कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भोलेनाथ एक हजार साल के लिए समाधि में चले गए थे। फिर समाधि से बाहर आने के बाद संसार के कल्याण की इच्छा से जब भगवान शिव ने अपने नेत्र बंद किए तो उनकी आंखों में से निकलकर जो जलबिंदु धरती पर गिरे, मान्यता है कि उन्हीं से कुछ पेड़ों की उत्पत्ति हुई और उस पर जो छोटे फल लगे वे रुद्राक्ष कहलाए।
इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार एक त्रिपुरासुर नामक दैत्य को अपनी शक्तियों का अहंकार हो गया तो उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। उस असुर से परेशान होकर सभी देवगण और ऋषि कृपा प्राप्ति के लिए भगवान ब्रह्मा, विष्णु और भोलेनाथ की शरण में गए। देवताओं की पीड़ा सुनकर कुछ समय के लिए भगवान शिव ने अपनी आंखें योग मुद्रा में बंद कर लीं। फिर जब शिव जी ने अपने नेत्र खोले तो उनकी आंखों से अश्रु बहे। माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ की आंखों से आंसू जहां-जहां पृथ्वी पर गिरे वहां-वहां कई पेड़ उत्पन्न हो गए। इन पेड़ों पर जो फल लगे उन्हें ही रुद्राक्ष कहा जाने लगा। इसके बाद स्वयं भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर दैत्य का वध करके धरती और देवलोक को उसके अत्याचार से मुक्ति दिला दी।
सावन में करें ‘तीन मुखी रुद्राक्ष’ धारण
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मान्यता है कि सावन मास में सोमवार, पूर्णिमा या अमावस्या तिथि के दिन 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक तीन मुखी रुद्राक्ष में पंचतत्व में प्रमुख अग्नि तत्व प्रधान होता है।
माना जाता है कि सावन में 3 मुखी रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के चेहरे पर तेज और विचारों में शुद्धता आती है। मेष, वृश्चिक तथा धनु लग्न की राशि वाले जातकों के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना बहुत लाभकारी माना गया। साथ ही यह आपके पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने में भी सहायक माना जाता है।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)