तुम अपने से पूछो- कोऽहम्? मैं कौन हूं : स्वामी विवेकानंद
जब उन्होंने शेखतकी से साधना करने की इच्छा जताई तो उन्होंने उत्तर में एक मोटी सी किताब उन्हें थमा दी। इस किताब को पढ़कर पद्मनाभ अपनी साधना करने लगे। जैसा-जैसा किताब में लिखा था, वह वैसा ही करते। उसी तरह से प्राणायाम, उसी तरह से मुद्राएं एवं उसी भांति से वह योग की दूसरी क्रियाएं साधने लगे। यह सब करते हुए उन्हें कई साल बीत गए। यहां तक कि उन्हें कबीर बाबा की सुधि भी न रही। तभी एक दिन उनकी योग साधना में एक व्यतिरेक हुआ और उनकी काया निश्चेष्ट हो गयी। कुछ इस तरह उनके साथ घटा, जैसे कि वे मर गए हों।
एक ही शरीर में भले-बुरे व्यक्तित्व शान्ति सहयोग पूर्वक नहीं रह सकते : आचार्य श्रीराम शर्मा
सभी ने उन्हें मृत मान लिया। फकीर शेखतकी उन्हें मरा हुआ मानकर गंगा में बहाने लगे। तभी अचानक कबीर दास जी उधर से गुजरे। लोगों ने उन्हें सारा वाकया बताया। सारी बातें जानकर वह मुस्कराए और पास खड़े लोगों से उन्होंने कहा कि पद्मनाभ का मृत शरीर मेरे पास रख दो। पर इससे होगा क्या? शेखतकी ने प्रतिवाद करते हुए कहा- यह तो मर गया है। कबीर दास जी ने कहा- नहीं, यह मृत नहीं है। इस बेचारे ने प्राणवायु को ऊपर तो चढ़ा लिया पर उतार नहीं सका।
चरित्रवान, संस्कारवान नारी इस धरा का पवित्र और सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार : भगवती देवी शर्मा
शव के पास आने पर कबीर बाबा ने उसके शरीर को सहलाते हुए मस्तिष्क की नसों को दबाया। उसकी प्राणवायु को ब्रह्मरन्ध्र से उतार कण्ठ में ले आए। इससे उसकी कुण्डलिनी क्रिया शुद्ध हो गयी। अब वह अँगड़ाई लेकर उठ गया। चारों ओर देखते हुए उसने पूछा कि मैं यहाँ कैसे आ गया? कबीर दास जी ने धीरे से उसके मस्तक को सहलाया। इस जादू भरे स्पर्श में पता नहीं क्या था कि उसे जीवन सत्य का बोध हो गया।
विरक्त मन को उपासना से असीम शान्ति मिलती है : भगवान महावीर
अब तो वह उनके पांव पकड़ कर रोने लगा और बोला-बाबा मैंने आपका बड़ा अपमान किया, पर आपने मुझे उबार लिया। उसकी इन बातों पर कबीर बोले- बेटा! कोई गुरु अपने शिष्य से न तो कभी अपमानित होता है और न ही वह उसका त्याग करता है। बस उसे कालक्रम की प्रतीक्षा होती है। कबीर की इस रहस्यमयी वाणी ने शेखतकी की आंखें खोल दीं। उन्हें ज्ञात हुआ कि किताबों को पढ़ने वाला गुरु नहीं होता। गुरु तो वह है, जो चेतना के रहस्यों का जानकार है और उसमें अपने शिष्य को उबारने की क्षमता है।
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