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ये है मध्यप्रदेश का जलियांवाला बाग, जहां 109 ग्रामवासी हुए थे शहीद

जलियांवाला बाग की शुरूआत पिंड्रा से हुई थी। स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाला यह ग्राम पिंड्रा भारत की स्वतंत्रता के लिए सदैव अग्रणी रहा हैं।

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सतना। 13 अप्रैल सन् 1919 को अमृतसर शहर के जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड की अगर आज भी कोई घटना याद करता है तो सबके पैरों तले से जमीन खिसक जाती है। जहां रौलेट एक्ट के विरोध करने पर एक सभा आयोजित की जा रही थी। तो जनरल डायर ने उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी थी। जिसमें 1000 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से ज्यादा लोग घायल हुए थ।

एक इसी तरह का जलियांवाला बाग हत्याकांड मध्यप्रदेश के सतना जिला अंतर्गत पिंड्रा गांव में हुआ था। जिसमें 109 ग्रामवासी शहीद हुए थे। आज भी इस गांव में शहीदों की याद में स्मारक और कुछ अवशेष रखे गए है।

विदेशी सत्ता के खिलाफ छापा मार युद्ध

बता दें कि, जलियांवाला बाग की शुरूआत सतना जिले के ग्राम पिंड्रा से हुई थी। स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाला यह ग्राम पिंड्रा भारत की स्वतंत्रता के लिए सदैव अग्रणी रहा हैं। 1857 में स्वतंत्रता के महानायक कुंवर अमर बहादुर ठाकुर रणवंत सिंह के नेतृत्व में कैमूर की पहाडिय़ों के पास विदेशी सत्ता के खिलाफ छापा मार युद्ध लड़ा। उस स्वतंत्रता समर का शहीद स्थल केंद्र ग्राम पिंड्रा ही था।

इस गांव से जली थी स्वतंत्री की ज्योति

ग्राम के क्रांतिकारी व ग्रामवासी 109 बहादुर शहिद हुए थे। ग्राम को लूटा गया, जलाया गया, फिर भी ग्रामवासी डटे रहे। इस छापा मार युद्ध की प्रशंसा फ्रेडीक एजेंल्स ने 1 अक्टूबर 1858 न्यूयॉर्क टाइम में 'भारत में विद्रोहÓ नामक एक लेख में की हैं। इसके बाद भी स्वतंत्रता की ज्योति जगाने वाले इस ग्राम के निवासी 1920 से 1949 तक जब तक कि भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हो गया। तब तक अपने प्राणों की बाजी लगाकर काम करते रहे।

सम्पूर्ण देश में आजादी की अलख जगाई
इस ग्राम के निवासियों ने स्वाधीनता के लिए अपने प्राणों का बलिदान करते हुए यही संदेश दिया था कि देश की स्वाधीनता, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक जन भागीदारी के बिना संभव ही नहीं हैं। इसलिए एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के लिए अपने प्राणों की आहूति देकर सम्पूर्ण देश को लामबंद किया था। जिससे कि भावी पीढ़ी प्रेरणा लेकर भारत की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहे। पिंड्रा ग्राम पंचायत का यह इतिहास चौराहे में निर्मित स्तम्भ बया कर रहा हैं। जिसका शिलान्यास पूर्व मंत्री अजय सिंह राहुल ने किया था।

तीन-तीन बार जलाया गया गांव
अंग्रेजों से सीधे लोहा लेने वाला सतना जिले का यह ग्राम पिंड्रा योजनाओं की सारी हदों को पार कर देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। अंग्रेजों द्वारा पिंड्रा ग्राम को तोपों से उड़ाया गया था। तीन-तीन बार जलाया गया था, पर इस क्रूरता के सामने ग्रामवासियों ने जांबाजों की तरह लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। पिंड्रा ग्राम से महज 5 किमी दूर गुरुकुल स्कूल थी।

कुआं, मकान अन्य के अवशेष यहां

जिसमें ज्ञानविछू जैसे क्रांतिकारी रहते थे। कुआं, मकान अन्य के अवशेष यहां आज भी मौजूद हैं। हथगोले व अन्य सामान का निर्माण किया जाता था, क्रांतिकारी तैयार किए जाते थे। गांव में बने मंदिर को भी अंग्रेजों द्वारा तोड़ा गया था, गोले दागे गए थे। चंन्द्रशेखर आजाद, अमर बहादुर सिंह रणवंत जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की यह शरणस्थली रही हैं।

"आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी पिंड्रा ग्राम की"
"आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी पिंड्रा ग्राम की" यह कविता देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने लिखी थी। जिसे बड़े गर्व के साथ आज भी उनके बच्चे पढ़ते हैं और पिंड्रा ग्राम का इतिहास अपने जुवा से बताते हुए गर्व महसूस करते हैं, पर अफसोस तो इन्हें इस बात का हैं कि जिन ग्रामवासियों द्वारा स्वतंत्रता की ज्योति जलाई गई थी। आज उन्हें ही उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा हैं। यह ग्राम मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित हैं।