पहला मंत्र: देवी देवताओं के दर्शन के लिए
कराग्रे वसति लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तू गोविंदा, प्रभाते कर दर्शनम।।
अर्थ: सुबह उठते ही सबसे पहले अपनी हथेलियों को जोड़कर उसके दर्शन करें। इस मंत्र का जप आप बिस्तर पर बैठकर कर सकते हैं। इस मंत्र में बताया गया है हथेली के सबसे आगे वाले भाग में देवी लक्ष्मी, मध्य भाग में मां सरस्वती और मूल भाग में परमबह्मा गोविंद का निवास होता है। सुबह उठकर अपनी हथेलियों के दर्शन करने से इन सभी के दर्शन हो जाते हैं।
दूसरा मंत्र: निरोगी काया के लिए
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।।
अर्थ: इस मंत्र का मतलब है- हे देवी मां मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम, क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
तीसरा मंत्र- धन प्राप्ति के लिए
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यतिं न संशय:
अर्थ: हे मां, मनुष्य को तुम्हारे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त मिलेगी तथा धन, धान्य एवं पुत्र से संपन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
चौथा मंत्र: मान-सम्मान के लिए
सर्वमंगल मांगल्यै शिव सर्वाथ साधिक।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नरायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ: हे मां भगवती नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो। कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है, तुम्हे नमस्कार है, तुम्हे नमस्कार है।
पांचवां मंत्र: शत्रुओं के नाश के लिए
ॐ ह्रीं लृी बगलामुखी मम् सर्वदुष्टानाम वाचं मुखं पदं।
स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं लृी ॐ स्वाहा।।
अर्थ: अगर आप शत्रुओं से परेशान हैं तो इस मंत्र का कम से कम 10 हजार बाप जप करें। वहीं अगर कोई बड़ी बाधा हो, जिसमें जीवन-मरण का प्रश्न है तो कम से कम एक लाख बार इस मंत्र का जप करें।
छठा मंत्र: कर्ज मुक्ति के लिए
ओम गं ऋणहर्तायै नम: अथवा ओम छिन्दी छिन्दी वरैण्यम् स्वाहा
अर्थ: इस मंत्र के जरिए व्यक्ति कहता है कि- कर्ज से मुक्ति दिलाने वाले भगवान गणेश को मेरा नमस्कार। यह ऋणहर्ता है, इसके हर रोज जप से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति का कर्ज धीरे-धीरे चुकता हो जाता है।
सातवां मंत्र: विद्या प्राप्ति के लिए
विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥
अर्थ: देवि! विश्व की संपूर्ण विद्याएं तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियां हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियां हैं। जगदम्बे! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त किया हुआ है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।ज्योतिष: अगर करेंगे ये काम तो उच्च ग्रह भी देने लगेंगे अशुभ परिणाम, रहें सावधान!
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लें।)