
Teacher Smviliyan Satna
सतना. अध्यापकों के आंदोलन के बाद सरकार ने अध्यापक संवर्ग को स्कूल शिक्षा विभाग में लाने की बात कही। राजपत्र में इसका पूरा खाका पेश किया गया। 10 अगस्त को इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिया। शुरुआती दौर में अध्यापकों ने इसे सरसरी तौर पर पढ़ा और काफी खुश भी हुए। महज कुछ ही लोगों को आपत्ति थी, वह भी आदेश में दी गई निर्हताओं पर। इसमें था कि न्यायालयीन मामले लंबित होने और विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्णय होने तक उनकी नियुक्ति नहीं हो पाएगी।
अब जैसे-जैसे इसके मायने और गंभीरता समझते जा रहे हैं वैसे-वैसे अध्यापकों में तनाव बढ़ता जा रहा है। जिस विषय को लेकर अध्यापक काफी खुश से वह था शिक्षा विभाग में संविलियन। हकीकत यह है कि अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन नहीं हो रहा है बल्कि उनकी नए सिरे से नियुक्ति हो रही है। यही वजह है कि स्कूल शिक्षा विभाग ने इसमें नियुक्ति का विकल्प भी दे रखा है। अर्थात अध्यापक चाहें तो वह अपनी नई सिरे से नियुक्ति ले सकता है अथवा अध्यापक बना रह सकता है।
आदेश में संविलियन शब्द ही नहीं
विभाग के जानकारों की मानें तो स्कूल शिक्षा विभाग ने अपने आदेश क्रमांक एफ-1-59/2018/20-1 भोपाल दिनांक 10/08/2018 में नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया का जो ब्योरा प्रस्तुत किया है वह पूरी तरह से अध्यापकों के साथ छल है। इस पूरे आदेश में कहीं भी संविलियन शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। सभी जगह नियुक्ति का ही उल्लेख है। साथ ही जिस नियम के तहत नियुक्ति की बात कही गई है उसमें भी भर्ती नियम ही लिखा गया है न कि संविलियन।
ऐसे समझें विभाग के खेल को
जानकारों ने बताया, अध्यापक संवर्ग के प्रकरणों में संविलियन एवं नियुक्ति में अंतर को इस तरह से समझा जा सकता है। अध्यापक संवर्ग का गठन 1/04/2007 से किया गया था। इसमें शिक्षाकर्मी एवं संविदा शिक्षकों को एकजाई किया गया था। 1998 में शिक्षाकर्मी के रूप में नियुक्त होने वाले कर्मचारियों को अध्यापक संवर्ग में संविलियन के नाम से लाया गया और 2001 में संविदा शिक्षक को अध्यापक में नियुक्त किया गया। शासन ने अध्यापक संवर्ग में संविलियन हुए शिक्षाकर्मियों की पूर्व की सेवाओं को पदोन्नति, क्रमोन्नति, वरिष्ठता के लिए जोडऩे का प्रावधान राजपत्र में किया। वहीं संविदा शिक्षकों के लिए उनकी संविदा के रूप में की गई सेवाओं को पदोन्नति, क्रमोन्नति व वरिष्ठता के लिए जोडऩे का प्रावधान आज तक राजपत्र में नहीं किया गया। 21 फरवरी 2013 में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा इस संबंध में जारी निर्देश में स्पष्ट किया गया कि संविदा शाला शिक्षक के पद पर की गई सेवा परिवीक्षा के अंतर्गत है। इस अवधि को वरिष्ठता पदोन्नति, क्रमोन्नति की गणना के लिए नियमों में संशोधन भूत लक्षी प्रभाव से किया जाएगा जाएगा, क्योंकि संविदा तदर्थ के रूप में की गई सेवाओं को पदोन्नति, क्रमोन्नति अथवा वरिष्ठता की गणना में लेने का मूलभूत नियम नहीं है। आज भी आयुक्त लोक शिक्षण कार्यालय के द्वारा जिले में अनैतिक दबाव डालकर बिना पैतृक विभाग से नियमों में सुधार हुए संविदा अवधि को जोड़कर पदोन्नति, क्रमोन्नति वरिष्ठता की कराई गई प्रक्रिया विसंगति पूर्ण मानी जा रही है।
सतना में हो चुका विवाद
जिले में 2015 में अध्यापक संवर्ग की पदोन्नति नियमानुसार 7 साल की सेवा अध्यापक संवर्ग में पूर्ण न होने पर तत्कालीन सीइओ जिपं द्वारा शासन से मांगा गया मार्गदर्शन चाहा गया था। इसके प्राप्त न होने पर पदोन्नति नहीं की गई थी। इसी क्रम में जिला पंचायत द्वारा क्रमोन्नति के लिए अध्यापक संवर्ग में 12 साल की सेवा पूर्ण न होने पर क्रमोन्नति के लिए मार्गदर्शन चाहा गया जो शासन से नहीं मिला। लेकिन आयुक्त लोक शिक्षण ने फरवरी 2016 में विधानसभा प्रश्न के दबाव में पत्र जारी किया था, जिसमें अध्यापक संवर्ग के कर्मचारियों की क्रमोन्नति, पदोन्नति व वरिष्ठता के लिए उनके द्वारा संविदा के रूप में की गई सेवाओं को गणना में लेते हुए लाभ देने कहा गया। जिस आधार पर सशर्त क्रमोन्नति सितंबर 2016 में दी गई थी।
अब भी हो रहे गुमराह
जानकारों का कहना है कि नई नीति में 1 जुलाई 2018 से नए संवर्ग का गठन को लेकर संविलियन के नाम पर गुमराह किया जा रहा है। पूरे राजपत्र में संविलियन शब्द का कहीं उपयोग नहीं है। नियुक्ति शब्द उल्लेखित है। विकल्प पत्र अपने आप में बहुत स्पष्ट है। जो अध्यापक इस स्थिति को स्वीकार कर नए संवर्ग में आएंगे वे पुरानी सेवाओं का उसी तरह से त्याग करेंगे जैसे किसी विभाग में अतिशेष अमला दूसरे विभाग में आने पर पूर्व की सेवाओं को खो देता है। नवीन वरिष्ठता संधारित होगी।
राजपत्र की गलत व्याख्या
शिक्षा विभाग के जानकारों का कहना है कि अध्यापक संवर्ग का एक तबका राजपत्र के बिंदु 17 वरिष्ठता के निर्धारण की गलत व्याख्या कर रहा है। जबकि बिंदु 17.1 में जो कहा गया है उसका आशय यह है कि प्राथमिक शिक्षक जिला स्तरीय संवर्ग का होगा। जिनकी वरिष्ठता निकाय की बजाय जिला स्तर पर संधारित होगी। इस आधार पर इस वरिष्ठता के लिए क्रम का निर्धारण नियुक्ति आदेश व चयन सूची के क्रम के अनुसार रहेगा। सहज भाषा में इस नए संवर्ग में सभी को एक नंबर पर नहीं रखा जा सकता, इसलिए उनका जो क्रम निर्धारित होगा वह इस आधार पर होगा। इसे सेवा की अन्य शर्तों में स्पष्ट भी कर दिया है कि इस नियम के प्रभावशील होने के पूर्व की अवधि के वेतनमान भत्तों एवं योजना आदि को इस सेवा के संदर्भ में प्राप्त करने के हकदार नहीं होंगे।
Published on:
29 Aug 2018 02:03 am
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