
Somvati's nights became morning, won the battle with malnutrition
सतना. प्रभु श्री राम की कर्मभूमि चित्रकूट के सुरंगी गांव में रहने वाली 7 वर्षीय बालिका सोमवती सबसे अलग थी। नंगे बदन पर हड्डियों से चिपकी हुई चमड़ी... यही तो उसकी पहचान थी। सोमवती की चिंता के लिए न तो मां का आंचल था और न ही बाप की परवरिश। मां-बाप अपनी अलग जिंदगी में मस्त थे इधर सोमवती को कुपोषण ने अपने चंगुल में जकड़ लिया था। इसके साथ ही जुबेनाइल डायबिटीज नामक बीमारी उसे तिल-तिल करके मौत की ओर ले जा रही थी। ऐसे में मौसी और नाना के भरोसे बमुश्किल जिंदगी से जंग लड़ रही थी सोमवती। इस बच्ची के भयावह हालातों को बयां करने वाला एक वीडियो अचानक से वायरल हुआ जिसने प्रदेश के मुखिया तक को अंदर से झकझोर दिया। बच्चों के मामा के नाम से पहचान बना चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सोमवती के इलाज की जिम्मेदारी ली। नतीजा 4 माह बाद सामने है... कभी सोमवती को मारने के लिए तैयार बैठा कुपोषण खुद उसके आगे दम तोड़ गया। अब वो सतना जिले के हर कुपोषित मासूम के लिए मिसाल है कि कुपोषण को हराया जा सकता है बस ईमानदार कोशिश होनी चाहिए।
चित्रकूट के सुरंगी गांव की सोमवती मवासी की खुशनुमा तस्वीर सामने आई है। लगभग 4 माह पूर्व रविवार 4 सितंबर को यूपी और मध्यप्रदेश की चित्रकूट सीमा पर स्थित सुरंगी टोला की एक बालिका की हड्डियों से चिपकी हुई चमड़ी जैसा गंभीर रूप से कमजोर स्वास्थ्य का वीडियो वायरल हुआ था। यह वीडियो मुख्यमंत्री के संज्ञान में आया और उन्होंने जिला प्रशासन को इसकी पूरी मदद और इलाज के निर्देश दिए। कलेक्टर अनुराग वर्मा और महिला एवं बाल विकास तथा स्वास्थ्य विभाग की टीम ने तत्काल गांव पहुंचकर बालिका के स्वास्थ्य को संज्ञान में रखते हुए उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया यहां उसे पूर्ण स्वस्थ होने तक रखा।
और सहम गए थे लोग...
जिला अस्पताल में इलाज के दौरान पता चला कि सोमवती को जुबेनाइल डायबिटीज भी है। यह ऐसी बीमारी है जिसमें इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। इंसुलिन का काम शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करना होता है। लेकिन इस बीमारी के कारण सोमवती का शुगर लेबल काफी बढ़ चुका था। इस बीमारी का नाम सुन कर ज्यादातर लोग सहम गए थे। क्योंकि बताया गया कि यह असाध्य रोग है। लेकिन जिले के डाक्टरों ने हार नहीं मानी। डॉ कारखुर ने इलाज जारी रखा और सोमवती की डायबिटीज नियंत्रित कर ली। लेकिन इस डायबिटीज ने सोमवती के आंखों पर असर डाला था। इस वजह से 7 साल में ही सोमवती की दोनों आंखें मोतियाबिन्द की शिकार हो गईं।
ननिहाल की जगह मातृछाया में आश्रय
उधर सोमवती जिला अस्पताल में डायबिटीज से लड़ रही थी उधर नाना और मौसी के सामने जीवन यापन की भी लड़ाई थी। रोज मजदूरी करके दो जून की रोटी जुटाने वाला परिवार अस्पताल में रह कर इलाज कराने में असहाय था। स्थितियों को देखते हुए महिला बाल विकास विभाग की टीम ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। जिला अस्पताल से ठीक होने के बाद अब उसे शिशु गृह मातृछाया सेवा भारती में विशेष निगरानी में रख दिया गया। यहां रोज उसे इंसुलिन के इंजेक्शन लग रहे थे। और अब आगे जिंदगी भर लगेंगे। जिला महिला बाल विकास अधिकारी सौरभ सिंह बताते हैं कि अब उनके सामने मोतियाबिंद के इलाज की समस्या थी। अगर समय पर इलाज नहीं होता तो सोमवती जल्द ही अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो देती।
हर रात की सुबह होती है
कहते हैं कि हर रात की सुबह होती है लेकिन सोमवती का अंधेरा दूर होने का नाम नहीं ले रहा था। अब सोमवती की नेत्रज्योति बचाने की लड़ाई लड़ी जानी थी। चित्रकूट में आंखों के सबसे बड़े अस्पताल सद्गुरु ट्रस्ट में दिखाया गया। लेकिन इस अस्पताल ने चाइल्ड स्पेशलिस्ट अपने यहां नहीं होने से सोमवती के इलाज से हाथ खड़े कर दिए। निराश हो गया था सरकारी अमला। लेकिन तभी सद्गुरु के चिकित्सकों ने ही सोमवती को एम्स भोपाल दिखाने की सलाह दी। यह सलाह ही रोशनी की एक किरण थी। सरकारी खर्चे पर एम्स ले जाई गई सोमवती की जांच के बाद वहां के डाक्टरों ने आपरेशन का निर्णय लिया। अब सोमवती की रात सुबह में तब्दील होती नजर आ रही थी।
और बदल गई जिंदगी...
एम्स में नेत्र शल्यज्ञ और चाइल्ड स्पेशलिस्ट दोनों की उपलब्धता होने से सोमवती की निरंतर जांच और निगरानी शुरू हुई। इसके बाद 21 दिसंबर को उसका सफल आपरेशन हुआ। आपरेशन के बाद जब सोमवती की आंखों की पट्टी खुली तो उसके सामने एक नया जहां था, जहां उसे सबकुछ साफ साफ दिख रहा था। काफी समय बाद उसने अपने नाना का मुस्कुराता हुआ स्पष्ट चेहरा देखा था। अब उसे दुनिया धुंधली नहीं दिख रही थी। कुपोषण से जंग तो वह जीत ही चुकी थी, डायबिटीज को भी परास्त कर दिया है और मोतियाबिंद से भी बाहर निकल आई सोमवती अब कुपोषण की जंग की आदर्श सिपाही है। सोमवती के नाना की खुशी का ठिकाना नहीं है। कहते हैं मामा ने बचा लिया। कलेक्टर साहब का भी आभार मानते हैं। सबसे ज्यादा महिला बाल विकास टीम का धन्यवाद देते हैं। कहते हैं घर जैसा बिटिया को रखा। इसके बाद चहक कर बताते हैं कि ''अब हमहू इंसुलिन का जंक्शन (इंजेक्शन) लगाय लेइत है। अब बिटिया को कौनो दिक्कत न होई.....''
Published on:
23 Dec 2022 11:31 am
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