
देवबंद. देशभर में फैले कोविड-19 (COvid-19) संक्रमण को देखते हुए किए गए लॉक़डाउन (Lockdown) के मद्दे नजर देश में सभी तरह के सामाजिक और धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लिहाजा, मस्जिदों में भी सामूहिक नमाज पढ़ने पर पाबंदी है (Namaz in Mosque)। यह पाबंदी इसलिए भी ज्यादा प्रभावी है, क्योंकि देशभर के तमाम उलेमा और इस्लामी संगठनों की ओर से घरों में रहकर ही नमाज अदा करने की सलाह दी गई है। इसका असर भी साफ देखा जा रहा है। आमतौर पर रमजान के दिनों में मस्जिदों में नमाजियों की तादाद बढ़ जाती थी। लोग बड़ी संख्या में नमाज पढ़ने के लिए घरों से मस्जिद का रुख करते थे। पहले तो हालत ये हो जाती थी कि मस्जिदें छोटी पड़ जाती थीं। लोगों को बाहर सड़कों पर नमाज पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ता था।
मस्जिद में तरावीह छूटी तो घर में तिलावत की शुरू
रात के वक्त होने वाली तरावीह की विशेष नमाज में भी अलग ही नजारा देखने को मिलता था। इस नमाज में पूरे रमजान में एक बार कुरआन शरीफ खत्म किया जाता था। हर गली-मुहल्ले की मस्जिद में रात होते ही तरावीह की नमाज में होने वाली कुरआन की तिलावत से मस्जिदों का माहौल खुशनुमा और आध्यात्मिक हो जाता था। लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से रमजान में माहौल पूरी तरह बदला-बदला नजर आ रहा है। किसी भी मस्जिद में जमात (सामुहिक) नमाज नहीं हो रही है। मस्जिदों में सिर्फ इमाम, मुअज्जिन और मुतवल्ली ही नमाज अदा कर रहे हैं। बाकी सभी लोगों को घर पर ही नमाज और इबादत के लिए कहा गया है। इस वजह से रमजान के पवित्र महीने में भी मस्जिदें विरान हैं। हालांकि, लोगों में इबादत का शौक और प्रतिबद्धता कम नहीं हुई है। लोग मस्जिदों की जगह घर में ही रहकर नमाज पढ़ने के साथ ही कुरआन शरीफ की तिलावत भी कर रहे हैं। देवबंद निवासी मो. अश्फाक ने बताया कि इस बात से मन बहुत दुखी है कि रमाजन के महीने में तरावीह में कुरआन शरीफ सुनने को नहीं मिल पा रहा है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसके बदले हमने घर में खुद कुरआन शरीफ की तिलावत शुरू कर दी है। इससे दिल को काफी सुकून मिल रहा है।
काम से छुट्टी की वजह मजहब की ओर बढ़ा रुझान
लॉकडाउन की वजह से कल-कारखाने बंद होने की वजह से ज्यादातर लोग अपने-अपने घरों में खाली बैठे हैं। ऐसे वक्त में रमजान आने पर इस वक्त को गनीमत मानते हुए लोग बढ़-चढ़कर इबादत कर रहे हैं। देवबंद निवासी सलीम अहमद ने बताया कि रमजान के महीने में भी काम पर जाने की वजह से पहले इस मुक्कद महीने की ताजीम नहीं कर पाता था, यानी जितनी इबादत इस महीने में करनी चाहिए, समय की कमी और थकान की वजह से उतनी इबादत नहीं कर पाता था। अब चूकि, काम बंद है और घर पर खाली बैठे हैं, लिहाजा खाली वक्त इबादत और दूसरे मजहबी कामों में लगा रहा हूं।
इफ्तारी की जगह राशन से मदद
रमजान के महीने में इफ्तारी का अपना महत्व होता है। इफ्तारी के लिए हर घर से कुछ न कुछ मस्जिदों में नमाजियों के लिए भिजवाया जाता था। इसके साथ ही सभी लोग अपन-पराए सभी के घर इफ्तारी भेजा करते थे। वहीं, कुछ रसूखदार लोग अपने घर पर सामूहिक इफ्तार पार्टी का भी आयोजन किया करते थे। लेकिन लॉकडाउन ने सामूहिक इफ्तार पार्टी के मजे को भी किरकिरा कर दिया है। अब न तो लोग मस्जिदों में फल और पकवान पहुंचा रहे हैं और न हीं सामूहिक इफ्तार पार्टी का ही आयोजन हो रहा है। लेकिन, लोगों के सवाब कमाने के इस जरिए का दूसरा रास्ता निकाल लिया है। इलाके के अमीर तब्के से तअल्लुक रखने वाले लोग लॉकडाउन की इस मुसीबत की घड़ी में गरीबों के घर राशन पहुंचा कर नेकी कमा रहे हैं। मो. शराफत ने बताया कि पहले अपने-परायों को इफ्तार कराया करते थे, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इफ्तार पार्टी इस बार नहीं करा पा रहे हैं। लिहाजा, इसके बदले हमने गरीबों को राशन पहुंचाने का काम कर रहे हैं।
बाजार भी है बेरौनक
रमजान के महीने में मुस्लिम इलाके में गुलजार रहने वाला बाजार भी इस बार सन्नाटे का शिकार है। पहले रमजान आते ही जहां बाजार तरह-तरह की सवइयों से सज जाती थी। वहीं, लॉकडाउन की वजह से इस बार बाजार से सेवई गयब सी हो गई है। एक दो दुकानों पर मिल भी रही है तो 80-150 रुपए किलो बिकने वाली फैनी (लच्छा सेवई) इस बार 200-300 रुपए किलो बिक रही है। वहीं, फल मार्केट में फलों की आवक तो है, लेकिन काम बंद होने की वजह से लोगों के पास पैसों की काफी दिक्कत होने की वजह से खरीदार कम आ रहे हैं। फल विक्रेता यासीन ने बताया कि पहले रमजानों में जितना माल बिकता था। इस बार उसका आधा भी सेल नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तो काम बंद होने से लोगों के पास पैसे नहीं हैं। वहीं, मजदूरों के चले जाने से शहरों की जनसंख्या भी कम होने से मांग में कमी आई है।
Published on:
04 May 2020 01:55 pm
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