
Farmer are being ruined by animal in Rewa, gov have not arrangements
रीवा। किसान रबी व खरीफ के अलावा ग्रीष्मकालीन फसलों की बोवनी करें, इसको लेकर भले ही शासन स्तर से तमाम योजनाएं शुरू की जा रही हैं लेकिन ऐरा प्रथा के चलते सारी कवायद पर पानी फिर रहा है। ऐरा मवेशी जिलेभर में करोड़ों रुपए का उत्पादन प्रभावित कर रहे हैं।
व्यवस्था के बावजूद किसान उदासीन
ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी के लिए कृषि विभाग मूंग सहित कई फसलों के लिए अनुदान जारी करता है। उद्यानिकी विभाग की ओर से भी सब्जी की फसल के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है। सिंचाई की व्यवस्था भी सुलभ कराई जाती है। लेकिन इसके बावजूद किसान ग्रीष्मकालीन फसल की बोवनी में रूचि नहीं ले रहे हैं। वजह ऐरा मवेशियों से होने वाला भारी नुकसान है। ग्रामीण अंचल में ही नहीं, शहर में भी ऐरा मवेशी लोगों के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं लेकिन शासन-प्रशासन किसी विकल्प का तलाश नहीं कर पा रहा है।
वर्षों की गुहार अब तक अनसुनी
ऐरा प्रथा पर लगाम लगाई जाए। छुट्टा मवेशियों के लिए काजी हाउस बनाए जाएं। इसको लेकर किसानों की ओर प्रशासन से लेकर शासन तक गुहार लगाई गई लेकिन न ही किसानों के बीच मवेशियों को छुट्टा नहीं छोडऩे पर आपसी सहमति बन गई है और न ही शासन-प्रशासन की ओर से काजी हाउस के लिए कोई ठोस व्यवस्था ही बनाया जा सकता है। कुछ गांवों में किसानों आपसी चंदा कर काजी हाउस बनवाया तो लेकिन वह वित्तीय अभाव में कुछ दिन चलकर बंद हो गया।
25 फीसदी रकबे में बोवनी की उम्मीद
कृषि विभाग ग्रीष्मकाल में जिले की कृषि योग्य कुल भूमि का २५ फीसदी रकबे में बोवनी की उम्मीद रखता है। इसी के मद्देनजर शासन स्तर से लक्ष्य भी निर्धारित किए जाते हैं लेकिन किसानों की अरूचि के चलते २५ फीसदी में भी 95 फीसदी रकबे में बोवनी नहीं होती है। केवल पांच फीसदी किसान ऐरा मवेशियों से बचाव की व्यवस्था करते हुए उद्यानिकी पर आधारित फसलों की बोवनी करते हैं। गौरतलब है कि जिले में कृषि योग्य भूमि का रकबा 3.92 लाख हेक्टेयर है।
केवल मूंग से समझिए नुकसान
1500 हेक्टेयर पूरे जिले में मूंग बोवनी का लक्ष्य
15 से 20 क्विंटल मूंग का उत्पादन प्रति हेक्टेयर
5000 रुपए प्रति क्विंटल मूंग का औसत मूल्य
11 से 15 करोड़ रुपए का मूंग की उपज
Published on:
30 Apr 2018 12:47 pm
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