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मानवता की नि:स्वार्थ सेवा: न पारितोषिक की उम्मीदें और न कोई अन्य चाहत

त्याग से संतुष्टि के सद्मार्ग पर जनसेवक

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Samajseva Flashback: Humanity of selfless service

Samajseva Flashback: Humanity of selfless service

सतना। मानवता ही सबसे बड़ी सेवा है। यही काम आपको औरों से अलग रखता है। इससे आपको को जो संतुष्टि व प्यार मिलता है उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं। यही सोचकर 'ये' नि:स्वार्थ भाव से सामाजिक कार्यों में लगे हुए हैं। विंध्य में कई ऐसे सेवक हैं जो नि:स्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने में हमेशा आगे रहते हैं। इसके बदले उन्हें न तो किसी प्रकार के पारितोषिक की उम्मीद रहती और न ही किसी प्रकार की अन्य चाहत होती है।

हम अक्सर समाजसेवा की बात करते हैं। दूसरे को प्रेरित भी करते हैं। उनके सामने कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं ताकि लोग मिसाल के रूप में लें और नेक कार्य को आगे बढ़ाने में योगदान दें। इसके भी दो रूप देखने को मिलते हैं। कोई सार्वजनिक रूप से सबको बताते हुए समाजसेवा करता है, तो कोई गुपचुप तरीके से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करता है।

किए जा रहे कार्य अनुकरणीय उदाहरण

ऐसे उदाहरण विंध्य के सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली व पन्ना में हैं जिनके द्वारा किए जा रहे कार्य अनुकरणीय उदाहरण हैं। समाज की बेहतरी, दिनहीनों की मदद, जरूरतमंदों के लिए सहायता के रूप में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। कोई दरिद्र नारायण की सेवा को ईश्वर सेवा मान रहा है और मानसिक रूप से कमजोर, विक्षिप्त की मदद के लिए पूरी टीम बना चुका है तो कोई अनाथ बच्चों को परिवार देने का काम कर रहा है। सीमित संसाधनों के बल पर पांच दर्जन से ज्यादा बच्चों को नए परिवार में पहुंचाकर उनका भविष्य सुरक्षित कर चुका है।

खुद के खर्च पर कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं

कुछ समाज को माध्यम बनाकर पर्यावरण बचाने में लगे हुए हैं। कुछ ऐसे हैं जो शहर को सुकून दिलाने के लिए खुद के खर्च पर कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। इन सभी कार्यों की एक विशेषता है, शुरुआती दौर में सीमित संसाधनों के दम पर प्रयास। समय के साथ स्थिति बदली और ये काम वटवृक्ष बन चुके हैं जिन्हें उदाहरण के रूप में प्रस्तुत तक किया जाने लगा है। वहीं इनसे जुड़े हुए लोग, सभी बातों को दरकिनार करते हुए सतत रूप से लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।

1- मातृछाया
सेवा भारती ने एक जनवरी 2010 को मातृछाया संस्था की शुरुआत की थी। इसके चार सदस्य आसीम बनर्जी, प्रदीप सक्सेना, सिरूमल भोजवानी, रमाकांत मिश्रा शुरुआती कड़ी थे। मात्र आठ साल के दौरान संस्था में 108 बच्चे पहुंचे। इनमें से 81 बच्चों को दत्तक देने की प्रक्रिया पूरी की गई। उनमें भी चार बच्चे विदेश गए। इनमें दो बेटियां शामिल हैं। इस तरह संस्था बच्चों को परिवार उपलब्ध कराने में 78 फीसदी सफल रही। जो संस्था के लिए बड़ी उपलब्धि है।

बेटियों को आश्रय
संस्था समाजसेवा के क्षेत्र में कदम को आगे बढ़ाने में लगी हुई है। इसके तहत बालिका गृह खोलने का आवेदन शासन को दिया है। इसमें 6-16 साल की बच्चियों को रखा जाएगा। अभी ऐसे बच्चियों को जबलपुर, भोपाल भेजा जाता है। वहीं संस्था उतैली में खुद का भवन बनाने में लगी हुई है। माना जा रहा कि वर्ष 2019 में पूरा हो जाएगा और मातृछाया शिशु गृह को शिफ्ट कर दिया जाएगा। काम को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

2- श्रीसत्य सांई सेवा संगठन
जिले में संस्था के करीब 500 सदस्य हैं। वो दरिद्रों की सेवा को ही धर्म बना लिया है। सेवा का नाम भी रखा है नारायण सेवा। संस्था के लोग सतना शहर के 30 मानसिक रूप से कमजोर, विक्षिप्त, पागल स्थिति में भटकने वाले लोगों को हर रोज भोजन उपलब्ध कराते हैं। यह सिलसिला सुबह व शाम दोनों समय चलता है। ऐसे लोगों को बकायदा चिह्नित किया गया है। जब वे बीमार होते हैं, तो इलाज की जिम्मेदारी संस्था के लोग उठाते हैं। दीनों की सेवा के लिए वे हमेशा आगे आने को आतुर रहते हैं।

आश्रय गृह का संकल्प
संस्था के सदस्य सितपुरा में आश्रय गृह बनाने का संकल्प लिए हुए हैं। इसके बन जाने पर मानसिक रूप से कमजोर भटकने वाले लोगों को वहां शिफ्ट किया जाएगा। वहां भोजन व इलाज के साथ-साथ अन्य मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम किया जाएगा। संस्था के लोग किसी प्रकार का चंदा नहीं लेते हैं। बल्कि अपने परिजन, रिश्तेदार के जन्मदिन, सालगिराह आदि पर सहयोग राशि जमा करते हैं। सालभर सेवाभाव से जुटे रहते हैं।

3- प्रणामी समाज
पर्यावरण की दृष्टि से प्रणामी समाज ने नवाचार शुरू किया। इसके तहत डिस्पोजल प्लॉस्टिक बर्तन पर आयोजनों में प्रतिबंध लगा दिया। समाज ने बैठक बुलाई और निर्णय लिया कि समाज के कार्यक्रम व निजी कार्यक्रमों में प्लास्टिक व डिस्पोजल बर्तन का उपयोग नहीं करेंगे। यह पर्यावरण के लिए नुकासान दायक हैं। समाज के लोगों द्वारा करीब एक साल से नवचार को आगे बढ़ाया जा रहा है।

बर्तनों का गुप्तदान
प्रणामी समाज के कुछ लोगों ने बर्तनों का गुप्तदान कर इस अभियान में सभी से जुडऩे की अपील की है। इस तरह से नवाचार की शुरुआत की गई थी। हालांकि इस कदम के पीछे सबसे बड़ा तर्क दिया गया कि हम समाज में पर्यावरण को बचाने के लिए हमेशा चर्चा करते नजर आते हैं। लेकिन, जो कदम उठाए जाते हैं, वे केवल सांकेतिक हैं। ठोस रूप से कुछ दिखाई नहीं देता है। लिहाजा कदम ऐसे उठाए जाए, जिसका प्रभाव देखने को मिले। इसी के तहत प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया गया था। साथ ही निर्णय लिया गया कि अस्थाई रूप से बर्तन उपयोग करने पड़े, तो इसके लिए दोना-पत्तल का उपयोग किया जाएगा। किसी भी स्थिति में प्लास्टिक उपयोग नहीं करेंगे। विगत एक साल के दौरान दो दर्जन से ज्यादा कार्यक्रम समाज ने आयोजित किए, जिसमें इस व्यवस्था का पालन किया।