
Atal bal palak abhiyan Exhausted after getting National Identity
रीवा। कुपोषित बच्चों को गोद लेकर उनकी देखभाल करने का अटल बाल पालक अभियान सुस्त पड़ गया है। बच्चों को गोद लेने के लिए न स्नेह सरोकार शिविर आयोजित हो रहे हैं और न ही समाज के लोग आगे आ रहे हैं। कुपोषण से मुक्ति की जगी आस फिर निराशा में बदल गई है।
अटल बाल पालक अभियान तत्कालीन कलेक्टर राहुल जैन ने शुरू किया था। इस अभियान का उद्देश्य था कि जो बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं उन्हें गोद लेकर उनकी देखभाल कर उन्हें इस बीमारी से मुक्ति दिलाई जाए। अभियान में सामाजिक भागीदारी बढ़ाने के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से जिलेभर में स्नेह सरोकार शिविर किए जाते थे। इन शिविरों में कुपोषित बच्चे, उसके माता-पिता को बुलाया जाता था। इन बच्चों को गोद लेने के इच्छुक बाल पालक भी आते थे। शिविरों में ही कुपोषित बच्चे के बाल पालक तय हो जाते थे जो कुपोषित की देखभाल करते थे। अभियान की एक वेबसाइट बन गई थी जिस पर गंभीर, मध्यम कुपोषित बच्चों की एंट्री महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा की जाती थी। पूरी तरह जनभागीदारी पर यह आधारित था। अटल बाल पालक अभियान ने रीवा में कुपोषण के प्रति लोगों में चेतना जगाई थी। करीब बारह सौ से अधिक बच्चों को गोद लेने का काम यहां हुआ था। पर अफसोस की बात ये है कि तत्कालीन कलेक्टर के जाने के बाद से अभियान की रफ्तार सुस्त पड़ी। महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी इसे आगे नहीं बढ़ा सके। नतीजा वर्तमान में अभियान थम गया है।
हर तबके ने निभाई थी भागीदारी
डॉक्टर, इंजीनियर, समाजसेवी, शिक्षाविद्, जनप्रतिनिधि, अधिकारी लगभग समाज के हर तबके से लोग बाल पालक बने थे। अभियान के तहत गोद लिए गए कुपोषित बच्चों की देखभाल बाल पालक ही करते थे। उन्हें पोषण आहार देना, खिलौने देना, साफ-सुथरे रहने और माता-पिता की काउंसिलिंग से लेकर बच्चे को एनआरसी में उपचार तक कराने बाल पालक ही जाते थे। जिसके कारण उस वक्त बड़ी संख्या में कुपोषित बच्चे कुपोषण से मुक्त हो गए थे। भारतीय रेडक्रास सोसायटी सहित कई सामाजिक संगठनों ने भी भागीदारी की थी। तत्कालीन कलेक्टर ने भी कई बच्चियों को गोद लिया था।
देश के दस नवाचारों में था शामिल
पीएमओ ने देश भर के कलेक्टरों से नवाचार की जानकारी मांगी थी। जिसमें रीवा के अटल बाल पालक अभियान को देश के दस नवाचारों में जगह मिली थी। दिल्ली में इसका प्रजेंटेशन तत्कालीन कलेक्टर राहुल जैन ने दिया था और सम्मानित हुए थे। इस अभियान से रीवा को राष्ट्रीय पहचान मिली थी।
बाल पालक चाहते हैं अभियान जारी रहे
-कुपोषण सामाजिक बीमारी है। भूख, गरीबी और अशिक्षा की कमी इस बीमारी को जन्म देती हैं। इन परिस्थितियों को बदलने में यह अभियान कारगर साबित हुआ था। इसे जारी रखना चाहिए।
डॉ. ज्योति सिंह, शिशु रोग विशेषज्ञ
-अभियान के तहत सबसे अधिक 57 कुपोषित बच्चे गोद लिए थे। जिनमें से 46 कुपोषण से मुक्त हो गए हैं। वर्तमान में यह अभियान ठप पड़ा है। जबकि इससे समाज में जागरुकता आई थी।
ममता नरेंद्र सिंह, समाजसेवी
जिले में कुपोषण की स्थिति
-2,41,559 कुल बच्चे ०-5 वर्ष तक के।
-35072 बच्चे मध्यम कम वजन की श्रेणी में।
-4700 लभगभ अति कम वजन के कुपोषित।
-रायपुर कर्चु. नईगढ़ी, जवा में सबसे अधिक कुपोषित।
Published on:
14 Jul 2018 11:31 am
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