Premanand Maharaj Vrindavan Ke Pravachan: दरअसल, ईर्ष्या, क्रोध आदि मनुष्य के मूल स्वभाव और अवगुण हैं। इनसे व्यक्ति अक्सर गलत रास्ते पर पहुंच जाता है। बहुत अधिक समस्या बढ़ने पर लोग मनोचिकित्सक या संतों की मदद लेते हैं। बीते दिन एक भक्त ने संत प्रेमानंद महाराज से क्रोध, ईर्ष्या आदि अवगुणों से बचने का उपाय पूछा तो महाराज जी ने जो जवाब दिया अब वायरल हो रहा है। अब भी इन समस्याओं से परेशान हैं तो पढ़ें संत प्रेमानंद महाराज के उपाय
अच्छे भोजन में ही ध्यान रहता है, आसक्ति कैसे नष्ट होगी।
ईर्ष्या भी रहती है, जुबान बहुत चलती है, गुस्सा बहुत आता है, ऐसे में प्रभु की प्राप्ति कैसे होगी। इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा कि मन के अच्छे भोजन की लालसा एकदम से खत्म नहीं हो सकती है।
इसलिए हम उसका निषेध नहीं करते, लेकिन प्रभु प्राप्ति के लिए शरणागति की जरूरत पड़ेगी। इसके लिए जो भी खाना भी चाहें तो पहले प्रभु को अर्पित कर दें, उसमें से थोड़ा पाएं बाकी बांट दें। इससे जुबान की मांग शांत हो जाएगी। धीरे-धीरे प्रभु की शरणागति मिल जाएगी, हर काम में उन्हीं का ध्यान रहेगा।
आप ऐसा करिए कि जो वस्तु बहुत प्रिय है, उसे भोग लगाएं, थोड़ा पाएं और बाकी बांट दीजिए। इससे धीरे-धीरे आसक्ति नष्ट हो जाएगी।
भक्त ने कहा कि कोई झूठा आरोप लगाता है तो आर्ग्युमेंट से गुस्सा आ जाता है। इस पर संत प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि बहुत बोलने से कोई फायदा नहीं होता है, इसलिए मौन व्रत का अभ्यास करना चाहिए।
अगर कोई गलत बात कह रहा है तो एक बार अपनी बात रख दो फिर नाम जप, भजन पर ध्यान देना चाहिए। यह नाप जप प्रमाणित कर देगा। उत्तर प्रत्युत्तर से बचना चाहिए, नाम जप क्रोध को भी दूर रखेगा, जो बहुत सी बुराइयों की जड़ है।
नाम जप से काम क्रोध लोभ मोह सब पर नियंत्रण पाया जा सकता है। क्योंकि यह भक्ति का मार्ग है और भक्ति, भगवान की कृपा से सभी प्राणियों को निर्दोष बना देती है।
नाम जाप से कामना वासना सभी से मुक्ति मिल जाती है। जितना नाम जप बढ़ेगी, बुद्धि पवित्र होगी तो निष्काम बनेंगे। शास्त्र स्वाध्याय न करने, पवित्र भोजन न करने पर मन में कामनाएं वासनाएं ही उत्पन्न होती रहती हैं।
निर्मल मन में कोई कामना उत्पन्न नहीं होती है। निर्मल मन केवल भगवत प्राप्ति चाहता है। पवित्रता हो तो गुरु मंत्र जपें और अपवित्रता (वस्त्र साफ नहीं, मुंह साफ नहीं) में नाम जप करना चाहिए। दोनों ही बराबर हैं।
माताएं बहनें दो परिवार बनाती हैं, जबकि लड़के सिर्फ पितृ पक्ष को बना सकती हैं। इसलिए माता का अधिक महत्व है।
Published on:
21 Jun 2025 06:12 pm