
दमोह. भारत, इंडिया और अब शाइनिंग इंडिया... इनकी झलक तो हमें बड़े-बड़े शहरों में खूब देखने मिलती रहती है, लेकिन बदलते भारत में भी कहीं ऐसा हिस्सा है जो आपको ले जाएगा उस समय में, जबकि आपको पुराना भारत नजर आने लगेगा। कोई वृद्ध अगर आपके साथ इस जगह पर जाता है तो खुद को बोलने से नहीं रोक पाएगा। वह यहां का नजारा देखकर पुराने भारत पर अपना व्यख्यान जरूर व्यक्त करेगा। ऐसे ही पुराने भारत के दर्शन के लिए आपको आना होगा दमोह जिले के उस गांव में, जहां का कल्चर अब भी 100 साल पुराना ही हैं।
करीब 300 की आबादी वाला यह ऊकरपार गांव दमोह जिले की दमोह विधानसभा क्षेत्र में ही आता है। ऊकरपार गांव झापन ग्राम पंचायत में आता है जो शहर से करीब 4० किलोमीटर दूर है। इस गांव तक पहुंचना वैसे तो आम नहीं है, लेकिन यहां रहने वाले लोग अपनी देशी व्यवस्था या जुगाड़ के माध्यम से मुख्य संसाधनों से जुडऩे या उन तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। उसके बाद ही उन्हें डिजिटल इंडिया की झलक देखने मिलती है।
पुराना भारत क्यों?
एक गांव की व्यवस्था का वर्णन पुराने भारत से क्यों? सबसे पहले यह स्पष्ट करना होगा। दरअसल, ऊपरपार गांव के मौजूदा हालातों को देखकर हर कोई इसे अति पिछड़ा मानने तैयार हो जाएगा। डिजिटल इंडिया, अटल ज्योति सहित सरकार ही हजारों योजनाओं के बीच इस गांव तक जुडऩे के लिए न तो अब तक सड़क मार्ग बन सका है और न ही पानी, बिजली सहित अन्य मूलभूत सुबिधाएं हैं। यहां के वासिंदे आज भी करीब सौ वर्ष पुराना जीवन जीने मजबूर है। अनाज पीसने के लिए यहां हाथ चक्की भी देखने मिलती है। तो पानी भरने का संसाधन नदी ही है। और भी ऐसे कई नजारे हैं जिनमें पुराना भारत नजर आता है।
वित्तमंत्री की विधानसभा का है नजारा
गौरव नहीं इसे विडंबना कहना उचित होगा, क्योंकि मध्यप्रदेश के वित्तमंत्री जयंत मलैया के निर्वाचन क्षेत्र का यह गांव है। जहां मूलभूत सुविधाएं तो दूर की बात सरकारी योजनाएं तक नहीं है। इस आदिवासी क्षेत्र के लोगों ने मतदान तो किया था, लेकिन लोगों के अनुसार उसके बाद न तो विधायक जी उनके गांव पहुंचे और न किसी अधिकारी ने अब तक उनकी सुध लेना जरूरी समझा। आलम ये है कि यहां के लोग अपने विधायक का नाम भी नहीं जानते है।
ये हैं यहां की मुख्य समस्याएं
पानी-
यहां पानी की मुख्य समस्या है। गांव में एक-दो हैंडपंप तो नजर आते है, लेकिन काम नहीं करते। एक से रुक-रुक कर पानी आता है, लेकिन वह भी दूषित रहता है। पीने के पानी के लिए गांव की महिला, बच्चे सिर पर बर्तन रखकर ३ किलोमीटर दूर निकली नदी जाते हैं। जहां से पानी भरकर लाते है। नदी का पहुंच मार्ग भी खतरीला है। जबकि नदी में भी मगरमच्छ आदि होते हैं। ऐसे में यहां की महिलाएं, बच्चे समूह में ही एक या दो समय पानी भरने जाते हैं।
सड़क-
