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सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का क्या है महत्व. साथ ही जानिए इससे जुड़ी कथा और नियम

locationनई दिल्लीPublished: Jul 11, 2022 02:23:05 pm

Submitted by:

Tanya Paliwal

Kanwar Yatra 2022: भगवान भोलेनाथ को समर्पित सावन महीने की शुरुआत 14 जुलाई से हो रही है। इस माह में निकली जाने वाली कांवड़ यात्रा का बहुत महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जो भक्त संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए कांवड़ यात्रा करता है भगवान शिव उससे प्रसन्न होकर हर इच्छा पूरी करते हैं।

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सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का क्या है महत्व. साथ ही जानिए इससे जुड़ी कथा और नियम

हिंदू धर्म में सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को समर्पित माना गया है। सावन के पूरे महीने में भक्तजन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय करते हैं। इस साल सावन महीने की शुरूआत 14 जुलाई 2022 से हो रही है। सावन के महीने में कांवड़ यात्रा का भी बहुत महत्व बताया गया है। इस साल कांवड़ यात्रा 26 जुलाई को सावन शिवरात्रि तक चलेगी। कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तजनों को कांवड़िया कहते हैं। यात्रा के दौरान भक्तजन गंगा नदी के पवित्र जल को कांवड़ में भरकर लाते हैं और फिर लंबी यात्रा करते हुए इस जल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। तो अब आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा से जुड़ी कथा और यात्रा के नियमों के बारे में…

कांवड़ यात्रा कथा
कांवड़ यात्रा के प्रारंभ को लेकर बहुत सी कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। जिनमें से एक पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता की इच्छा की पूर्ति के लिए सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार गंगा स्नान के लिए ले गए और फिर वहां से लौटते वक्त अपने साथ में गंगाजल भी लेकर आए। इसी गंगाजल से उन्होंने अपने माता-पिता द्वारा शिवलिंग पर अभिषेक करवाया। मान्यता है कि तभी से कावड़ यात्रा प्रारंभ हुई।


कांवड़ यात्रा के नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है और जो भक्त संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए कांवड़ यात्रा करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। नियमों के अनुसार संपूर्ण यात्रा के दौरान भक्तों को पैदल ही चलना होता है। कांवड़ यात्रा के दौरान यात्री मांस-मदिरा का सेवन नहीं कर सकते, उन्हें सात्विक भोजन करना होता है। साथ ही पूरी यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। मान्यता है कि अगर गलती से कांवड़ जमीन पर स्पर्श भी हो जाए तो दोबारा से उसमें गंगाजल भरकर यात्रा करनी पड़ती है अन्यथा यात्रा का उचित फल प्राप्त नहीं हो पाता।

(डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई सूचनाएं सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। patrika.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह ले लें।)

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