यहीं से षड्यंत्र रचने का खेल शुरू बताया जाता है कि जब कोर्ट ने तीनों आरोपी राजेश मवासी, रज्जन कोल व जोला चौधरी की वन विभाग को रिमांड दी तो वन विभाग के अधिकारी उन्हें लेकर मझगवां स्थित रेस्ट हाउस पहुंचे। तय हुआ कि यहीं पूछताछ की जाएगी। लेकिन, वन विभाग के अधिकारी शिकारियों को अपने स्तर पर खाना उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं थे। लिहाजा, अघोषित रूप से परिजनों को कह दिया कि वे आरोपियों को हर रोज खाना दे जाया करें। यहीं से षड्यंत्र रचने का खेल शुरू हुआ।
परिजन एक घंटे तक कमरे में मौजूद रहे वारदात के दिन आरोपी जोला चौधरी का बेटा और राजेश मवासी व रज्जन कोल के परिजन खाना लेकर पहुंचे थे। उन्हें बकायदा रेस्ट हाउस के उस कमरे तक जाने दिया गया, जहां आरोपियों को रखा गया था। बताया जाता है कि परिजन बकायदा आधा घंटे से लेकर एक घंटे तक कमरे में मौजूद रहे। परिजनों के आने व खाना देने की बात आला अधिकारियों को भी मालुम थी। ये बड़ी चूक थी, खाना उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए वन विभाग के अधिकारियों ने जानबूझकर गंभीर लापरवाही बरती। सूत्र बताते हैं कि इन आधे घंटे के अंदर षड्यंत्र रचा गया और आरोपी भागने में सफल रहे।
हर कदम में फेल अधिकारी
शिकारियों के भागने के बाद पुलिस व वन विभाग के अधिकारियों के पास एक ही तरीका बचा है। परिजनों पर दबाव बनाकर आरोपियों को सरेंडर करावाया जाए। इसके लिए मानसिक व शारीरिक प्रताडऩा का खेल भी पर्दे के पीछे से जारी है। लेकिन, मुखबिरी व अन्य सूचना तंत्र फेल साबित हो रहा है। कारण है कि तीनों आरोपी मोबाइल नहीं रखते। अधिकारी मान रहे कि वे जंगल में या आस-पास किसी गांव में छिपे होंगे। लेकिन, मुखिबिरी तंत्र कमजोर होने के कारण अधिकारियों को पसीना छूट रहा।
इधर रिपोर्ट तलब
पूरे मामले की रिपोर्ट पीसीसीएफ भोपाल मुख्यालय तलब की है। बताया जा रहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय से भी जानकारी मांगी गई है। दूसरी ओर रेंजर सहित छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करने के बाद महकमा बड़े अधिकारियों को बचाने में लगा हुआ है। बाघ के शिकार से लेकर आरोपियों के फरार होने तक में बड़ी चूक सामने आई है। लेकिन, निजी लाभ के लिए अधिकारियों को बचाने का खेल जारी है।