सतना: कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह-हर्ष नारायण सिंह
सतना में परिवारवाद की जड़ें काफी गहरी हैं। इसकी शुरुआत स्वतंत्रता के पहले से हो चुकी थी। रामपुर बाघेलान में जन्मे कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ रीवा रियासत के प्रधानमंत्री रहे। 1949 तक वे विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। फिर 1952 से 1960 तक राज्य सभा सदस्य रहे। इसके बाद इनकी विरासत गोविंद नारायण सिंह ने संभाली। वर्ष 1967 से 1969 तक
मुख्यमंत्री रहे। कालांतर में इसी परिवार से हर्ष नारायण सिंह एवं ध्रुव नारायण सिंह ने राजनीति में दखल बनाया। अब इस परिवार की अगली पीढ़ी विक्रम सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं।
सतना में परिवारवाद की जड़ें काफी गहरी हैं। इसकी शुरुआत स्वतंत्रता के पहले से हो चुकी थी। रामपुर बाघेलान में जन्मे कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ रीवा रियासत के प्रधानमंत्री रहे। 1949 तक वे विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। फिर 1952 से 1960 तक राज्य सभा सदस्य रहे। इसके बाद इनकी विरासत गोविंद नारायण सिंह ने संभाली। वर्ष 1967 से 1969 तक
मुख्यमंत्री रहे। कालांतर में इसी परिवार से हर्ष नारायण सिंह एवं ध्रुव नारायण सिंह ने राजनीति में दखल बनाया। अब इस परिवार की अगली पीढ़ी विक्रम सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं।
रीवा: महाराजा मार्तंड सिंह-दिव्यराज सिंह
रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह 1971 में लोकतांत्रिक प्रणाली में शामिल हुए। लोकसभा के आम चुनाव से राजनीतिक शुरुआत की। 2,59,136 मत पाकर पं. शंभूनाथ शुक्ल को पराजित किया। 1977 में यमुना प्रसाद शास्त्री से पराजित हो गए। 1980 में निर्दलीय और 1984 में कांग्रेस से पुन: जीते। 1989 में महारानी प्रवीण कुमारी राजनीति में उतरीं। महारानी लोकसभा का चुनाव यमुना प्रसाद शास्त्री से हार गईं। 1996 में भाजपा से महारानी प्रवीण कुमारी लोस का चुनाव लड़ीं पर सफलता नहीं मिली। मां के बाद बेटे पुष्पराज सिंह ने 1990 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। कांग्रेस से रीवा क्षेत्र से विधायक बनने के साथ मंत्री भी बने। 1990 से 1998 तक विधायक रहे। उनके पुत्र दिव्यराज सिंह 2013 में सिरमौर से विधायक बने। 2018 के चुनाव में भी दावेदार हैं।
रीवा रियासत के महाराजा मार्तण्ड सिंह 1971 में लोकतांत्रिक प्रणाली में शामिल हुए। लोकसभा के आम चुनाव से राजनीतिक शुरुआत की। 2,59,136 मत पाकर पं. शंभूनाथ शुक्ल को पराजित किया। 1977 में यमुना प्रसाद शास्त्री से पराजित हो गए। 1980 में निर्दलीय और 1984 में कांग्रेस से पुन: जीते। 1989 में महारानी प्रवीण कुमारी राजनीति में उतरीं। महारानी लोकसभा का चुनाव यमुना प्रसाद शास्त्री से हार गईं। 1996 में भाजपा से महारानी प्रवीण कुमारी लोस का चुनाव लड़ीं पर सफलता नहीं मिली। मां के बाद बेटे पुष्पराज सिंह ने 1990 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा। कांग्रेस से रीवा क्षेत्र से विधायक बनने के साथ मंत्री भी बने। 1990 से 1998 तक विधायक रहे। उनके पुत्र दिव्यराज सिंह 2013 में सिरमौर से विधायक बने। 2018 के चुनाव में भी दावेदार हैं।
सतना: गुलशेर, रामप्रताप और चतुर्वेदी परिवार
