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यादों में रहेंगे नीरज ! जब तक मंदिर और मस्जिद हैं, मुश्किल में इंसान रहेगा..

  - मशहूर कवि गोपालदास नीरज के निधन पर साहित्य जगत में शोक

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रीवा

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Mrigendra Singh

Jul 19, 2018

rewa

Poet Gopaldas Neeraj dies, neeraj Life introduction

रीवा। जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा। जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा। हाथ मिले और दिल न मिलें, ऐसे में नुकसान रहेगा। जब तक मंदिर और मस्जिद हैं मुश्किल में इंसान रहेगा। ....इस तरह की कई यादगार कविताएं लिखने वाले मशहूर कवि गोपालदास नीरज का निधन हो गया है।
रीवा से उनका गहरा नाता रहा है। वह कई बार यहां पर बड़े कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए आए और अपनी रचनाओं से लोगों में दिल में उतरे। साहित्य प्रेमियों के साथ ही आम लोगों में भी प्रशंसकों का बड़ा वर्ग ऐसा है जो उनकी रचनाओं का कायल है। सायं जैसे ही यह खबर आई कि नीरज अब नहीं रहे तो सोशल मीडिया में श्रद्धांजलि देने का सिलसिल चल पड़ा। देर रात तक उनकी रचनाओं को लोग याद करते रहे।
रीवा में उनके कार्यक्रमों की जानकारी भी विस्तार से देते रहे। वर्ष 2001 में मनगवां के नजदीक तिवनी गांव में राष्ट्रीय स्तर का साहित्यक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उसमें यादगार रचनाएं उन्होंने पेश की थी, दर्शकों की बढ़ती मांग के चलते भोर तक उन्होंने कविताएं पढ़ी थी।

20 जुलाई को आखिरी कार्यक्रम पेश किया था
20 जुलाई 2005 को अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के अवसर पर भी बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जहां पर उन्होंने कई यादगार रचनाएं पेश की थी। उनके निधन के बाद कई रचनाएं याद की गई जिसमें 'कफन बढ़ा तो किसलिए, नजर डबडबा गई। श्रृंगार क्यों सहम गया, बहार क्यों लजा गई। न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस सिर्फ इतनी बात है, किसी की आंख खुल गई, किसी को नींद आ गई।Ó इसके अलावा अन्य कई रचनाएं याद की गई।

पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किए जाने का रहा मलाल
रीवा के कार्यक्रम में नीरज ने सार्वजनिक रूप से व्यवस्था पर व्यंग्य कसते हुए कहा था कि उन्हें तो कवि सम्मेलनों का कवि माना जाता है।

साहित्यकारों ने दी श्रद्धांजलि
नीरज जी की रचनाओं में अध्यात्म और चिंतन रहता था। उनके लिखे गीत इतिहास बन गए हैं। रीवा में उनका कई बार आना हुआ, उनके निधन के खबर के बाद से उनकी रचनाएं सामने आ रही हैं। जिस तरह के वह उम्दा लेखक थे उस हिसाब से पाठ्यक्रमों में जगह नहीं मिल पाना अफसोस जनक है।
डॉ. चंद्रिका प्रसाद चंद्र, अध्यक्ष हिन्दी साहित्य सम्मेलन
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बचपन में जिन्हें पढ़ा, उनके साथ मंच साझा करने का गौरव भी हासिल हुआ। 13 वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस पर उनका बड़ा कार्यक्रम हुआ था। जितना यश उन्हें मिला वह किसी भी कवि के लिए धन्यता का विषय है। कई बार विडंबनाएं इतिहास को प्रभावित करती हैं, उन्हें जिस तरह से उनके बारे में छात्रों को पढ़ाया जाना चाहिए, वह अवसर नहीं दिया गया।
प्रो. दिनेश कुशवाह, विभागाध्यक्ष हिन्दी- विवि रीवा
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महाकवि नीरज के देहावसान पर मैं हैरान हूं। लोक भाषा विकास परिषद तिवनी और नगर निगम रीवा द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में वह पहुंचे। उनका जाना गीतों के एक युग का समापन है। व्यक्तिगत रूप से अच्छे संबंध होने के चलते मन व्यथित है। लंबे अर्से तक उनकी यादें बनी रहेंगी।
जगजीवनलाल तिवारी, कवि