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MP के एक ऐसे विधायक की कहानी, जो कभी हेलीकॉप्टर से करते थे दौरे, आज कार बदलना भी मुश्किल

रैगांव से 1990 में प्रदेश के सबसे कम उम्र के विधायक थे धीरू, बोले, राजनीति ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा, सबकुछ गवां बैठा

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the story Dhirendra Singh Dheeru latest news in hindi

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शक्तिधर दुबे @ सतना। रैगांव विधानसभा क्षेत्र से सन् 1990 में विधायक चुने गए धीरेंद्र सिंह अर्से से सियासत के बुरे दौर से गुजर रहे हैं। 90 के सदन में धीरू प्रदेश के सबसे कम उम्र के निर्दलीय विधायक थे। 26 साल से भी कम। कार्यकाल खत्म होने के बाद फिर कभी मतदाताओं ने उन्हें विधानसभा नहीं भेजा। बावजूद, मर्हािर्ष महेश योगी की अजेय भारत पार्टी में बतौर प्रदेशाध्यक्ष हेलीकॉप्टर से दौरे करते थे। धीरे-धीरे उनके सियासी हालात बदतर होते गए।

धीरू मौजूदा समय में लगभग अकेले हैं। न सियासी जलवा है और न मिलने-जुलने वाले। औद्यौगिक क्षेत्र में ट्रैक्टर की तकरीबन बंद हो चुकी एजेंसी में सुबह से गुमशुम बैठे अतीत और भविष्य के बीच खोए रहते हैं। खस्ताहाल आर्थिक हालातों से एक अदद नई कार खरीदना भी मुश्किल है।

महर्षि की पार्टी भी नहीं आई रास
सियासी सफर में धीरू को महॢष महेश योगी का भी साथ मिला। योगी की अजेय भारत पार्टी ने बड़े सपने दिखाए। हवाई दौरों के लिए हेलीकाप्टर और भोपाल में आवास दिया। प्रदेशाध्यक्ष बतौर उन्होंने जबतक काम शुरू किया, पार्टी ही समाप्त कर दी गई। उनके समेत पार्टी के प्रत्याशियों को फूटी कौड़ी नहीं मिली। ज्यादातर तंगी में आ गए। इसबीच फिर मेनका सक्रिय हुईं। उन्होंने सन् 2002 में शक्तिदल बनाया। धीरू ने 2003 में रैगांव से चुनाव लड़ा, और हारे।

2013 में गोटेगांव से चुनाव लड़ा

उधर, मेनका ने भी सन् 2000-05 मेंं शक्तिदल खत्म कर दिया, भाजपा में शामिल हो गई। इधर, प्रदेश और जिले में धीरू की भाजपा में जमकर उपेक्षा और अपमान हुआ। लिहाजा, उन्होंने 2005 में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ज्वाइन कर ली। 2013 में गोटेगांव से चुनाव लड़ा। तभी शिक्षाकर्मी घोटाले के सिलसिले में जेल भेज दिए गए। अंतत: चुनाव हार गए। उसके बाद कोई दल ज्वाइन नहीं किया।

केवल मेनका को नेता माना
धीरू ने मेनका गांधी को छोड़ किसी और को नेता नहीं माना। सियासी जिंदगी की शुरुआत मेनका द्वारा गठित संजय विचार मंच से की। १९९० में जनता दल से रैगांव का टिकट मिला। पर, सिंबल चोरी के आरोप में निष्कासित कर दिए गए। लिहाजा, निर्दलीय लड़े। प्रचार में मेनका तीन दिन घूमीं।

1993 में निर्दलीय जिला पंचायत के अध्यक्ष

धीरू चुनाव जीत गए। उसके बाद जनता दल ने उन्हें वापस कर लिया। लेकिन, कुछ ही दिनों में जद दो फांक हो गया। 1993 में निर्दलीय जिला पंचायत के अध्यक्ष बने। और, 26 अगस्त 1994 को कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल की अगुवाई में कांग्रेस में शामिल हो गए। लोस और विस टिकट में टिकट का वादा पूरा न करने पर धीरू ने कांग्रेस भी छोड़ दी।

देखकर रास्ता बदल देते हैं लोग
पत्रिका से चर्चा में कहा, कभी सैकड़ों लोग मिलने का इंतजार करते थे। अब मोबाइल तक रिसीव नहीं करते। देखकर रास्ता बदल लेते हैं। हाल में 14 दिसंबर 2017 को संजय गांधी की जयंती पर मेनका गांधी से भी पीड़ा बताई। उन्होंने भी प्रतिक्रिया नहीं दी।