
Sarpanch secretaries got started working with machines in NREGA
सतना. बाहर से काफी संख्या में लौट कर घर आ रहे मजदूरों को काम मिल सके लिये इसके लिये कलेक्टर और जिपं सीईओ ने ग्राम पंचायतों को ज्यादा से ज्यादा काम खोलने के आदेश दे दिये। लेकिन ग्राम क्षेत्र से दूर शहरी इलाकों में रहने वाले सचिव मजदूरों तक तो पहुंच नहीं पा रहे हैं और लक्ष्य पूरा करने और निजी लाभ के लिये सरपंच के साथ मिलकर मशीनों से काम शुरू करवा रहे हैं। हालात यह है मुख्य मार्ग से इतर की ग्राम पंचायतों में मशीनों से काम काफी संख्या में हो रहा है। उधर आदिवासी बाहुल्य परसमनिया पठार में तो हालात काफी खराब है। यहां दिन रात जेसीबी मशीनों से काम हो रहा है। हद तो यह है कि इसकी जानकारी अधिकारियों को मिलने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। परसमनिया के आदिवासियों को कहना है कि ज्यादातर लोग पटिया पत्थर के काम में रहते थे। अब वह बंद है। ऐसे में काम की बहुत जरूरत है लेकिन कोई काम नहीं मिल रहा है। जनपद तक शिकायत कर रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इंजीनियर भी कभी कभार आता है तो वह भी नहीं सुनता है।
15 दिनों से चल रही हैं मशीनें
मिली जानकारी के अनुसार परसमनिया पठार का खनन के लिये कुख्यात सखौहा ग्राम पंचायत में रविवार की रात १ बजे जेसीबी मशीन से काम चल रहा था। गांव में मिले ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां 15 दिनों से मशीन चल रही है। इन लोगों का कहना था कि यहां के ज्यादातर मजदूर खदानों में पटिया पत्थर का काम करते थे। इस समय खदान का काम काज लगभग बंद है। ऐसे में कोई काम नहीं है। गांव में मनरेगा का काम भी शुरू हो गया है लेकिन सरपंच सचिव काम नहीं दे रहे हैं। जब काम मांगा जाता है तो उनका कहना है कि जल्दी काम पूरा करना है इसलिये मशीन से कराना जरूरी है। इनका कहना रहा कि यही स्थिति पठार की ज्यादातर पंचायतों की है।
मैहर के जूरा में भी चल रही मशीन
इसी तरह से मैहर जनपद की ग्राम पंचायत जूरा में भी जेसीबी मशीन से काम होने की शिकायत आई है। यहां भी सरपंच सचिव की मिलीभगत से काम हो रहा है। लोगों ने बताया कि यहां रोज रात में जेसीबी से काम शुरू हो जाता है। ग्रामीणों ने सचिव से इस पर आपत्ति भी जाहिर की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
निगरानी का आभाव
जिपं सीईओ ने इस काम के लिये उपयंत्री को निर्देशित किया है कि वे कार्यस्थल पर जाकर देखे और सुनिश्चित करें कि मशीनों से काम न हो। लेकिन उपयंत्री भी इसमें अपना कमीशन देख रहे हैं और इस तरह के मामले में चुप्पी साध रहे हैं। जनपद सीईओ भी क्षेत्र में नहीं जा रहे है। स्पष्ष्ट है कि पूरा सिस्टम ही इस तरह के मामले में चुप्पी साधे हैं और मजदूर रोजगार के लिये परेशान हो रहे हैं।
मैदानी अमले ने फैलाया भ्रम
मनरेगा में भी अपनी कमाई देख रहे सचिव और रोजगार सहायकों सहित सरपंचों ने एक भ्रम आला अधिकारियों के बीच यह फैला रखा है कि बाहर से आए मजदूर काम नहीं करना चाह रहे हैं। लेकिन परसमनिया पठार में तो यह भी स्थिति नहीं है। यहां बाहर से आए लोगों का कहना है कि उनके कार्ड ही नहीं है और बोलने पर कार्ड भी नहीं बन रहे है। कुल मिलाकर जमीनी स्थिति जिले के आला अधिकारियों तक आने ही नहीं दी जा रही है। अगर गरीब परिवारों के बीच जाकर बात की जाए तो हकीकत सामने आ जाएगी।
'' जहां मशीनों से काम होना बताया जा रहा है इसका प्रतिवेदन लिया जाएगा। संबंधितों पर कार्रवाई की जाएगी। ''
- ऋजु बाफना, जिपं सीईओ
Published on:
10 May 2020 10:58 pm
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