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हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के निवासियों को मकान का मालिकाना हक नहीं

नहीं मिला स्वामित्व, जिला प्रशासन और हाउसिंग बोर्ड का विवाद, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी के रहवासियों को 40 वर्ष से मालिकाना हक का इंतजार  

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रीवा

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deepak deewan

Oct 13, 2022

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नहीं मिला स्वामित्व

रीवा. शहर के चिरहुला मोहल्ले में हाउसिंग बोर्ड Housing Board Colony residents द्वारा विकसित की गई कॉलोनी के रहवासियों को मालिकाना हक नहीं है. 40 वर्ष बाद भी उन्हें ये हक नहीं मिल पाया है। जबकि, इसके लिए शासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, राशि का भुगतान लोगों की ओर से किया जा चुका है। जिला प्रशासन व हाउसिंग बोर्ड Housing Board के बीच हुए अनुबंध का पालन न होने की वजह से यह स्थिति उत्पन्न हुई है।

वर्ष 1982-83 में बोर्ड ने जिस भूमि पर यह कालोनी विकसित की है, वह अभी हाउसिंग बोर्ड के नाम ही नहीं हुई है। बोर्ड लीज रेंट की राशि जमा करा रहा है। फ्री होल्ड की प्रक्रिया अटकी हुई है। भवनों का मालिकाना हक पाने के लिए लोगों की एक पीढ़ी गुजरने को है फिर भी इंतजार पूरा नहीं हुआ है।

एसएएफ की 9वीं बटालियन की भूमि पर बोर्ड द्वारा विकसित की गई कॉलोनी के स्वामित्व का मामला नहीं सुलझ रहा है। बोर्ड ने इसके लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन तकनीकी अड़चनों के चलते प्रक्रिया अटकी रह गई। कॉलोनी के रहवासी इस लेटलतीफी के चलते आशंकित हैं, क्योंकि उन्होंने मकानों की पूरी कीमत का भुगतान कर रखा है। सरकारी भूमियों से जुड़े स्वामित्व को लेकर सरकार लगातार नियमों में संशोधन भी करती जा रही है। इसके चलते लोगों को यह भय सता रहा है कि एसएएफ ने यदि दावा किया तो उन्हें कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। करीब चार दशक से भवन खरीदने के बाद भी किराएदार की हैसियत से लोग रह रहे हैं।

पार्षद की शिकायत पर उपायुक्त से जवाब-तलब
भवनों के मालिकाना हक के लिए लोगों द्वारा उठाई जा रही मांग पर वार्ड 44 की पार्षद अर्चना अमृतलाल मिश्रा ने हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष से शिकायत की थी। जिस पर बोर्ड उपायुक्त रीवा से जवाब तलब किया गया है। इस मामले में बोर्ड के कार्यपालन यंत्री अनुज प्रताप सिंह का कहना है कि अभी मध्यप्रदेश शासन के नाम पर उक्त भूमि है। बोर्ड के नाम पर ट्रांसफर कराने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होगी फ्री होल्ड में परेशानी आएगी।

राशि जमा कराने के बदले बनवाए थे घर
जिस दौरान भूमि का अधिग्रहण कर उसमें कालोनी विकसित की जा रही थी उस दौरान हाउसिंग बोर्ड को लीज रेंट सहित अन्य भुगतान किए जाने थे। तत्कालीन कलेक्टर ने राशि जमा कराने के बदले बोर्ड से 45 मकान बनाकर उपलब्ध कराने के लिए कहा था। बोर्ड ने उसी राशि से चिरहुला में ही मकान बना दिए, जिसमें अब भी अलग-अलग विभागों के कर्मचारी रह रहे हैं। कई वर्षों तक तो यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा लेकिन जब नामांतरण का मामला सामने आया तो अब अधिकारी उस निर्देश को मानने को तैयार नहीं हैं, वह राशि जमा कराने की बात कर रहे हैं। लीज रेंट की राशि करीब चार करोड़ हो गई है, इसका भुगतान बोर्ड को करना होगा।

28 एकड़ क्षेत्रफल में बसाई गई कॉलोनी
चिरहुला हल्का में एसएएफ नौवीं बटालियन की भूमि के रकबा 59.9 हेक्टेयर के अंश भाग में 28 एकड़ भूमि में कालोनी बसाई गई है। पहले चरण में 18 एकड़ और दूसरे चरण में 10 एकड़ भूमि पर कालोनी विकसित कराई गई। कलेक्टर ने हाउसिंग बोर्ड को यह भूमि सौंपी थी। यह शहर की प्रमुख कालोनियों में से एक है। प्रशासनिक लापरवाही की वजह से इसकी भूमि को हाउसिंग बोर्ड Housing Board Colony अपने नाम नहीं करा पाया। जिसका खामियाजा यहां पर रहने वाले लोग भुगत रहे हैं।

स्थानीय निवासी प्रभाकर सिंह बताते हैं कि करीब 40 वर्ष पहले जब हाउसिंग बोर्ड ने भवन निर्माण के बाद बिक्री का विज्ञापन जारी किया, उसमें कहा गया था कि 30 वर्ष के लिए लीज रेंट पर दिया जा रहा है, बाद में फ्री होल्ड कर दिया जाएगा लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है।

वार्ड 44 पार्षद अर्चना मिश्रा के अनुसार चिरहुला हाउसिंग बोर्ड में रहने वाले लोग भवन की पूरी कीमत चुकाने के बाद भी मालिकाना हक से वंचित हैं। इसकी शिकायत बोर्ड के अध्यक्ष से की है और फ्री होल्ड की मांग उठाई है। जहां से सूचना आई है कि उपायुक्त से रिपोर्ट मांगी गई है।

स्थानीय निवासी वीरेन्द्र निगम बताते हैं कि मकान की पूरी कीमत का भुगतान करने के बाद भी बोर्ड ने किराएदार बनाकर रखा है। फ्री होल्ड करने का जब समय आया तो फिर से लीज रेंट की अवधि बढ़ाई जा रही है। यह पूरी तरह से अनुचित है। प्रशासनिक लापरवाही का खामियाजा लोग भुगत रहे हैं।

स्थानीय निवासी चेतना द्विवेदी के मुताबिक सरकारी भूमि में कालोनी विकसित करने के दौरान प्रशासन और हाउसिंग बोर्ड के बीच क्या शर्त थी, इससे भवन स्वामियों का कोई लेना-देना नहीं है। हमारा कहना है कि यदि मकान की कीमत दी है तो वह हमारे नाम भी होना चाहिए।

निवासी एसएस सोनी बताते हैं कि चिरहुला कॉलोनी का राजस्व रिकार्ड एक प्रसासनिक चूक है। इसके कारण आज भी यहां के भवन स्वामी लीजधारी बने हुए हैं। भूमिस्वामी बनने के इंतजार में कई परिवारों की पीढ़ी गुजर चुकी है। समस्या का समाधान कर लोगों की लीज फ्री-होल्ड की जाए।