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बड़ा खुलासा: गांधी जी के बेटे ने अपनाया था इस्लाम धर्म, यहां पढ़ें पूरी खबर

बापू के बेटे हरिलाल गांधी ने अपना नाम बदलकर अब्दुल्ला रख लिया था...

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सतना

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Astha Awasthi

Dec 02, 2017

mahatma gandhi

mahatma gandhi

सतना। भारत के राष्ट्रपिता कहा जाने वाले महात्मा गांधी शायद दुनिया के पहले ऐसे राजनेता था जिसने हिंसा को राजनीतिक बदलाव के लिए गैर-जरूरी माना। दो अक्टूबर 1869 में गुजरात में जन्मे महात्मा गांधी को एक हिन्दू कट्टरपंथी ने 30 जनवरी 1948 को गोली मार दी थी। उन तीन गोलियों ने महात्मा के शरीर का तो अंत कर दिया लेकिन उनके विचार आज भी उतने ही समीचीन बने हुए हैं। नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग , बराक ओबामा और आंग सांग सू ची जैसे नेता महात्मा गांधी को अपना राजनीतिक प्रेरणास्रोत मानते हैं। गांधी के ‘सत्याग्रह और अहिंसा’ के सिद्धांतों ने आगे चलकर भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। उनके दर्शन की बदौलत भारत का डंका पूरा विश्‍व में बोला और उनके सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्‍वतंत्रता आंदोलन के लिये प्रेरित किया। उनके जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं अगर हम बात सतना की करें तो यहां के लोगों बड़े-बुजुर्गों के जेहन में कुछ स्मृति आज भी हैं। बापी अपने पूरे जीवन में सतना तो कभी नहीं आए लेकिन लेकिन यहां से होकर गुजरे जरुर थे, उस वक्त उनका बेटा हरिलाल सतना में ही था। उसके द्वारा इस्लाम धर्म अपना लेने के कारण बापू ने अपना मुहं फेर लिया था।

हतप्रभ रह गए थे बेटे को देखकर

फिल्म 'गांधी माय फादर' का वह दृश्य तो सभी को याद होगा जब ट्रेन में सवार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देखने उमड़ी भीड़ के बीच खड़े बेटे हरिलाल गांधी की ओर जैसे ही नजर जाती है वे हतप्रभ रह जाते हैं। वे साथ चलने की बात करते हैं, लेकिन ट्रेन के चलते समय हरिलाल गांधी काफी दूर तक प्लेटफार्म पर रेल के साथ दौड़ते हैं।

मां कस्तूरबा गांधी की जयकार

हरिलाल गांधी पिता की बजाय मां कस्तूरबा गांधी की जयकार बोलते हैं जबकि भीड़ गांधी जिंदाबाद के नारे लगा रही थी। यह सत्य घटना सतना से जुड़ी हुई थी। फिल्म के इस दृश्य के उलट महात्मा गांधी ने बेटे को देखकर मुंह फेर लिया था और आखिरी तक बात नहीं की थी।

1940-41 में गुजरे थे बापू

यह वाकया सन् 1940-41 का है। उस दौरान वे पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ मुम्बई-हावड़ा ट्रेन में मुम्बई से इलाहाबद जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए थे। उस समय उनके पुत्र हरिलाल सतना में ही थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि माता-पिता ट्रेन से आ रहे हैं वे भी मिलने की इच्छा के साथ सतना रेलवे स्टेशन पहुंच गए। भारी-भीड़ के बीच से वे पिता और मां के पास जाना चाह रहे थे।

हरिलाल गांधी से बने अब्दुल्ला

बापू के पुत्र हरिलाल गांधी ने इस्लाम धर्म अपनाने के बाद अपना नाम अब्दुल्ला रख लिया था। रोजना सुबह भैसा खाना के नजदीक स्थिति मस्जिद में नमाज अता करने जाते थे। वह मस्जिद आज भी मौजूद है। वह 3 महीने तक मैथलीशरण चौक में सेठ मौला बख्स की इमारत में ठहरे हुए थे। वहीं पास में एक होटल में खाना खाने जाते थे। आज न तो भवन है और न ही होटल।

खत्म हो गई थी प्लेटफार्म टिकट

सतना के इतिहासकार चिंतामणि मिश्रा बताते है कि बापू के सतना रेलवे स्टेशन से ट्रेन द्वारा गुरने की खबर जैसे ही सतनावासियों को लगी थी, अच्छी खासी भीड़ जाम हो गई थी। ट्रेन महज 15 मिनट रुकी, बापू की एक झलक देखने के लिए सतना रेलवे स्टेशन में इस कदर जन सलैब उमड़ा था कि स्टेशन के सारे प्लेटफार्म टिकट भी खत्म हो गए थे।

मां ने थामा बेटे का सिर

गांधी की नाराजगी के बाद भी मां का मन नहीं माना और कस्तूरबा गांधी ने बेटे का सिर थाम लिया। ट्रेन में बैठे-बैठे ही वे काफी देर तक बेटे का सिर सहलाती रहीं। सतना के इतिहास पर मेरा शहर मेरे लोग शीर्षक से किताब लिखने वाले चितामणि मिश्र कहते हैं यह किस्सा काफी सालों तक चर्चा में रहा। ट्रेन के चलने से पहले कस्तूरबा गांधी ने झोले से एक फल निकाला और बेटे का दे दिया।