गांव को जोडऩे के लिए यहां पक्का सड़क मार्ग नहीं है। पगदंडी और कच्चे मार्ग के माध्यम से ही ऊपरपार पहुंचा जा सकता है। यहां गांव में भी सड़कें नजर नहीं आती है। सड़क के लिए गांव से निकलकर ग्रामीणों ने अधिकारियों के दरवाजे तो कई खटखटाएं, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। नतीजतन, अब ऐसे ही जीवन काटना उनकी आदत बन चुकी है।
बिजली-
गांव में आज भी सूरज ही उजियारे का कारण है। सूरज के ढलते ही गांव में घुप्प अंधेरा छा जाता है। कोई १०-१२ साल पहले गांव में बिजली जरूर पहुंची थी, लेकिन क्षणिक सुख का ही वह मौका था। इसके बाद से लगातार यहां के वासिंदे बिना बिजली के जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दो दिन पहले इसे लेकर हर्रई केंद्र पर दरकार लगाई गई है।
संसाधन-
पानी, बिजली, सड़क के अलावा भी यहां उन संसाधनों का अभाव है। जिनके बगैर इस समय जीना मुमकिन नजर नहीं आता। मोबाइल, टीवी यहां देखने तो मिलते है, लेकिन उपयोगी साबित नहीं होते। रेडियो जरूर चलता नजर आता है। नेटवर्क के अलावा बिजली के अभाव में यहां के लोग गेहूं, चना स्व निर्मित पत्थर की आटा चक्की को हाथों से चलाकर ही पीसते हुए नजर आते है। इसके बाद ही घर में भोजन तैयार होता है। इसी तरह अस्पताल सहित अन्य सरकारी सुविधाएं भी यहां नहीं है।
क्या कहते है ग्रामीण
गांव की महिला विनीताबाई, दुर्गाबाई, ममता रानी, संगीता, प्यारीबाई, प्रेमरानी, राधारानी, रजनी, रीना बाई और पुरुष राजा सिंह,ओंकार, कैलाश, लखन, दरबार का कहना है कि इन समस्याओं के बीच हमने काफी प्रयास किए हैं। सरकारी दफ्तरों में अनेक बार दरकारें लगाईं, लेकिन एक भी मर्तबा कोई यहां झांकने तक न आया। मजबूरन हम कोशिश करते-करते हार गए और अब इस तरह से जीवन जीने की हमें आदत हो चुकी है। किसी सरकार, जनप्रतिनिधि और सरकारी नुमाइंदों पर अब भरोसा नहीं रहा है।
गांव की समस्याओं लेकर अनेक बार प्रयास किए। पांच दिन पहले ही मंत्रीजी से मुलाकात की थी। जहां से उन्होंने एक पत्र लिखकर दिया था। जिसे कलेक्टर को दिया है। अब तक कोई समस्या हल नहीं हुई। ऊपर से जामन और ऊपरपार गांव अभ्यारण की जद में आने से स्टे भी लग गया है। जिससे यहां के वासिंदो को सरकारी योजना और मजूदरी का लाभ भी नहीं मिल रहा है।
रामसिंह, सरपंच झापन ग्राम पंचायत
जामुन, ऊकरपार गांव अभ्यारण की जद में आने के कारण यहां विकास संभव नहीं हो पा रहा है। इसके लिए मंत्रीजी द्वारा लगातार इन गावों के विस्थापन का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन गांव में लोगों की अनुपस्थिति के कारण जरूरी दस्तावेज एक साथ एकत्रित नहीं हो पा रहे है। गांव की सभी जानकारी है। हाल ही में मंत्रीजी ने कलेक्टर को गांव में टैंकर के माध्यम से पानी पहुंचाने के निर्देश दिए है। जबकि गांव तक सोलर लाइट पहुंचाने का प्रयास भी जारी है।
हुकुम सिंह, निज प्रतिनिधि वित्त मंत्री जयंत मलैया
Published on:
09 May 2018 12:55 pm
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