Jaipur Ke Sone Ke Tajiye Ki Kahani: राजस्थान की राजधानी जयपुर की ताजिया निकालने की परंपरा अनूठी है। वैसे तो हर जगह ताजिए को आकर्षक और बेस्ट बनाने की होड़ रहती है, लेकिन जयपुर से एक ताजिया (Sone Chandi Ka Tajiya) ऐसा निकलता है, जो प्रदेश ही नहीं देश की विरासत है।
ये कहानी है जयपुर में घाटगेट स्थित मोहल्ला महावतान बिरादरी का रियासतकालीन सोने-चांदी के ताजिए की। जयपुर में ताजिया वर्ष 1868 से निकलता आ रहा है। इसे जयपुर रियासत के राजा रामसिंह ने मुस्लिम समाज के बुजुर्गों को तोहफे में दिया था, जो कि आज भी सुरक्षित है (Muharram 2025)।
परंपरा के अनुसार ताजिए निकाले जाने के बाद यह दफना दिए जाते हैं। हालांकि जयपुर रियासत का प्रदान किया गया यह ताजिया दफनाया नहीं जाता है। इसमें शीशम की लकड़ी पर सोने की जरी का काम किया गया है। साथ ही चांदी के कलश लगाए जाते हैं। इन्हें सालभर सुरक्षित रखा जाता है। रविवार को ताजियों के बीच लोग हाथियों पर सवार होकर शाही ठाठ बाठ से चलेंगे। हिंदू समुदाय के लोग भी ताजियेदारों का पुष्पों से स्वागत करेंगे।
इतिहासकारों के मुताबिक सवाई रामसिंह बेहद बीमार हुए तो उनके सलाहकार ने ताजिये की मन्नत के बारे में बताया। तब उन्होंने मन्नत मांगी और इसके पूरी होने पर डेढ़ मण सोने-चांदी (10 किलो सोना और 50 किलो चांदी) का ताजिया बनवाया। इसके लिए सहारनपुर (यूपी) से कारीगर बुलवाकर बनवाया गया था।
इसकी चमक बरकरार रहे, इसलिए सालभर रेशमी कपड़े से ढंककर रखा जाता है। यह ताजिया हर साल मोहर्रम में इमामबाड़े से निकाला जाता है, लेकिन इसे सुपुर्द-ए-खाक नहीं किया जाता, बल्कि वापस इमामबाड़े में रख दिया जाता है। इसी ताजिये की तर्ज पर मोहल्ला महावतान और मोहल्ला जुलाहान ने भी सोने-चांदी के ताजिये बनवाए।
जयपुर घाट गेट इलाके के मोहल्ला महावतान के इस सोने-चांदी के ताजिए को हर साल 21 हाथी से सलामी दी जाती है। हर साल मुहर्रम पर 5 दिन के लिए बाहर निकाला जाता है। लोगों का कहना है कि रियासतकालीन ताजिये में सुर्खाब पक्षी, लद्दाख और तिब्बत में पाया जाने वाला रेड शैल डक के पर लगे हुए हैं। इस ताजिये पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं, साथ ही कर्बला का नक्शा भी अंकित है।
इस्लामिक साल के पहले महीने में मनाया जाने वाला मोहर्रम (यौमे-ए-आशूरा) रविवार को मनाया जा रहा है। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शनिवार को कत्ल की रात पर मातमी धुनों के साथ ताजियों का जुलूस निकला। शहर के अलग-अलग इलाकों से 300 से अधिक ताजिए बड़ी चौपड़ के लिए रवाना हुए। शाम को ताजिया कर्बला में सुपुर्द खाक किया जाएगा।
घाटगेट सहित चारदीवारी के विभिन्न मोहल्लों में तैयार हुए ताजियों की कीमत 40 हजार से लेकर सात से आठ लाख रु. तक है। इनमें अभ्रक और चांदी के वर्क के साथ ही महीन एम्बोजिंग का कार्य किया है व कई आकृतियां उकेरी गई हैं। तुर्की, ईरान की वास्तुकला के साथ ही महल की आकृति व कई गुम्बदें भी बनाई हैं।
जौहरी बाजार, हल्दियों का रास्ता स्थित सलीम मंजिल ऊंचे कुएं में स्थित हजरत इमाम हुसैन की कुलाहे मुबारक (टोपी) की जियारत की शुरुआत भी रविवार से होगी।
Published on:
06 Jul 2025 01:24 pm