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दुनिया का इकलौता मंदिर: जहां दो वीर योद्धा करते हैं मां की आरती, पर दिखाई नहीं देते कभी

दुनिया का इकलौता मंदिर: जहां दो वीर योद्धा करते हैं मां की आरती, पर दिखाई नहीं देते कभी

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maa sharda bhawani temple in maihar

maa sharda bhawani temple in maihar

सतना। मध्य प्रदेश के सतना जिला अंतर्गत त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा का भव्य मंदिर है। पहाड़ा वाली मैहर मंदिर का एक ऐसा रहस्य है जो आज भी वर्करार है। मान्यता है कि यहां दो वीर योद्धा मां की आरती करने आते है पर कभी दिखाई नहीं देते है। शाम की संध्या आरती होने के बाद जब मंदिर का पट बंद करके पुजारी नीचे आ जाते हैं तब मंदिर के अंदर से घंटी की आवाज सुनाई देती है।

कई बार तो पुष्प चढ़े होने के प्रमाण भी मिले है। ये खुद दावा मंदिर के पुजारी देवी प्रसाद ही कर चुके है। आसपास के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि मैहर वाली माता के भक्त आल्हा-उदल अभी भी पूजा करने आते हैं। अक्सर सुबह की आरती करने का सौभाग्य उन्हीं दो भाईयों को मिलता है।

आल्हा और उदल की भक्ति पूरे जगत में चर्चित
मां शारदा के साथ ही आल्हा-उदल की भक्ति पूरे जगत में चर्चित है। मान्यता है कि सदियों से हर दिन भोर में 2 बजे से 5 बजे के बीच मां शारदा के प्रथम दर्शन का सौभाग्य आज भी आल्हा और उदल को ही मिलता है। ये वही आल्हा और उदल है, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था। आल्हा और ऊदल ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी।

12 वर्षों तक की माई की सेवा
आल्हा ने ही 12 वर्षों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। कहा जाता है कि आल्हा माता को माई कह कर पुकारा करते था। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।

मां शारदा की कहानी देवी प्रसाद की जुबानी
पत्रिका की बातचीत में मुख्य पुजारी देवी प्रसाद ने बताया कि 52 शक्ति पीठों में मैहर शारदा ही ऐसी देवी जहां अमरता का वरदान मिलता है। मां की कृपा कब किस भक्त पर हो जाए ये कोई नहीं जानता है। हालांकि माता की एक दर्जन दंतक कथाएं सदयुग, द्ववापर, त्रेता एवं कलयुग में सुनाई जा रही है। देवी प्रसाद ने कहा कि हमारी चौथी पीढ़ी माता की सेवा कर रही है।

1967 से कर रहे पूजा
मैट्रिक की पढ़ाई करने के बाद मैं कई बार पुलिस में सेवा करना चाहा लेकिन माता के बुलावा के कारण नहीं कर पाया। सन् 1967 में हमारे पिता ने माता की पूजा-अर्चना करने का अवसर दिया। उस समय त्रिकूट पर्वत पर वीरान जंगल था। मैंने भी कई कथाएं आल्हा-उदल और पृथ्वी राज सिंह चौहान की सुनी थी। मुझे भी लगा की माता ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया है। आज भी कई भक्त कहते है कि रोजाना सुबह घोड़े की लीद और दातून पड़ी रहती है। वहीं कई लोग दावा कर रहे है कि माता की रोजाना पहली पूजा आल्हा ही करता है। लेकिन मैं इन सब बातों का दावा नहीं कर सकता।

हां, चढ़े थे माता के दर पर पुष्प
हां 54 वर्षों की पूजा के दौरान एक बार मुझे एहसास हो चुका है। एक बार मैं पूजा कर घर चला गया। सुबह मंदिर का पट खोलकर पूजा की शुरुआत की तो पहले से ही पुष्प माता के दर पर चढ़े थे। फिर भी मन नहीं माना तो माता की चुनरी को उठाया तो अंदर भी पुष्प दिखाई दिए। तब से हमें भी एहसास हुआ की मां अजर-अमर है। यह जरूर भक्तों को मन चाहा वरदान देती है। देवी प्रसाद ने बताया कि मैहर वाली शारदा की मुझसे पहले पिता जी हमारे दादा-परदादा पूजा कर चुके है।