
वन भूमि पर अपना दावा करने वाले अवधूत आश्रम पहुंच पौधरोपण करते वन मंत्री
सतना. सरकारी राजस्व जमीनों में होने वाले खेल को लेकर 90 के दशक से विवादों में रहे चित्रकूट में अब जमीन कारोबारियों की नजर वन भूमि पर है। घने जंगलों के बीच स्थित वन भूमि को अब निजी भूमि बता उस जमीन पर हक जताते हुए उसे निजी करने की कवायद व्यापक स्तर पर कर दी गई है। इस विवादित जमीन पर एक आश्रम सहित कई निजी व्यक्तियों का दावा है। इतना ही नहीं निजी व्यक्तियों के पीछे जिले के कुछ जनप्रतिनिधियों की भी रुचि देखने को मिल रही है तो जिले के प्रभारी मंत्री व प्रदेश के वन मंत्री तो सीधे डीएफओ को इस मामले को निपटाने दबाव भी बना चुके हैं। इतना ही नहीं उनका सरकारी दौरा भी इस विवादित जमीन में दावा करने वाले आश्रम पर हो चुका है। सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आई है वह है इसके सीमांकन की। जिस सीमांकन को आधार पर बताकर जमीन पर दावा किया जा रहा है उस जमीन का नक्शा नहीं है। बिना नक्शे के सीमांकन कैसे हुआ यह अपने आप में सवाल है और इस सीमांकन आकृति कैसे तय की गई वह भी गंभीर विषय है।
चित्रकूट जंगल के रजौला बीट में दावा
मिली जानकारी के अनुसार चित्रकूट स्थित वन विभाग की रजौला बीट के वन क्षेत्र कक्ष क्रमांक पी-18 एवं पी-19 में स्थित घने जंगल वाली वन भूमि के लगभग 79 एकड़ भू-खण्ड पर अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम बाबूपुर चित्रकूट ने अपना दावा ठोक दिया है। आश्रम के संयुक्त सचिव मनीष कुमार सिंह की ओर से इस भूमि को अपना बताते हुए इसके समर्थन में तमाम दस्तावेज भी प्रस्तुत किये गए।
इधर दावा उधर तत्काल नाप
दावे के आधार पर 24 नवम्बर 2020 को राजस्व और वन विभाग की संयुक्त टीम ने इस जमीन का सीमांकन कर दिया। सीमांकन के पश्चात दावेदार के हक में 18 दिसंबर 2020 को तत्कालीन वन मंडल अधिकारी ने अपना प्रतिवेदन तैयार करते हुए मुख्य वन संरक्षक कार्य आयोजना रीवा को भेजा। जिसके बाद से संबंधित दावेदार अब पूरी ताकत से इस जमीन को अपने पक्ष में लेने दबाव बनाए हुए हैं। लेकिन इसी बीच इसी जमीन के अन्य दावेदार भी सामने आ गए हैं और मामला अब न्यायालय की ड्यौढ़ी तक पहुंच गया है।
वन मंत्री की रुचि सवालों में
अमूमन वन विभाग अपनी जमीन बचाने के लिए पूरी ताकत लगाता है लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। वन विभाग आगे बढ़ कर जमीन देने को तैयार नजर आ रहा है। जबकि विवादित जमीन पूरी तरह घना जंगल है और वहां राजस्व भूमि के कोई निशान नहीं है। इस मामले में प्रदेश के वन मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री विजय शाह की रुचि भी काफी देखने को मिल रही है। सतना जिले के दूसरे दौरे में आए शाह के आधिकारिक कार्यक्रम में अवधूत आश्रम में जाना शामिल था। इसके साथ ही कि चित्रकूट में आयोजित डीएमएफ बैठक के बाद प्रभारी मंत्री ने इस आश्रम की जमीन के मामले को निपटाने डीएफओ को तल्ख लहजे में निर्देश दिए थे। ऐसा नहीं करने पर कार्यवाही के लिये चेताया था। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या जल्दी है कि प्रदेश के वन मंत्री वन विभाग की जमीन को निजी करने के लिये इतने उत्सुक दिख रहे हैं।
विवादों में सीमांकन
उधर पत्रिका को मिली जानकारी के अनुसार जिस विवादित वन भूमि का निजी दावे के आधार पर राजस्व और वन विभाग द्वारा संयुक्त सीमांकन किया गया है उस भूमि का नक्शा ही मौजूद नहीं है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस इलाके के सभी नक्शे की सभी सीटें मौजूद हैं, लेकिन जिस वन भूमि का विवाद है उसकी शीट गायब है। सवाल है कि जिस जमीन का नक्शा नहीं है उसका सीमांकन कैसे कर दिया गया। बिना नक्शे के इस जमीन की आकृति कैसे तय कर ली गई और यह जमीन यहीं है यह कैसे माना गया? जानकारों का यहां तक कहना है कि जिस तरीके का नक्शा सीमांकन के बाद बना है वह भी चौंकाने वाला है। हालांकि इस मामले में जिले के कुछ जनप्रतिनिधि भी काफी रुचि दिखा रहे हैं तो सत्ताधारी दल के लोगों की भी इन भूमि पर काफी रुचि है।
सरकारी अमले ने साधी चुप्पी
अब इस मामले में कोई भी अधिकारी कर्मचारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। न तो इस मसले पर राजस्व महकमे के लोग कुछ बोल रहे हैं और न ही वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी कुछ बता रहे हैं। सब का कहना है कि मामले अभी प्रक्रियाधीन है लिहाजा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।
Published on:
27 Aug 2021 09:53 am
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