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रेकॉर्ड में नाम दर्ज किए बिना जेल में घुसते हैं अनाधिकृत व्यक्ति

सुर्खियों में सेंट्रल जेल: अधिकारियों से साठगांठ के कारण नियम ताक पर

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सतना. केंद्रीय जेल के जेलर बद्री विशाल शुक्ला पर जेल मुख्यालय ने भले ही कार्रवाई कर दी है पर उनकी मनमानी के कई किस्से हैं। अनाधिकृत व्यक्तियों को जेल के अंदर प्रवेश करा दिया जाता था और रेकॉर्ड में उनका नाम भी दर्ज नहीं किया जाता था। ऐसा ही मामला 12 जून को दोपहर करीब 1.30 बजे देखने को मिला। तीन व्यक्तियों को जेल के अंदर प्रवेश कराया गया। बताया जाता है कि उस वक्त ड्यूटी में लालजी मिश्रा सहित अन्य जेलकर्मी तैनात थे। उसी दौरान प्रहरी सत्यभान द्विवेदी तीन लोगों के साथ जेल के मुख्य गेट पर प्रवेश करते हैं। उनके साथ जेलर के साले मुनीश भी मौजूद थे। सत्यभान व लालजी के बीच कुछ बात हुई। उसके बाद सत्यभान सभी लोगों को लेकर अंदर प्रवेश कर गए। दो गेटों को पार करते हुए सभी मालखाने के पास स्थित जेलर के कक्ष में पहुंचे। वहां करीब १५ मिनट तक सभी लोग चर्चा करते रहे। उसके बाद मुख्य गेट से वापस हो गए। बताया जाता है कि केवल दो लोगों के हस्ताक्षर कराए गए, जेलर के साले मुनीश और अन्य एक व्यक्ति से न हस्ताक्षर कराए गए न ही रजिस्टर में नाम दर्ज किए गए।


जेल के अंदर प्रवेश वर्जित
जेल के अंदर के हिस्से में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित रहता है। विशेष परिस्थिति में मरम्मत आदि के लिए जेल अधीक्षक व जेलर की अनुमति से प्रवेश दिया जाता है। लेकिन, अनुमति प्राप्त व्यक्ति का भी प्रवेश के समय रजिस्टर में नाम दर्ज किया जाता है। सामान्य रूप से जेल अधीक्षक व जेलर के कक्ष तक ही बाहर के व्यक्तियों को जाने दिया जाता है। तत्कालीन जेलर बद्री विशाल शुक्ला मेन गेट के पास स्थित अपने कक्ष में नहीं बैठते थे। उन्होंने मालखाने के पास अपना अलग कक्ष निर्धारित कर रखा था।

परिजनों पर गंभीर आरोप

जेलर के परिजनों पर गंभीर आरोप बार-बार लगते रहे हैं। जब डीआइजी गोपाल ताम्रकार जांच करने पहुंचे थे तो कैदी मंगल सिंह ने बयान दिया था कि जेल के अंदर जेलर का बेटा आया था और कैदियों को टी-शर्ट दिया था। हाल ही में जेलर के साले मुनीश के जेल के अंदर जाने का मामला सामने आया है। इन दोनों मामलों में रेकॉर्ड में नाम दर्ज नहीं किया गया। जेलकर्मी किसके दबाव में यह कदम उठाते रहे है, यह बड़ा सवाल है।


कुर्सी ले गए जेलर साहब
मंगलवार को जेलर का एक और कारनामा देखने को मिला। वे जिस कक्ष में बैठते थे उसमें कुर्सी रखी हुई थी। उसे अपना बताते हुए वे अपने निवास लेकर चले गए। यह दिनभर चर्चा का विषय बना रहा। सवाल उठता है कि जेल के अंदर की संपत्ति को वो घर कैसे ले जा सकते हैं?