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निर्जला एकादशी पर इस कथा को पढ़ने मात्र से मोक्ष, धन और सम्मान होता है प्राप्त

Ekadashi Vrat Katha: इस बार निर्जला एकादशी व्रत 10 जून को रखा जाएगा। जानिए इस व्रत की वो पावन कथा जिसे पढ़ने मात्र से मोक्ष और धन की प्राप्ति होने की है मान्यता।

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निर्जला एकादशी पर इस कथा को पढ़ने मात्र से मोक्ष, धन और सम्मान होता है प्राप्त

सालभर में कुल चौबीस एकादशी आती हैं जिनमें से इस एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। इस एकादशी को व्रतों का राजा भी माना जाता है। कई लोग इसे भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस व्रत को सबसे अधिक फलदायी और कल्याणकारी भी माना गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार निर्जला एकादशी व्रत 10 जून को रखा जाएगा। जानिए इस व्रत की वो पावन कथा जिसे पढ़ने मात्र से मोक्ष और धन की प्राप्ति होने की है मान्यता।

पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में महर्षि वेदव्यास ने सभी पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिये एकादशी व्रत का संकल्प करवाया। माता कुंती और द्रौपदी सहित सभी पांडव एकादशी का व्रत रखते लेकिन भीम को ये व्रत रखने में कठिनाई महसूस होती थी। दरअसल भीम को भूख बहुत लगती थी और वो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। इसलिये उनके लिए महीने में दो दिन उपवास करना बहुत कठिन था। लेकिन जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिये दबाव पड़ने लगा तो वो युक्ति ढूंढने लगते थे जिससे कि उन्हें भूखा भी न रहने पड़े और उपवास का पुण्य भी मिल जाये।

भीम ने अपने उदर पर आयी इस विपत्ति का समाधान महर्षि वेदव्यास से ही जाना। पाण्डु पुत्र भीम ने पूछा- आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी इस व्रत को करने के लिए कहते हैं लेकिन मेरे से भूखा नहीं रहा जाता हैं। अत: कृपा करके आप मुझे बताएं कि कैसे मैं बिना व्रत किए एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त कर सकता हूं। महर्षि वेद व्यास जी ने भीम के अनुरोध पर कहा- हे पुत्र! आप ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल उपवास करो।

महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम को कहा कि हे वत्स यह उपवास बड़ा कठिन है। लेकिन इसे रखने से तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त कर सकोगे। इस उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें जल ग्रहण नहीं किया जा सकता। एकादशी की तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान श्री हरि की पूजा करना और अगले दिन स्नानादि कर ब्रहाम्ण को भोजन कराकर दान-दक्षिणा देने के बाद ही स्वयं भोजन करना। महर्षि वेदव्यास के बताने पर भीम ने यही उपवास रखा और मोक्ष की प्राप्ति की। क्योंकि भीम द्वारा इस उपवास को रखा गया था इसलिए निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी और चूंकि पांडवों ने भी इस दिन उपवास किया था इसलिए इसे पांडव एकादशी भी कहते हैं।
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