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मृगेन्द्र सिंह, रीवा
हिन्दी फिल्मों को नई ऊंचाई देने वाले मुंबई के कपूर परिवार में बहू बनकर पहुंची कृष्णा का निधन हो गया है। वह लंबे समय से बीमार चल रहीं थी। ३० दिसंबर १९३० को जन्मी कृष्णा का बचपन रीवा शहर के सिरमौर चौराहे में स्थित आइजी बंगले में बीता था। उनके पिता करतारनाथ मल्होत्रा रीवा राज्य के उस दौरान आइजी हुआ करते थे।
शहर के एसके स्कूल में ९वीं और १०वीं की पढ़ाई कृष्णा ने की थी, उसी दौरान विवाह हुआ और वह हमेशा के लिए मुंबई चली गईं। १२ मई १९४६ को राजकपूर की बारात रीवा आई थी। मुंबई से बनारस चलने वाली ट्रेन से सतना तक बारात आई, वहां से सड़क मार्ग से सभी रीवा तक पहुंचे थे। कृष्णा के साथ राजकपूर का विवाह रीवा शहर के सिरमौर चौराहा स्थित बंगले पर हुआ था। विवाह के दौरान उनकी आयु महज १६ वर्ष की थी। उस दौर में यह विवाह पूरी तरह से शाही था।
रीवा राजघराने की ओर से भी अतिथियों के स्वागत के लिए विशेष तैयारियां की गई थी। शहर के प्रमुख स्थलों में फिल्मी सितारों और प्रमुख अतिथियों को ठहराया गया था। कुछ को गोविंदगढ़ में ठहराया गया था। बारात १३ मई को रुकी थी, शिष्टाचार की रस्म अदायगी में दोनों पक्षों के लोगों का परिचय हुआ था। १४ मई को यहां से सायं रवाना हुए और १६ मई को मुंबई पहुंचे थे। बारात में शम्मी कपूर, शशि कपूर, दिलीप कुमार, सुरैया, देवानंद, अशोक कुमार, जॉनी वाकर, अजीत, कन्हैयालाल, नादिरा, निम्मी, मजरूह सुल्तानपुरी समेत और भी कई फिल्मी सितारों का जमावड़ा था।
रीवा से नाता जोड़े रखने बेटी का नाम रखा रीमा
जिस दौरान कृष्णा और राजकपूर की शादी हुई, रीवा को स्थानीय बोली में लोग रीमा कहते थे। स्मृतियों को ताजा बनाए रखने के लिए उन्होंने बेटी का नाम रीमा रखा है। इसका उल्लेख कई इंटरव्यू में वह कर चुकी हैं, नाम रखने के पीछे उनकी मां ने कारण भी बताए थे। कृष्णा की पांच संतानें हैं जिसमें रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर, रितु नंदा, रीमा कपूर।
सफेद साड़ी में देख मोहित हुए थे राजकपूर
फिल्म अभिनेता राजकपूर और प्रेमनाथ(कृष्णा के भाई) मित्र थे, इसी सिलसिले में वह राजकपूर को अपने साथ रीवा लेकर आए थे। यहीं उन्होंने पहली बार कृष्णा को देखा था, उस दौरान उनकी उम्र १४ वर्ष की थी। कृष्णा अपने घर पर सफेद साड़ी पहले पहले पूजा करने निकली थी, बाद में सितार बजाते हुए उन्हें देखा। पहली नजर में ही राजकपूर ने कृष्णा को पसंद किया और अपने परिवार के लोगों को इसकी जानकारी दी। इसके बाद रिश्ते की बात हुई और दोनों परिवारों ने रिश्ता तय कर दिया। प्रेमनाथ भी उनदिनों फिल्मी दुनिया में चर्चित हो रहे थे।
फिल्मों के जरिए रीवा को राजकपूर ने किया जीवंत
रीवा शहर से राजकपूर ने अपना नाता मन से जोड़ रखा था। 1९५३ रीवा को समर्पित एक फिल्म 'आहÓ बनाई थी। जिसमें ११ बार रीवा का जिक्र किया था। फिल्म में वह तपेदिक के मरीज बताए गए जो रीवा में रहने वाली नायिका से मिलना चाह रहे थे। बार बार यह प्रयास करते दिखे की रीवा जाना है। फिल्म में एक बार सतना का भी जिक्र किया था। इसी तरह आग फिल्म में भी रीवा का उल्लेख है। फिल्म में एक कार दिखाई गई, जिसका नंबर रीवा-३४७ था। इस कार का पंजीयन रीवा में ही हुआ था और उस दौरान आरटीओ की जिम्मेदारी कृष्णा के पिता करतारनाथ मल्होत्रा के पास ही थी।
घूंघट नहीं उठाई, बोलीं-मेरे रीवा में है रिवाज
रीवा की संस्कृति कृष्णा के जेहन में ऐसे रची बसी थी कि वह जब शादी के बाद मुंबई पहुंची तो वहां घूंघट नहीं हटाया। उन्होंने कहा था कि हमारे यहां रीवा में रिवाज है कि बहू घूंघट नहीं हटाती। यह देख सब हैरान थे, कपूर खानदान की बहू को देखने कई फिल्मी हस्तियां पहुंची थी। विवाह के छह दिन बाद १८ मई १९४६ को आशीर्वाद समारोह में काफी समय तक वह घूंघट में ही रहीं। इसी बीच किसी ने बताया कि फिल्म अभिनेता अशोक कुमार भी आ गए हैं। यह सुनते ही उन्हें देखनेे के लिए घंूघट उठाया तब कई महिलाओं एवं वहां मौजूद लोगों ने पहली बार कृष्णा का चेहरा देखा।
