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विचार मंथन : भगवान कोई दूर थोड़े हैं, बस इतना सा करना है, सामने खड़े हो जायेंगे वे- रामकृष्ण परमहंस

भगवान में समर्पण, विसर्जन और विलय करते ही साथ-साथ चलते हैं- रामकृष्ण परमहंस

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भोपाल

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Shyam Kishor

May 30, 2019

daily thought vichar manthan

विचार मंथन : भगवान कोई दूर थोड़े हैं, बस इतना सा करना है, सामने खड़े हो जायेंगे वे- रामकृष्ण परमहंस

समर्पण, विसर्जन और विलय

भगवान को पाने के तीन सूत्र है और वो है- हमारा भगवान के प्रती समर्पण, विसर्जन और विलय, रामकृष्ण परमहंस के अनुसार इन तीनों साधनाओं को करने के लिए नीचे लिखे पाच भावों में से कोई भी एक अपना कर हम भगवान को पा सकते हैं और इनके द्वारा भक्त, अपने भगवान के प्रति, अपनी प्रीति जगाकर उनमें ही मिल सकता है।

दास भाव

रामकृष्ण परमहंस ने अपनी इस साधना के दौरान जो भाव हनुमान का अपने प्रभु राम से था इसी भाव से उन्होंने साधना की और साधना के अंत में उन्हें प्रभु श्रीराम और माता सीता के दर्शन हुए और वे उनके शरीर में समा गए।

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दोस्त भाव

इस साधना में स्वयं को सुदामा मान कर और भगवान को अपना मित्र मानकर की जाती है।

वात्सल्य भाव

1864 में रामकृष्ण एक वैष्णव गुरु जटाधारी के सानिध्य में वात्सल्य भाव की साधना की, इस अवधि के दौरान उन्होंने एक मां के भाव से रामलला के एक धातु छवि की (एक बच्चे के रूप में राम) पूजा की। रामकृष्ण के अनुसार, वह धातु छवि में रहने वाले भगवान के रूप में राम की उपस्थिति महसूस करते थे।

माधुर्य भाव

बाद में रामकृष्ण ने माधुर्य भाव की साधना की, उन्होंने अपने भाव को कृष्ण के प्रति गोपियों और राधा का रखा। इस साधना के दौरान, रामकृष्ण कई दिनों महिलाओं की पोशाक में रह कर स्वयं को वृंदावन की गोपियों में से एक के रूप में माना। रामकृष्ण के अनुसार, इस साधना के अंत में, वह साथ सविकल्प समाधि प्राप्त की।

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संत का भाव (शांत स्वाभाव)- माँ काली के साक्षात दर्शन

अन्त में उन्होने संत भाव की साधना की, इस साधना में उन्होंने खुद को एक बालक के रूप में मानकर माँ काली की पूजा की और उन्हें माँ काली के साक्षात दर्शन भी हुए। वे अक्सर कहा भी करते थे की भगवान कोई दूर थोड़े हैं, बस उन्हें पाने के लिए समर्पण, विसर्जन और उनमें विलय करने भर की देर है वें स्वंय साक्षात सामने खड़े हो जायेंगे ।