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क्षेत्र में बने अमृत सरोवरों में हो रही खेती, निर्माण के समय की गई सिर्फ खानापूर्ति

जल संरक्षण के लिए शुरू की गई है योजना, 12 से 14 लाख रुपए तक की लागत से हुआ निर्माण

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Farming is being done in the nectar ponds built in the area.

इस तरह अमृत तालाब में हो रही खेती

बीना. ग्रामीण क्षेत्रों में जल संरक्षण के लिए अमृत सरोवर योजना शुरू की गई थी, लेकिन सही तरीके से क्रियांवयन न होने से उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा है। कई जगहों पर सिर्फ खानापूर्ति की गई है, जहां बारिश का पानी बहुत कम मात्रा में एकत्रित होता है।
जानकारी के अनुसार ब्लॉक में कुल 17 अमृत सरोवर बनाए गए हैं, जिनकी लागत 12 से 14 लाख रुपए है। सरोवर बनाते समय अधिकारियों द्वारा ध्यान नहीं दिया और सिर्फ खानापूर्ति कर दी गई, जिससे बारिश का पानी कुछ दिनों में ही निकल जाता है और किसान इनमें खेती कर रहे हैं। यदि पानी का सही भराव होता, तो खेती नहीं हो पाती। हांसुआ में बनाए गए तालाब में गेहूं की बोवनी की गई थी। इसी तरह बेलई गांव में भी अमृत तालाब बनाया गया, लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है और यहां भी किसान खेती करते हैं। अन्य जगहों पर भी कुछ ऐसी ही स्थिति है और इसके बाद भी अधिकारी सबकुछ सही बता रहे हैं। जबकि इसकी शिकायतें भी अधिकारियों से की जाती हैं।

दस हजार घन मीटर से ज्यादा होना चाहिए भराव
मनरेगा के तहत बनाए गए सरोवरों में दस हजार घन मीटर से ऊपर पानी होना चाहिए, लेकिन सही तरीके से भराव न होने से इतनी मात्रा में भी पानी नहीं रह पाता है। बारिश रुकते ही कई जगह तलहटी में पानी बचता है।

हो रहा है सरोवरों में भराव
ब्लॉक में 17 सरोवर बनाए गए हैं। सभी तालाबों में पानी का भराव होता है, जो सिंचाई के कारण खाली हो जाते हैं। सरोवरों को क्षति न पहुंचे, इसलिए निरीक्षण किया जाता है। यदि किसान खेती कर रहे हैं, तो जांच की जाएगी।
टीआर निगम, एइ