जब रुपयों की जरूरत हुई तो गहने रख दिए थे गिरवी
राजकपूर फिल्मों में निर्देशन करना चाह रहे थे। उस दौरान पृथ्वीराजकपूर ने भी सहयोग करने से हाथ खड़े कर दिए थे। कपूर फैमिली से जुड़े विश्वा मेहरा का कहना है कि कृष्णा ने ही अपने सारे गहने गिरवी रख दिए थे और कहा था कि वह मन लगाकर फिल्म बनाएं। हालांकि बाद में सारे गहने उनके वापस आ गए थे।
स्मृतियां सहेजने बना आधुनिक आडिटोरियम
फिल्मों के शो मैन राजकपूर और कृष्णा मल्होत्रा के विवाह से जुड़ी स्मृतियों को सहेजने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने रीवा में करीब २० करोड़ रुपए की लागत का भव्य आधुनिक आडिटोरियम का निर्माण कराया है। इसका नाम कृष्णा राजकपूर आडिटोरियम रखा गया है। जिस स्थान पर इसका निर्माण कराया गया है, वहीं बंगले पर कृष्णा का बचपन बीता था और उसी स्थान से विवाह भी हुआ था। बीते २ जून २०१८ को इस आडिटोरियम का लोकार्पण राजकपूर और कृष्णा के पुत्र रणधीर कपूर, प्रेम चोपड़ा, प्रेमकिशन, उमा चोपड़ा, अन्नू कपूर, कायनात अरोड़ा, सुरेश वाडेकर सहित अन्य कई फिल्मी हस्तियों की मौजूदगी में हुआ था।
बेटे रणधीर से रीवा की मिट्टी मंगाई थी
14 दिसंबर 2015 को रणधीर कपूर आडिटोरियम का भूमिपूजन करने के लिए रीवा आए थे। उस दौरान कृष्णा को भी आना था लेकिन वह बीमार चल रही थीं। रणधीर को उसी दिन रात्रि में ही रवाना होना था लेकिन भूमिपूजन के बाद उन्होंने मां को फोन लगाकर बताया कि जिस स्थान पर वह रहती थी वहां आधुनिक आडिटोरियम के लिए भूमिपूजन कर दिया है। इसके बाद कृष्णा ने कहा कि घर के पास ही पीपल का पेड़ था, जिसकी पूजा पूरा परिवार करता था, वह कितना बड़ा हो गया है। उसकी फोटो लेकर आना। मां की यह इच्छा पूरी करने के लिए रणधीर रात्रि में रुक गए और दूसरे दिन सुबह फिर उसी स्थान पर पहुंचे और पीपल के पेड़ की फोटो खिंचवाई और मां के कहने के अनुसार बंगले के आंगने से मिट्टी भी लेकर मुंबई गए। यह घटनाक्रम उन्होंने आडिटोरियम के लोकार्पण के दौरान साझा किया।
सीएम ने जताया दुख, बोले वह रीवा की बेटी थी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर शोक संवेदना जाहिर की है। कहा है कि कृष्णा रीवा की बेटी थी, मन दुखी है कि वहां पिछले दिनों आडिटोरियम के शुभारंभ के अवसर पर उनसे भेंट करने का अवसर मिला था लेकिन अपरिहार्य कारणों से मैं नहीं पहुंच सका। ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।
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रीवा वालों को आरके स्टूडियो में रोक नहीं थी
कृष्णा के निधन पर शोक संवेदना जाहिर करते हुए इतिहासकार असद खान बताते हैं कि वह मुंबई गए थे तो चेंबूर स्थित आरके स्टूडियो देखने की इच्छा हुई। पहले परिचय पूछा गया, जब रीवा का नाम आया तो वहां मौजूद लोगों ने बताया कि रीवा से आने वाले लोगों के लिए कोई रोकटोक नहीं है। असद बताते हैं कि कृष्णा राजकपूर के विवाह की तैयारियों में हाथ बंटाने वाले मुमताज खान, हनीफ खान, तोहा खान के साथ हुई पूर्व की चर्चाओं का हवाला देते हुए बताया कि बारात देखने पूरे विंध्य से लोग जुटे थे।
आडिटोरियम लोकार्पण के दौरान डाक्यूमेंट्री तैयार करने वाले विजय कुमार बताते हैं कि कपूर परिवार और उनके कई रिश्तेदारों से चर्चा का अवसर मिला। जिसमें सबने बताया कि परिवार की खुशहाली के लिए वह हमेशा प्रयासरत रहती थी। घर और आरके स्टूडियो में अक्सर पार्टियां आयोजित की जाती थी, जिसमें वह वाहनों के ड्राइवर, चौकीदार और अन्य नौकरों तक के भोजन करने का ख्याल रखती थी। पूरे जीवन संपूर्ण गृहणी बनकर उन्होंने काम किया।
Published on:
02 Oct 2018 03:30 am
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