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दुःख से भागे नहीं, बल्कि दुःख में जागना सीखेः डॉ. प्रणव पण्ड्या

Published: Mar 29, 2020 03:02:09 pm

Submitted by:

Shyam Shyam Kishor

दुःख का सुअवसर

दुःख से भागे नहीं, बल्कि दुःख में जागना सीखेः डॉ. प्रणव पण्ड्या

दुःख से भागे नहीं, बल्कि दुःख में जागना सीखेः डॉ. प्रणव पण्ड्या

दुःख से भागने और दुःख को भगाने की बात..

दुःख की कल्पना मात्र से कंपकपी होने लगती है। इसके अहसास से मन विकल, विह्वल, बेचैन हो जाता है। ऐसे में दुःख से होने वाले दर्द की कौन कहे? यही वजह है कि दुःख से सभी भागना चाहते हैं। और अपने जीवन से दुःख को भगाना चाहते हैं। दुःख से भागने और दुःख को भगाने की बात आम है, जो सामान्य जनों और सर्वसाधारण के लिए है। लेकिन इसकी एक खास बात भी है, जो सत्यान्वेषियों के लिए, साधकों के लिए और भगवद्भक्तों के लिए है। यह अनुभूति विरले लोग पाते हैं। ऐसे लोग दुःख से भागते नहीं, बल्कि दुःख में जागते हैं।

धरती का सबसे सुदंरतम् श्रृंगार है नारी : महादेवी वर्मा

दुःख का सुअवसर

दुःख उनके लिए रोने, कलपने का साधन नहीं बल्कि परमात्मा द्वारा प्रेरित और उन्हीं के द्वारा प्रदत्त जागरण का अवसर बनता है। दुःख के क्षणों में उनकी अन्तर्चेतना में संकल्प, साहस, संवेदना, पुरुषार्थ की प्रखरता और प्रज्ञा की पवित्रता जागती है। उनकी आत्मचेतना में अनुभूतियों के नए गवाक्ष खुलते हैं, उपलब्धियों के नए अवसर आते हैं। इसीलिए तपस्वियों ने दुःख को देवों के हाथ का हथौड़ा कहा है, जो चेतना में उन्नयन के नए सोपान सृष्ट करता है,विकास और परिष्कार के नए द्वार खोलता है।

आत्मा और परमात्मा के मिलन से एक अद्वतीय आनन्द का अविर्भाव होता है

परमात्म मिलन का अनन्त सौभाग्य

तभी तो सन्तों ने, साधुओं, दरवेशों और फकीरों ने भगवान् से हमेशा दुःख के वरदान मांगे हैं। सुख की चाहत तो बस आलसी, विलासी करते हैं। जो सुखों के बीच पले, बढ़े हैं, उनकी चेतना सदा-सदा से सुषुप्ति की ओर अग्रसर होती है। उनके जीवन में भला परिष्कार व पवित्रता का दुर्लभ सौभाग्य कहाँ? यह तो बस केवल उन्हीं को मिलता है, जो पीड़ाओं में पलते हैं और दुःख के दरिया में प्रसन्नतापूर्वक बहते हैं। जो बदनामी के क्षणों में प्रभु भक्ति में जीना और गुमनामी के अंधेरों में प्रभु चिन्तन करते हुए मरना जानते हैं। उन्हें ही परमात्म मिलन का अनन्त सौभाग्य मिलता है।

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