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Ganesh Utsav- बुद्धि, विवेक और माता-पिता की सेवा से जीवन में प्राप्त करें सफलता

- श्री गणेश जी से सीखें जीवन को आसान बनाने की कला

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Deepesh Tiwari

Sep 19, 2023

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Ganesh Puja : आज गणेश चतुर्थी है और देश में कई जगह बड़ी-बड़ी गणेश की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्ग इस उत्सव में भाग ले रहे हैं। इस मौके पर जानकारों व पंडित का कहना है कि यदि युवा गणेश की भक्ति में भाग लेने के साथ उनकी बातों को जीवन में धारण करेंगे तो आने वाली विघ्न बाधाओं से दूर रहेंगे और अपने जीवन को खुशहाल बना पाएंगे।

किसी भी प्राणी को छोटा नहीं समझें
पंडित विष्णु राजोरिया बताते हैं कि गणेश जी की पूजा धूम-धाम से करते हैं, लेकिन उनकी बातों को जीवन में कम धारण करते हैं। इस वजह से उनके जीवन में बाधाएं आती हैं। आज के युवा अगर अपने जीवन को खुशहाल व बाधाओं से मुक्ति चाहते हैं तो समय के अनुकूल आचरण करें और सत्य वचन बोलें। गणेश के साथ चूहे की सवारी संदेश देती हैं कि किसी प्राणी को छोटा नहीं समझें। गणपति बुद्धि के देवता हैं किसी भी कार्य की सिद्धी उस कार्य पर निर्भर करती है कि आपने किसी कार्य को कितनी शिद्दत से किया है।

हमेशा माता-पिता की आज्ञा का पालन करें
पंडित लेखराज शर्मा ने कहा गणेश सभी विघ्नों को हारन करने वाले देवता हैं। हमारे जीवन में विघ्न बाधाएं हैं अगर हम विद्यार्थी हैं तो पढ़ाई में कोई रुकावट और करियर में परेशानी आ रही है तो निवारण के लिए गणेश जी से प्रार्थना करें। गणेश प्रथम पूज्य है, जब उनकी पूजा करते हैं तो बुद्धि विवेक प्राप्ति होती है। हमेशा प्रार्थना करें कि हम सदमार्ग पर चलें और कष्ट दूर हों। गणेश जी ने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया और उनके प्रिय पुत्र साबित हुए उसी भांति आप अपने माता-पिता की सेवा करें और उनकी आज्ञा का पालन करें।


दाईं ओर सूंड वाले गणपति का उग्र स्वरूप, यहां धुएं से आरती
प्रथम पूज्य भगवान गणेश के देश में कई मंदिर हैं। एक ऐसा रूप भी संस्कारधानी जबलपुर में भी विराजमान है, जो प्रसन्न नहीं बल्कि उग्र मुद्रा में है। इनकी आरती कपूर या दीप के बजाए धुएं से की जाती है। संस्कारधानी जबलपुर में धूम्र विनायक गणेश की इकलौती प्रतिमा विराजित है। मंदिर में 20 साल से धूनी लग रही है। प्रतिमा की सूंड दाहिनी ओर है, जिसे कष्ट हरण माना जाता है। कलियुग में धूम्रवर्ण स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व है।

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ऐसे बना गणपति का वाहन मूषक!
गणेश पुराण के अनुसार द्वापर युग में एक बहुत ही बलवान मूषक महर्षि पराशर के आश्रम में आकर महर्षि को परेशान करने लगा। उत्पाती मूषक ने महर्षि के आश्रम के मिट्टी के बर्तन तोड़ दिए। आश्रम में रखे अनाज को नष्ट कर दिया। ऋषियों के वस्त्र और ग्रंथों को कुतर दिया। महर्षि पराशर मूषक की इस करतूत से दु:खी होकर गणेश जी की शरण में गए। गणेश जी महर्षि की भक्ति से प्रसन्न हुए और उत्पाती मूषक को पकड़ने के लिए अपना पाश फेंका। पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक पहुंच गया और उसे बांधकर गणेश जी के सामने ले आया।

गणेश जी को सामने देखकर मूषक उनकी स्तुति करने लगा। गणेश जी ने कहा,‘तुमने महर्षि पराशर को बहुत परेशान किया है, लेकिन अब तुम मेरी शरण में हो। इसलिए जो चाहो वरदान मांग लो। गणेश जी के ऐसे वचन सुनते ही मूषक का अभिमान जाग उठा। उसने कहा कि मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, अगर आपको मुझसे कुछ चाहिए तो मांग लीजिए। गणेश जी मुस्कुराए और मूषक से कहा कि तुम मेरा वाहन बन जाओ।’ अपने अभिमान के कारण मूषक गणेश जी का वाहन बन गया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार गजमुखासुर नामक एक असुर से गजानन का युद्ध हुआ। गजमुखासुर को यह वरदान था कि वह किसी अस्त्र से नहीं मर सकता। गणेश जी ने इसे मारने के लिए अपने एक दांत को तोड़ा और गजमुखासुर पर वार किया। गजमुखासुर इससे घबरा गया और मूषक बनकर भागने लगा। गणेश जी ने मूषक बने गजमुखासुर को अपने पाश में बांध लिया। गजमुखासुर गणेश जी से क्षमा मांगने लगा। गणेश जी ने गजमुखासुर को अपना वाहन बनाकर जीवनदान दे दिया।