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शासकीय स्कूलों की गिरती साख के लिए सरकार से लेकर शिक्षक तक सभी हैं जिम्मेदार, ये है बदहाली की वजह

शिक्षाविदों ने दिया सुझाव...

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रीवा

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Ajit Shukla

Aug 04, 2018

Patrika talk show, educationist objected on school system in Rewa

Patrika talk show, educationist objected on school system in Rewa

रीवा। शासकीय स्कूलों की गिरती साख के लिए केवल सरकार को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा। इसके लिए सरकार से लेकर शिक्षक तक जिम्मेदार हैं। अभिभावकों की भूमिका भी इसमें कम नहीं है। उक्त विचार शुक्रवार को ‘पत्रिका’ की ओर से आयोजित टॉक शो में शिक्षा जगत से जुड़ी शख्सियतों की ओर से उठाया गया। टॉक शो में शिक्षाविदें ने कहा, सरकारी स्कूलों की बेहतरी तभी संभव है, जब सरकार, शिक्षक व अभिभावक सभी मिलकर इसके बारे में सोचें। सभी अपने-अपने विचार रखें। कहा कि रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा की ओर से लोकसभा में इस मुद्दे पर सवाल उठाए जाने के बाद स्कूलों की बेहतरी पर सोचना सभी के लिए जरूरी हो गया है।

पूर्व अतिरिक्त संचालक ने कहा...
टॉक शो में उपस्थित उच्च शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अतिरिक्त संचालक पद से अभी हाल में सेवानिवृत्त हुए डॉ. विनोद कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार की ओर से केवल इंफ्रॉस्ट्रक्चर बढ़ाने से कुछ नहीं होने वाला है। बदलाव शिक्षा नीति में होनी चाहिए। नई शिक्षा नीति बनाने की जिम्मेदारी केवल आइएएस अधिकारियों के जिम्मे नहीं होनी चाहिए। इसमें उन शिक्षकों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो जमीनी हकीकत से रूबरू हैं।

शासकीय स्कूल के पूर्व प्राचार्य ने कहा...
शिक्षा विभाग में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे सदानंद मिश्रा ने पांचवीं व आठवीं में पूर्व से चली आ रही बोर्ड परीक्षा प्रणाली को समाप्त किए जाने को सबसे बड़ी भूल बताया। उन्होंने कहा कि उत्तीर्ण और अनुत्तीर्ण होने का सिस्टम कायम रखना चाहिए। बोर्ड परीक्षा प्रणाली को खत्म करना शैक्षणिक गुणवत्ता में हस का कारण बना है। साथ ही उन्होंने स्कूलों में शिक्षक सहित अन्य स्टॉफ की कमी को भी पढ़ाई में बड़ी बाधा बनाया।

राष्ट्रपति पुरस्कृत सेवानिवृत्त वरिष्ठ अध्यापक ने कहा...
सैनिक स्कूल के वरिष्ठ अध्यापक पद से सेवानिवृत्त व राष्ट्रपति पुरस्कृत आरके शुक्ला ने शिक्षकों में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव को शिक्षा की गिरती साख के लिए जिम्मेदार ठहराया। कहा कि वर्तमान में स्कूलों में जो सुविधाएं मिल रही हैं। पूर्व में यह भी नहीं थी। पेड़ के नीचे कक्षाएं लगती थी। शिक्षक कर्तव्यों का ईमानदारीपूर्वक निर्वहन करते थे। इसीलिए देश की शिक्षा व्यवस्था का दबदबा विदेशों तक में कायम रहा है। शिक्षक जिम्मेदारी समझें तो स्थिति बदलेगी।

सेवानिवृत्त प्राचार्य ने कहा कि...
शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए डॉ. सूर्यभान सिंह ने कहा कि अभिभावक शासन से मिलने वाली नि:शुल्क सुविधाओं की कीमत नहीं समझते हैं। निजी स्कूल में पढ़ाने के बजाए समाज का प्रतिष्ठित वर्ग सरकारी स्कूल में बच्चों का प्रवेश कराए तो स्थिति बदलेगी। सुविधा मुफ्त में मिल रही है, इसलिए उसे दोयम दर्जे का मान लिया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में भी कम निजी स्कूल जैसी व्यवस्था लागू कर शुल्क लेना चाहिए।

प्रयोगशाला बन कर रह गया शिक्षा विभाग
सरकारी स्कूलों में शैक्षणिक उन्नयन के लिए चंद वर्षों में इतने बदलाव किए गए कि विभाग प्रयोगशाला बनकर रह गया। जैसे ही सरकार व शासन स्तर के अधिकारी बदलते हैं, व्यवस्था बदल जाती है। व्यवस्था में बदलाव करने वाले ऐसे लोग होते हैं, जिनका शिक्षा और शिक्षा जगत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता है। शिक्षा विभाग का एक अलग कैडर होना चाहिए। जिसमें शामिल अधिकारी विभाग में ही लंबे समय तक बने रहें। शिक्षा में उन्नयन तभी संभव होगा।
डॉ. कौशलेंद्र मणि त्रिपाठी, जिलाध्यक्ष, मप्र. शिक्षक संघ रीवा।

शिक्षकों पर थोप दिए गए ढेरों कार्य
शैक्षणिक उन्नयन शिक्षकों के बिना संभव नहीं है। एक ओर जहां स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। वहीं दूसरी ओर शिक्षकों पर ढेरों अतिरिक्त कार्य थोप दिए गए हैं। शिक्षकों को अतिरिक्त कार्य से मुक्त रखकर उन्हें केवल शैक्षणिक उन्नयन का दायित्व सौंपा जाना चाहिए क्योंकि जब तक शिक्षक पढऩे व पढ़ाने के अलावा दूसरे कार्यों में लगा रहेगा, स्कूलों में पढ़ाई का पटरी पर आना मुमकिन नहीं है। कार्रवाई से बचने शिक्षक दूसरे कार्यों में अधिक पढऩे-पढ़ाने पर कम ध्यान दे पाता है।
नरेंद्र सिंह, जिला उपाध्यक्ष, मप्र. शिक्षक संघ रीवा।

टॉक शो में यह मुद्दे भी उठाए गए
- स्कूलों में स्वच्छता पर जोर दिया जा रहा है लेकिन सफाई कर्मी नहीं है।
- जनप्रतिनिधि व अफसरों को सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहिए।
- स्कूल में छात्रों को आर्थिक लाभ देने के लिए शिक्षा देने के लिए बुलाया जाए।
- निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना स्टेटस सिंबल बन गया है, सोच बदलना होगा।
- शासन स्तर से नई शिक्षा नीति शिक्षाविदें की मदद से तैयार करना चाहिए।
- शासन स्तर पर बैठे अधिकारी पढ़ाई पर अधिक योजनाओं पर कम गौर करें।
- स्कूलों की बिल्डिंग पर ही नहीं शिक्षकों की कमी व सुविधा पर भी ध्यान दिया जाए।
- स्कूल शिक्षा में बच्चों की नींव कमजोर होती है, असर उच्च शिक्षा पर पड़ रहा है।