सतना जिले की राजनीति में जाना पहचाना नाम गुलशेर अहमद का भी है। वे क्रमश: विधायक, सांसद और राज्यपाल के पद पर रहे। अब उनके बेटे सईद अहमद सक्रिय राजनीति में हैं। ऐसा ही नाम है पूर्व विधायक रामप्रताप सिंह का। इनके परिवार के ही गोपालशरण सिंह ने भी राजनीति में मजबूत दखल रखा हुआ था। अब इस परिवार की नई पीढ़ी के रूप में गगनेंद्र प्रताप सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं। एक और बड़ा नाम आता है चतुर्वेदी परिवार का। कमलाकर चतुर्वेदी और सुधाकर चतुर्वेदी सक्रिय राजनीति में धमकदार नेता के रूप में जाने जाते हैं। इनकी अगली पीढ़ी के रूप में रत्नाकर चतुर्वेदी का नाम भी राजनीतिक सक्रियता से लिया जाता है।
सतना जिले की राजनीति में जाना पहचाना नाम गुलशेर अहमद का भी है। वे क्रमश: विधायक, सांसद और राज्यपाल के पद पर रहे। अब उनके बेटे सईद अहमद सक्रिय राजनीति में हैं। ऐसा ही नाम है पूर्व विधायक रामप्रताप सिंह का। इनके परिवार के ही गोपालशरण सिंह ने भी राजनीति में मजबूत दखल रखा हुआ था। अब इस परिवार की नई पीढ़ी के रूप में गगनेंद्र प्रताप सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं। एक और बड़ा नाम आता है चतुर्वेदी परिवार का। कमलाकर चतुर्वेदी और सुधाकर चतुर्वेदी सक्रिय राजनीति में धमकदार नेता के रूप में जाने जाते हैं। इनकी अगली पीढ़ी के रूप में रत्नाकर चतुर्वेदी का नाम भी राजनीतिक सक्रियता से लिया जाता है।
सतना: शिवमोहन सिंह-डॉ राजेन्द्र कुमार सिंह
एक और परिवार प्रदेश की राजनीति में अपना स्थान रखता है, वह है डॉ राजेन्द्र कुमार सिंह का। ये कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में विस उपाध्यक्ष हैं। इनके पिता शिवमोहन सिंह पुलिस सेवा के बाद राजनीतिक में कदम रखते हुए विधायक बने। इनकी विरासत राजेन्द्र सिंह ने संभाली और अगली पीढ़ी के रूप में विक्रमादित्य सिंह गिनी भी राजनीति में कदमताल कर रहे हैं।
एक और परिवार प्रदेश की राजनीति में अपना स्थान रखता है, वह है डॉ राजेन्द्र कुमार सिंह का। ये कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में विस उपाध्यक्ष हैं। इनके पिता शिवमोहन सिंह पुलिस सेवा के बाद राजनीतिक में कदम रखते हुए विधायक बने। इनकी विरासत राजेन्द्र सिंह ने संभाली और अगली पीढ़ी के रूप में विक्रमादित्य सिंह गिनी भी राजनीति में कदमताल कर रहे हैं।
सतना: जुगुलकिशोर-पुष्पराज
परिवारवाद का बड़ा कुनबा पूर्व मंत्री जुगुलकिशोर बागरी का है। इनके विधायक रहने के बाद अब बेटे पुष्पराज और देवराज भी जोर आजमाइश कर रहे हैं। दोनों की पत्नियां भी सक्रिय हैं। विधायक शंकरलाल ने तो अपने दम पर मुकाम हासिल किया अब उनके बड़े बेटे राजनारायण तिवारी भाग्य आजमा रहे हैं।
परिवारवाद का बड़ा कुनबा पूर्व मंत्री जुगुलकिशोर बागरी का है। इनके विधायक रहने के बाद अब बेटे पुष्पराज और देवराज भी जोर आजमाइश कर रहे हैं। दोनों की पत्नियां भी सक्रिय हैं। विधायक शंकरलाल ने तो अपने दम पर मुकाम हासिल किया अब उनके बड़े बेटे राजनारायण तिवारी भाग्य आजमा रहे हैं।
सतना: गणेश सिंह, उमेश और सुधा सिंह
वर्तमान सांसद गणेश सिंह ने खुद के दम पर राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया। जिला पंचायत से सांसदी के सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे। अब इस परिवार से उनके भाई उमेश प्रताप सिंह और बहू सुधा सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं। माना जाता है कि इन दोनों को राजनीति में लाने का पूरा श्रेय गणेश सिंह का है। अब उनका एक बेटा भी राजनीतिक सक्रियता दिखा रहा है। हालांकि अभी उसकी उठक-बैठक दिल्ली के बड़े नेताओं के पुत्रों की राजनीति के बीच ज्यादा है।
वर्तमान सांसद गणेश सिंह ने खुद के दम पर राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया। जिला पंचायत से सांसदी के सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे। अब इस परिवार से उनके भाई उमेश प्रताप सिंह और बहू सुधा सिंह भी सक्रिय राजनीति में हैं। माना जाता है कि इन दोनों को राजनीति में लाने का पूरा श्रेय गणेश सिंह का है। अब उनका एक बेटा भी राजनीतिक सक्रियता दिखा रहा है। हालांकि अभी उसकी उठक-बैठक दिल्ली के बड़े नेताओं के पुत्रों की राजनीति के बीच ज्यादा है।
