
National Farmer's Day: 70 years after situation of farmers not changed
सतना। भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की 80 फीसदी अर्थव्यवस्था खेती पर टिकी है। जिन किसानों ने खून-पसीना एक करके देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, रात-दिन मेहनत कर सरकार के भंडार खाद्यान्न से भरे, उनके स्वयं के हाथ खाली हैं। विंध्य की बात करें तो यहां किसानों की स्थिति हर दिन दहाड़ी कर 300 कमाने वाले मजूदर से भी बदतर है।
आजादी के सात दशक बाद भी दिन-रात मेहनत करने वाले अन्नदाता की न दशा बदली न दिशा। यहां जय किसान का नारा बेमानी है। 70 साल में केंद्र व राज्य में जो सरकार रही, कोई भी अन्नदाता को उसकी उपज का उचित हक नहीं दिला पाई।
परिणाम यह है कि आज तीन गुना अधिक खाद्यान्न उत्पादन करने के बाद भी किसान कर्ज में दबा है। आत्महत्या करने को मजबूर है। सरकार की योजनाएं भी किसानों की किस्मत नहीं बदल सकीं। राष्ट्रीय किसान दिवस पर आज हम किसानों की दशा जनता के सामने रख रहे हैं।
बस इतना करे सरकार
किसानों को भारत का भाग्य विधाता भी कहा जाता है। वर्तमान में प्रदेश में किसानों की हालत सबसे बुरी है। सरकारी योजनाओं में फंसकर कर्ज में डूब रहे किसानों का कहना है कि जिस प्रकार एक व्यापारी अपने उत्पाद का एक दाम तय कर उसे बाजार में बेचता है, उसी प्रकार कृ़षि का भी एक मूल्य तय हो। किसानों को सिर्फ उनकी उपज का उचित दाम मिल सके, यही उनकी सरकार से मांग है।
पांच साल में 377 मौत
खेती कर कर्ज में डूबे किसानों की संख्या विंध्य प्रदेश में तेजी से बढ़ रही है। तकनीकी खेती व कृषि संसाधन जुटाने हर साल किसान क्रेडिट कार्ड, बैंक ऋण तथा खाद बीज के लिए सोसायटियों से करोड़ों रुपए का कर्ज लेकर किसान खेती में लगाते हैं। लेकिन, किसी साल मौसम साथ नहीं देता और फसल सूख जाती है या फिर फसल ओला-पाला की शिकार हो जाती है। यदि मौसम ने साथ दिया और अच्छा उत्पादन मिल गया तो मंडियों में उपज के भाव नहीं मिलते। आलम यह है कि कर्ज लेकर उन्नत खेती करने वाले किसानों की आय से जब लागत नहीं निकलती तो वे आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। घाटे का सौदा बनती खेती से विंध्य में भी किसानों की आत्महत्या करने का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो बीते पांच साल में विंध्य प्रदेश में ३७७ किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
कर्ज माफी कोई विकल्प नहीं
खेती की बढ़ती लागत और अनाज के घटते दाम ने खेती का पूरा गणित बिगाड़ दिया है। बीते दो वर्ष में खेती की लागत में लगभग 20 फीसदी की वृद्धि हुई है। जबकि अनाज के दाम 30 प्रतिशत नीचे आ गए हैं। ऐसे में अच्छा उत्पादन मिलने के बाद भी खेती लाभकारी धंधा नहीं बन पा रही। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने में नाकाम सरकार और राजनैतिक दल चुनाव से पहले किसानों की कर्जमाफी का झुनझुना पकड़ा देते हैं। लेकिन कृषि विशेषज्ञ कर्जमाफी को स्थाई हल नहीं मानते।
किसानों पर 1200 करोड़ रुपए का कर्ज
खेती को लाभ का धंधा बनाने और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रदेश सरकार 42 योजना चला रही है। इससे उत्पादन तो बढ़ा पर किसानों को उनकी उपज का उचित दाम न मिलने से हर साल लगभग 2400 करोड़ रुपए की उपज बेचने के बाद भी किसान कंगाल है। मंडियों में अनाज के दाम न मिलने से किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अकेले सतना जिले के 56 हजार किसानों पर 1200 करोड़ कर कर्ज है।
किसानों की मांग
- अन्य उत्पाद की तरह फसल का एक न्यूनतम ब्रिकी मूल्य तय हो
- सिंचाई के लिए 24 घंटे बिजली मिले
- सिंचाई के संसाधनों में वृद्धि
- नई फसल बीमा योजना जिसमें खेत इकाई हो
- गुणवत्तायुक्त खाद-बीज एवं दवाई की उपलब्धता
- फसल बिक्री के लिए उचित बाजार
70 साल बाद भी अन्नदाता की दशा इसलिए नहीं बदली, क्योंकि उसे आज तक उपज का उचित मूल्य नहीं मिला। खेती की बढ़ती लागत, घटती आय तथा प्राकृतिक आपदाएं भी इसके लिए जिम्मेदार है। किसानों की खुशहाली के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।
अशोक त्रिपाठी, रिटायर्ड कृषि अधिकारी
जून की झुलसाती गर्मी और पूस की जमा देने वाली ठंड में खेत में काम कर सरकार का खजाना भरने वाला किसान बदहाल क्यों है, यह सरकार को सोचना चाहिए। यदि सरकार किसानों का हित चाहती है तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश देश में लागू करे।
जगदीश सिंह, प्रदेशाध्यक्ष भाकियू
Published on:
12 Oct 2018 12:22 pm
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