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Dhanteras 2025: जानिए क्यों मनाई जाती है धनतेरस, एक प्राचीन कथा जो आज भी प्रासंगिक है

Dhanteras 2025: धनतेरस पर्व की जड़ें एक पौराणिक कथा से जुड़ी हैं, जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में भी उतनी ही प्रासंगिक है।

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भारत

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MEGHA ROY

Oct 07, 2025

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Dhanteras story in Hindu mythology|फोटो सोर्स – Patrika.com

Dhanteras 2025 Date: भारतीय परंपरा में हमेशा से ही स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना गया है। यही कारण है कि पुरानी कहावत 'पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में माया' आज भी लोगों की सोच में गहराई से रची-बसी है। इसी सोच के अनुरूप दीपावली की शुरुआत भी धनतेरस से होती है, जो इस सांस्कृतिक दृष्टिकोण को पूरी तरह समर्थन देता है।इस पर्व की जड़ें एक पौराणिक कथा से जुड़ी हैं, जो न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में भी उतनी ही प्रासंगिक है। आइए जानते हैं इस अद्भुत पर्व के पीछे की प्रेरणादायक कथा और उसका वर्तमान जीवन से क्या संबंध है।

धनतेरस 2025 तिथि (Dhanteras 2025 Date)

धनतेरस का पर्व 18 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 18 अक्टूबर को दोपहर 12:18 बजे हो रही है और यह तिथि 19 अक्टूबर को दोपहर 1:51 बजे तक प्रभावी रहेगी। हिन्दू धर्म में तिथि निर्धारण के लिए प्रातःकाल की तिथि को मान्यता दी जाती है, जिसे उदयातिथि कहा जाता है।

धनतेरस की पौराणिक कथा

धनतेरस से जुड़ी एक प्राचीन कथा के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख को नष्ट कर दिया था। इसका कारण यह था कि उन्होंने देवताओं के कार्यों में बाधा डालने का प्रयास किया था।

कहा जाता है कि जब देवता, राजा बलि के अत्यधिक प्रभाव और शक्ति से भयभीत हो गए, तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर स्थिति को संभालने का निश्चय किया। वामन रूप में वे राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे। लेकिन शुक्राचार्य ने वामन को पहचान लिया और बलि को चेताया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु हैं, जो तुमसे सब कुछ दान में लेने आए हैं। उन्होंने बलि से अनुरोध किया कि वामन से कोई वचन न दें।

राजा बलि ने अपने गुरु की बातों को नजरअंदाज करते हुए, वामन भगवान से पूछा कि वे क्या चाहते हैं। वामन ने तीन पग भूमि दान में मांगी। बलि ने जब संकल्प लेने के लिए अपने कमंडल से जल निकालने की कोशिश की, तो शुक्राचार्य ने लघु रूप धारण कर कमंडल के जल मार्ग को अवरुद्ध कर दिया।

भगवान वामन इस चाल को समझ गए। उन्होंने अपने हाथ की कुशा (घास) को कमंडल के जलद्वार में डाल दिया, जिससे शुक्राचार्य की एक आंख को क्षति पहुंची और वे बाहर निकलने को विवश हो गए।

इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान देने का संकल्प पूरा किया। भगवान वामन ने एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे में आकाश, और जब तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा, तो बलि ने विनम्रता से अपना सिर उनके आगे रख दिया। इस तरह बलि ने अपना सब कुछ दान में दे दिया।

कहा जाता है कि बलि से प्राप्त धन और ऐश्वर्य देवताओं को पहले से भी अधिक मात्रा में वापस मिल गया। इसी प्रसंग की स्मृति में धन और समृद्धि के प्रतीक रूप में धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।