रीवा: पंचूलाल प्रजापति-मुकेश प्रजापति
1998 में सक्रिय राजनीति में आए पंचूलाल प्रजापति देवतालाब से विधायक बने। इसके बाद परिवार को तवज्जो देते हुए 2008 में अपनी पत्नी पन्नाबाई को मनगवां क्षेत्र से विधायक बनाने में सफलता हासिल की। 2013 में भी पन्नाबाई मैदान में थी लेकिन हार गई थीं। 2018 में मनगवां से भाजपा की सशक्त दावेदार मानी जा रही हैं। पूर्व विधायक पंचूलाल ने बेटे मुकेश प्रजापति को राजनीति में उतारा है। उनको जिला पंचायत सदस्य भी बनाया।
1998 में सक्रिय राजनीति में आए पंचूलाल प्रजापति देवतालाब से विधायक बने। इसके बाद परिवार को तवज्जो देते हुए 2008 में अपनी पत्नी पन्नाबाई को मनगवां क्षेत्र से विधायक बनाने में सफलता हासिल की। 2013 में भी पन्नाबाई मैदान में थी लेकिन हार गई थीं। 2018 में मनगवां से भाजपा की सशक्त दावेदार मानी जा रही हैं। पूर्व विधायक पंचूलाल ने बेटे मुकेश प्रजापति को राजनीति में उतारा है। उनको जिला पंचायत सदस्य भी बनाया।
रीवा: श्रीनिवास तिवारी-सिद्धार्थ तिवारी
परिवारवादी राजनीति में अमहिया का भी दबदबा रहा। 1952 में श्रीनिवास तिवारी पहली बार मनगवां से सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए। तिवारी 1952, 1972 से 1980 एवं 1990 से 1998 तक लगातार विधायक रहे। विस अध्यक्ष भी बने। 2003 में मनगवां से चुनाव हारे तो फिर उनको लगातार हार का सामना करना पड़ा। 1991 में लोकसभा भी लड़े और हारे। तिवारी ने पुत्र सुंदरलाल को भी राजनीति में उतारा। 1999 में सुंदरलाल 2,75,115 वोट पाकर लोकसभा चुनाव जीते लेकिन 2004, 2009 और 2014 के लोस चुनाव में हार मिली। 2013 में गुढ़ से विधायक बने। 2013 में ही उनकी तीसरी पीढ़ी के विवेक तिवारी भी सिरमौर से चुनाव लड़े। विवेक की पत्नी और सुंदरलाल के पुत्र सिद्धार्थ भी सक्रिय हैं।
परिवारवादी राजनीति में अमहिया का भी दबदबा रहा। 1952 में श्रीनिवास तिवारी पहली बार मनगवां से सोशलिस्ट पार्टी से विधायक चुने गए। तिवारी 1952, 1972 से 1980 एवं 1990 से 1998 तक लगातार विधायक रहे। विस अध्यक्ष भी बने। 2003 में मनगवां से चुनाव हारे तो फिर उनको लगातार हार का सामना करना पड़ा। 1991 में लोकसभा भी लड़े और हारे। तिवारी ने पुत्र सुंदरलाल को भी राजनीति में उतारा। 1999 में सुंदरलाल 2,75,115 वोट पाकर लोकसभा चुनाव जीते लेकिन 2004, 2009 और 2014 के लोस चुनाव में हार मिली। 2013 में गुढ़ से विधायक बने। 2013 में ही उनकी तीसरी पीढ़ी के विवेक तिवारी भी सिरमौर से चुनाव लड़े। विवेक की पत्नी और सुंदरलाल के पुत्र सिद्धार्थ भी सक्रिय हैं।
सीधी: अर्जुन-अजय और इंद्रजीत-कमलेश्वर
चुरहट विस सीट से निर्वाचित विधायक अजय सिंह वंशवाद के दम पर ही विंध्य सहित प्रदेश की राजनीति में बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। अजय सिंह के बाबा शिवबहादुर सिंह चुरहट विस सीट से 1952 में चुनाव लड़े थे। हालांकि हार गए थे। 1977 में अर्जुन सिंह चुरहट सीट से निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे और विधायक बने। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू से कांग्रेस की सदस्यता ली। वे मप्र के मुख्यमंत्री सहित राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री के पद पर काबिज रहे। उनसे चुरहट सीट खाली हुई तो बेटे अजय ने कब्जा कर लिया। अजय के अलावा सिहावल विधानसभा सीट से विधायक कमलेश्वर पटेल भी वंशवाद की परिपाटी की ही देन हैं। कमलेश्वर के पिता कांग्रेस से सात पंचवर्षीय विधायक रह चुके हैं। वे दो बार दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। अपने पुत्र को विधानसभा में लांच करने के लिए इंद्रजीत कुमार ने वर्ष 2013 में विधानसभा का टिकट लेने से इंकार कर दिया था। अपनी जगह पुत्र कमलेश्वर पटेल का नाम आगे किया था। यहां से कमलेश्वर पटेल के पार्टी में प्रभाव को देखकर कोई भी कांग्रेसी दावेदारी करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
