बीना. श्री देव रघुनाथ बड़ा मंदिर में चल रही श्रीमद्भागत कथा के तीसरे दिन कथाव्यास महंत राधामोहन दास महाराज ने भगवान श्रीहरि के चौबीस दिव्य अवतारों की कथा सुनाते हुए अवतारों का उद्देश्य बताया।
उन्होंने बताया कि धर्म की स्थापना, अधर्म का विनाश और भक्तों की रक्षा अवतार लेने का उद्देश्य था। प्रभु मत्स्य रूप में आए, तो सृष्टि की रक्षा की। कूर्म अवतार में मंदराचल को पीठ पर धारण कर देवासुर संग्राम में सहायता की। वराह रूप में धरती माता को रसातल से निकाल लाए। नृसिंह रूप में अपने परमभक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए स्वयं खंभे से प्रकट हुए। इसी प्रकार वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध आदि अवतारों का उद्देश्य केवल यही है कि जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। उन्होंने महर्षि वेदव्यास जी के मोह की कथा सुनाई। व्यासजी ने वेदों का विभाग किया, महाभारत जैसा महाग्रंथ लिखा, 18 पुराणों की रचना की, लेकिन फिर भी उनके मन में एक अदृश्य अशांति बनी रही। तब नारदजी ने उनसे कहा कि आपने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की बातें तो लिखीं, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति को केंद्र में नहीं रखा, इसलिए मन को शांति नहीं मिल रही। इसी उपदेश के बाद व्यासजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की, जिसमें केवल और केवल श्रीहरि की कथा है, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का सार है।
भाव के भूखे हैं भगवान
कथाव्यास ने कहा कि भगवान संपत्ति और वैभव के नहीं अपितु भाव के भूखे हैं और जहां भाव होता है वहां भगवान विराजते हंै। कलियुग में न तो यज्ञ संभव है, न तप, न दीर्घ व्रत। कलियुग में केवल नाम का ही आधार है। राम नाम, कृष्ण नाम, नारायण नाम यह नाम नहीं, स्वयं प्रभु का साक्षात् रूप हैं और नाम के उच्चारण मात्र से ही पापों का नाश होता है। कथा में भजनों पर श्रद्धालुओं ने आनंदित होकर नृत्य किया।
Published on:
06 Jul 2025 11:59 am