आत्मा और परमात्मा के मिलन से एक अद्वतीय आनन्द का अविर्भाव होता है
एक वृद्ध संत ने अपनी अंतिम घडी नजदीक देख, अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा- मै तुम चारों बच्चों को एक एक कीमती रत्न दे रहा हूं, मुझे पूर्ण विश्वास है की तुम इन्हें बहुत संभाल कर रखोगे और पूरी जिंदगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बनाओगे। पहला रत्न है- “माफी” तुम्हारे लिए कोई कुछ भी कहे तुम उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाना, और न ही उसके लिए कभी प्रतिकार की भावना मन में रखना, बल्कि उसे माफ़ कर देना।
जिसने प्रेम किया है, वही विरह और मिलन के सच को जान सकता है : डॉ. प्रणव पंड्या
दूसरा रत्न है- ”भूल जाना” अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किये गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद मन में न रखना। तीसरा रत्न है- ”विश्वास” हमेशा अपनी मेहनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना क्योंकि हम कुछ नही कर सकते जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीं लिखा होगा। परमपिता परमात्मा पर रखा गया विश्वास ही तुम्हे जीवन के हर संकट से बचाएगा और सफल करेगा। चौथा रत्न है- ”वैराग्य” हमेशा यह याद रखना की जब हमारा जन्म हुआ है तो निश्चित ही हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ– मोह न रखना। जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास सम्भाल कर रखोगे, तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।
**************