चुरहट विस सीट से निर्वाचित विधायक अजय सिंह वंशवाद के दम पर ही विंध्य सहित प्रदेश की राजनीति में बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं। अजय सिंह के बाबा शिवबहादुर सिंह चुरहट विस सीट से 1952 में चुनाव लड़े थे। हालांकि हार गए थे। 1977 में अर्जुन सिंह चुरहट सीट से निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे और विधायक बने। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू से कांग्रेस की सदस्यता ली। वे मप्र के मुख्यमंत्री सहित राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री के पद पर काबिज रहे। उनसे चुरहट सीट खाली हुई तो बेटे अजय ने कब्जा कर लिया। अजय के अलावा सिहावल विधानसभा सीट से विधायक कमलेश्वर पटेल भी वंशवाद की परिपाटी की ही देन हैं। कमलेश्वर के पिता कांग्रेस से सात पंचवर्षीय विधायक रह चुके हैं। वे दो बार दिग्विजय सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। अपने पुत्र को विधानसभा में लांच करने के लिए इंद्रजीत कुमार ने वर्ष 2013 में विधानसभा का टिकट लेने से इंकार कर दिया था। अपनी जगह पुत्र कमलेश्वर पटेल का नाम आगे किया था। यहां से कमलेश्वर पटेल के पार्टी में प्रभाव को देखकर कोई भी कांग्रेसी दावेदारी करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
रीवा: ये भी नहीं कम
इसी लाइन में अभय मिश्रा का भी नाम सामने आता है। सिरमौर जनपद अध्यक्ष के रूप में राजनीति की शुरुआत करने वाले अभय 2008 में भाजपा की टिकट पर सेमरिया से विधायक बने। 2013 में भाजपा से ही पत्नी नीलम को चुनाव लड़ाकर सेमरिया क्षेत्र से विधायक बना दिया। अब वे खुद भी जिला पचांयत अध्यक्ष पद पर हैं। विधायक गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम जिला पंचायत में उपाध्यक्ष रहे है। इन्हीं के परिवार से विवेक और पद्मेश गौतम भी राजनीति में हैं। पूर्व मंत्री रमाकांत तिवारी 1990 में सक्रिय राजनीति में आए और त्योंथरसे विधायक बने। अब उन्होंने अपनी बहू सरोज तिवारी और पुत्र कौशलेश तिवारी को आगे किया है। त्योंथर क्षेत्र से 1993 में जनता दल से विधायक रहे रामलखन सिंह के बेटे रमाशंकर सिंह सक्रिय राजनीति में हैं। पिता के बाद रमाशंकर राजनीतिक विरासत संभल रहे हैं।
इसी लाइन में अभय मिश्रा का भी नाम सामने आता है। सिरमौर जनपद अध्यक्ष के रूप में राजनीति की शुरुआत करने वाले अभय 2008 में भाजपा की टिकट पर सेमरिया से विधायक बने। 2013 में भाजपा से ही पत्नी नीलम को चुनाव लड़ाकर सेमरिया क्षेत्र से विधायक बना दिया। अब वे खुद भी जिला पचांयत अध्यक्ष पद पर हैं। विधायक गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम जिला पंचायत में उपाध्यक्ष रहे है। इन्हीं के परिवार से विवेक और पद्मेश गौतम भी राजनीति में हैं। पूर्व मंत्री रमाकांत तिवारी 1990 में सक्रिय राजनीति में आए और त्योंथरसे विधायक बने। अब उन्होंने अपनी बहू सरोज तिवारी और पुत्र कौशलेश तिवारी को आगे किया है। त्योंथर क्षेत्र से 1993 में जनता दल से विधायक रहे रामलखन सिंह के बेटे रमाशंकर सिंह सक्रिय राजनीति में हैं। पिता के बाद रमाशंकर राजनीतिक विरासत संभल रहे हैं।