिन तपस्या में लीन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू नदी को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा था। इस पर ब्रह्माजी और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने शिवजी को अपनी व्यथा सुनाई और संकट को दूर करने का निवेदन किया। इस पर आदिदेव महादेव ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का रूप धारण किया।
मां पार्वती गाय के रूप में पास ही घास चरने लगीं। तभी वहां बाघ के रूप में पहुंचे महादेव ने गर्जना की, भयंकर दहाड़ सुनकर गाय डर के कारण जोर-जोर से रंभाने लगी। इससे मार्कंडेय ऋषि की समाधि भंग हो गई। जैसे ही मार्कंडेय ऋषि गाय को बचाने को दौड़े तो सरयू नदी आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया। भगवान शिव ने जिस स्थान पर शेर का रूप धारण किया था। बाद में उस स्थान का नाम व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर पड़ा और यहां भगवान शिव के बागनाथ मंदिर की स्थापना की गई।
Updated on:
23 Mar 2023 06:08 pm
Published on:
23 Mar 2023 06:07 pm
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