
shrad purnima par kheer ke labh
शरदपूर्णिमा के अगले दिन से हिन्दू पंचाग का आठवां महीना कार्तिक प्रारंभ हो जाता है। वहीं शरदपूर्णिमा जिसे शरदोत्सव भी कहते हैं के साथ ही मौसम में बदलाव के साथ ठंड महसूस होने लगती है।
शरदपूर्णिमा का यह दिन व्रत त्योहारों के साथ ही जनजीवन में कई परिवर्तन भी लाता है। दरअसल शरद ऋतु के साथ ही लोगों के खान-पान के साथ ही पहनावे में भी बदलाव आना शुरु होने लगता है। हर साल की तरह इस बार भी शरद पूर्णिमा के अगले दिन से ही कार्तिक माह लग जाएगा।
दरअसल साल 2021 में शरद पूर्णिमा का ये पर्व मंगलवार, 19 अक्टूबर, 2021 को मनाया जाएगा। ऐसे में इस बार पूर्णिमा तिथि की शुरुआत मंगलवार 19 अक्टूबर 2021 को शाम 07:05:42 बजे से होगी। वहीं पूर्णिमा तिथि का समापन 20 अक्टूबर 2021 की रात 08:28:56 बजे हो जाएगा।
वहीं कार्तिक माह में ही साल के प्रमुख त्यौहारों में से एक त्यौहार दीपावली भी शरद पूर्णिमा के बाद आगामी चंद दिनों में मनाया जाएगा। पंडित एके शुक्ला के अनुसार शरद पूर्णिमा हिंदुओं का एक खास पर्व है, ऐसे में शरदोत्सव पर चांदनी के नीचे रखी खीर में रात को चंद्रमा की किरणों से झरी सुधा इसे और खास बना देती है। चलिये जानते हैं चांद से आए अमृत में लिपटी इस खीर को खाने के फायदे और महत्व के संबंध में क्या है मान्यता?
जानकारों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात का यदि मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरुआत होती है और शीत ऋतु का आगमन शुरु होता है। शरद पूर्णिमा की रात खीर का सेवन इस बात का प्रतीक माना जाता है कि शीत ऋतु में गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।
: माना जाता है कि दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चंद्रमा की चांदनी विशेष गुणकारी, श्रेष्ठ किरणों वाली और औषधियुक्त होती है।
: लंकाधिपति रावण के संबंध में यह भी कहा जाता है कि वह शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि में ग्रहण करता था। और इसी प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।
माना जाता है कि चांदनी रात में मध्यरात्रि के दौरान कम वस्त्रों में घूमने से ऊर्जा प्राप्त होती है। वहीं इसका कारण ये बताया जाता है कि सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
: वहीं एक अध्ययन के अनुसार, दुग्ध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है और चांद की किरणों से ये तत्व अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करते हैं।
इसके अतिरिक्त चावल में स्टार्च इस प्रक्रिया को आसान बना देता है। कई जानकारों के अनुसार ऋषि-मुनियों के द्वारा शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने और अगले दिन खाने के विधान को तय करने का ये ही मुख्य कारण माना जाता है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
ऐसे समझें इसका वैज्ञानिक मत
वैज्ञानिकों के मत के अनुसार इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है। जिस कारण इसकी किरणों में कई लवण और विटामिन आ जाते हैं। वहीं पृथ्वी से नजदीक होने के कारण ही खाद्य पदार्थ इसकी चांदनी को अवशोषित करते हैं। और लवण और विटामिन से संपूर्ण ये किरणें हर खाद्य पदार्थ को स्वास्थ्यवर्धक बनाती है।
शरदोत्सव का महत्व
शरदोत्सव सनातन धर्म के सभी सम्प्रदायों (वैष्णव,शैव और शाक्त) के लिए आध्यात्मिक महत्व का पर्व है। वहीं शरद पूर्णिमा से कोजागरी लोक्खी यानी लक्ष्मी जी की पूजा व्रत शुरू होता है।
: इसके तहत सोलह दिन तक भगवती राजराजेश्वरी की पूजा आराधना की जाती है। इस दौरान नित्य 108 दीपक से भगवती की पूजा-अर्चना की जाती है।
: वहीं इसी दिन से कार्तिक स्नान भी शुरू होते हैं।
: इस दौरान महिलाएं ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नानादि नित्यकर्मों के पश्चात तुलसी की पूजा, परिक्रमा, दीपदान, भजन कीर्तन करती हैं।
: वहीं कार्तिक मास में दीपदान का भी विशेष महत्व है।
शरद पूर्णिमा पर ऐसे बनाएं खीर
मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात में चांदनी से बरसने वाला अमृत खीर को बेहद पौष्टिक बना देता है। खीर बनाने के दौरान इस खीर को बनाने के लिए जितना दूध है उसमें उतना ही पानी मिलाकर पहले उसे पकाएं। इस दौरान खीर के लिए चावल धोकर डालें। अब खीर बनने दें। दूध को तब तक पकाएं जब तक कि उसमें मिलाया गया सारा पानी उड़ न जाए और केवल दूध और चावल ही बचे।
खीर में चीनी और बादाम डालकर रात करीब 9 बजे चंद्रमा की चांदनी में रख दें। इसके बाद अगले दिन सुबह करीब 4 से 6 बजे के बीच इसे खाएं। वहीं इसे खाने से पहले 'ऊं नमो नारायणाय:' मंत्र का 21 बार जप करें, माना जाता है कि ऐसा करने से ये खीर औषधि का काम करती है।
खीर से लाभ के संबंध में ये है मान्यता!
शरद पूर्णिमा के रात में कम से कम 30 मिनट तक चांद की चांदनी में रहें।कई जानकारों के अनुसार रात 10 से 12 बजे तक का समय इसके लिए बेहद उपयोगी माना जाता है। जानकारों का ये भी कहना है कि शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। अत: दमा पीडि़तों को इस रात सोना नहीं चाहिए, बल्कि जागरण करना चाहिए।
यह भी कहा जाता है कि इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर सुबह 4 बजे सेवन किया जाना चाहिए। रात्रि जागरण के पश्चात रोगी को औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है। इसके साथ ही ये भी माना जाता है कि आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक हर रोज रात में 15 से 20 मिनट तक चंद्रमा को देखकर त्राटक करें। वहीं जो इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं, उन्हें स्वस्थ करने के लिए चंद्रमा की चांदनी में रखी खीर खानी चाहिए।
Updated on:
17 Oct 2021 12:15 pm
Published on:
17 Oct 2021 12:07 pm
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