
MBA Degree but did not get a job
रीवा। मूर्तिकला की कूची थामने से पहले रोजगार के लिए खूब भटके। अच्छी पढ़ाई के बाद भी नौकरी नसीब नहीं हुई तो पिता के व्यवसाय को ही करियर बनाने को मजबूर हुए। लाखों के पैकेज पर काम करने का अरमान आंसूओं में बह गया।
ये दर्द भरी कहानी है एमबीए डिग्रीधारी विपिन चौधरी की। जिन्होंने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से एमबीए किया है। 2016 में इंडस्ट्रियल रिलेशन एंड पर्सनल मैनेजमेंट का कोर्स अच्छे अंकों से साथ करने के बाद अच्छी नौकरी की तलाश शुरू की। दो साल तक बैंकों, बड़े कॉलेजों, कंपनियों की चौखट पर गए। बेरोजगारी के दौर में वे भी साक्षात्कार की कतार में लगे लेकिन उनकी डिग्री उन्हें बेहतर नौकरी नहीं दिला सकी। विपिन कहते हैं कि एक कंपनी ने नौकरी आफर की पर सैलरी इतनी नहीं थी कि वे खुद के खर्चे वहन कर पाते। दर-दर भटकने के बाद आखिर पुश्तैनी व्यवसाय को ही संभालने के लिए मजबूर हुए। अब वह पिता गुलाब चौधरी के साथ नवरात्र और गणेश चतुर्थी पर सजने वाले पंडालों में स्थापित होने वाली मां दुर्गा और गणेश की प्रतिमाओं को आकार दे रहे हैं। मानस भवन के पीछे पंडाल में मूर्तियां बनाने में जुटे हैं।
पिता के सपने चकनाचूर
२५ साल से मूर्ति व्यवसाय से परिवार का भरण पोषण करने वाले बाणसागर निवासी गुलाब चौधरी ने बताया कि उनका सपना था कि अगली पीढ़ी को इस व्यवसाय से छुटकारा दूंगा। बेटे-बेटियों को पढ़ा-लिखाकर अच्छी नौकरी के लायक बनाऊंगा। घर की खराब माली हालत के बावजूद बेटे विपिन को एमबीए कराया। एक बेटी एम फिल है तो दूसरी बेटी ने एमएसडब्ल्यू किया है लेकिन तीनों बेरोजगार हैं। पर वह कहते हैं कि उन्हें बेटा और बेटियों पर नाज हैं। अच्छी शिक्षा लेकर अपने काम को बेहतर तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं। बेटे को नौकरी न मिलने से आहत पिता ने कहा कि सरकार की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। रोजगार के लिए ऐसी नीतियां बनानी चाहिए ताकि जो गरीब बच्चों को पसीना बहाकर पढ़ाते हैं कम से कम उनके सपने तो पूरे हो सकें।
...मूर्ति कला में रमा मन
एमबीए डिग्रीधारी विपिन का मन पूरी तरह से मूर्ति कला में रम गया है। गणेश और दुर्गा की मूर्तियों को आकार देने में अपनी पढ़ाई का उपयोग कर रहे हैं। वह बताते हैं कि पहले मूर्तियां सादी बनाई जाती थी अब वे थ्री डी लुक देने में जुटे हैं। हर मूर्ति में कुछ न कुछ अलग डिजाइन है। आस्था के अनुसार, मूर्तियों के साथ-साथ कलश, त्रिशूल, पूजन सामग्री, रंग का भी समावेश मूर्ति कला में कर रहे हैं। जिससे मूर्तियां पहले से कहीं अधिक आकर्षक लगती हैं। इसके अलावा मूर्तियों की बिक्री कैसे बेहतर हो, अच्छे दाम कैसे मिले, मूर्ति कला के व्यवसाय को कैसे फायदे का बनाया जाए, इसका मैनेजमेंट भी देख रहे हैं।
भले कला के पारखी कम हैं, पर आस्था बढ़ गई
विपिन का कहना है कि ये बात दीगर है कि वर्तमान में मूर्ति कला के पारखी कम हैं, लेकिन लोगों में नवरात्र और गणेश चतुर्थी को लेकर आस्था बढ़ गई है। जिससे यह व्यवसाय फल फूल रहा है। हालांकि मंहगाई की मार है पर खरीददारों की कमी नहीं है। हर साल मूर्तियों की डिमांड बढ़ रही है। तीन साल पहले भगवान गणेश की 25 मूर्तियां बनती थी अब 45 बना रहे हैं। मां दुर्गा की मूर्तियों की डिमांड भी डेढ़ गुनी हो गई है। 500 रुपए से लेकर 15 हजार रुपए तक की मूर्ति की बिक्री हो जाती है। साल में यह पर्व आस्था के केंद्र होते हैं जिससे इसमें रोजगार के अवसर हैं।
Updated on:
05 Aug 2018 12:49 pm
Published on:
05 Aug 2018 12:42 pm
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