
World sparrow Day News in hindi
सतना। हमारे घरों के भीतर-बाहर हमेशा मौजूद रही गौरैया अब न जाने कहां गुम सी हो गई है। उसकी चहक और पंखों की फडफ़ड़ाहट हमारे जेहन में रोजमर्रा की घरेलू आवाजों की तरह गूंजती थी। भोर में उसकी ची..ची.. की आवाज कानों में रस घोलती थी कि पूरा दिन ही सुहाना बन जाता था। आज न तो अल सुबह उसकी चहक सुनाई देती और न ही दोपहर में।
घर आंगन में बिखरे अनाज के दानों को चोंच में दबाकर अपने घोंसले तक उड़ान की आवाज... अब दूर-दूर तक सुनाई नहीं देती। वजह हमारे सामने है। इन वजहों के जिम्मेदार भी हम हैं। धरती पर करोड़ों प्रजातियों में से सिर्फ हम यानी मनुष्य एक ऐसी प्रजाति बन गए कि सहजीवी जीवन की विधा का ही बेड़ागर्ग कर दिया।
हम इतने विकसित हुए कि प्रकृति की हर मार को झेलने की तकनीक विकसित कर ले गए। पर इसका खामियाजा यह हुआ कि हम प्रकृति के वरदानों से भी बेराफ्ता होते गए। इसके दुष्परिणाम भी हमारे सामने हैं। हर घर में चहकने वाली गौरैया अब गिनती के मकानों तक सीमित रह गई।
क्यों न हम सभी फिर से इस नन्हीं चिडि़या को अपने घर की शोभा बनाना शुरू कर दें। क्यों न हम इन्हें अपने ही घर में एक छोटा आशियाना दे दें। वल्र्ड स्पेरो डे यानी गौरैया दिवस पर संकल्प लेकर हम अपनी प्रिय चिडिय़ा गौरया को बचाने का प्रयास शुरू करें।
एकजुट रह कर करना होगा प्रयास
एेसा नहीं कि शहर के लोग गौरेया को जीवित रखने का प्रयास नहीं कर रहे हैं। इनकी प्रजाति को एक दम से बचाने के लिए एकसाथ एकजुट होकर प्रयास की जरूरत है। मतलब अपना शहर तीन लाख आबादी का है। अगर 50 हजार लोगों ने भी ये ठान लिया कि गौरेया को बचाना है तो उन्हें बचाना बिल्कुल संभव है। बस कुछ नहीं करना, गर्मी के आते ही अपने घर के आंगन, छतों, बगीचे, बालकानी में एक मिट्टी का सकोरा रखना है। उसमें सुबह-शाम उनके लिए पानी डालना होगा। घर के ही कोने में एक छोटा सा कोना देना है जहां वह सुरक्षित तरीके से आराम कर सके।
प्रकृति को बचाने में भूमिका
जंगल चिडिय़ों की देन है। ये परिन्दे ही जंगल बसाते हैं। तमाम प्रजातियों के वृक्ष तो तभी उगते हैं जब कोई परिंदा इन वृक्षों के बीजों को खाता है। वह बीज उस पक्षी की आहारनाल से पाचन की प्रक्रिया से गुजर कर जब कहीं गिरते हैं तभी उनमें अंकुरण होता है। साथ ही फलों को खाकर धरती पर इधर-उधर बिखेरना और परागण की प्रक्रिया में सहयोग देना इन्हीं परिंदों का अप्रत्यक्ष योगदान है।
शहरीकरण छीन रहा इनका जीवन
किसी भी प्रजाति को खत्म करना हो तो उसके आवास और उसके भोजन को खत्म कर दो। यही तो हम सबने गौरैया के साथ किया। शहरीकरण, गांवों का बदलता स्वरूप, कृषि में रसायनिक खादें एंव जहरीले कीटनाशक गौरैया के खत्म होने के लिए जिम्मेदार बने। पेड़ों को काटना, इलेक्ट्रोमैग्निेशन रेडिएशन ये सब है इनकी विलुप्त होने का कारण। फि र भी प्रकृति ने हर जीव को विपरीत परिस्थितियों में जिंदा रहने की काबिलियत दी है और यही वजह है कि गौरेया कि चहक कुछ जगहों पर आज भी हम सुन पा रहे हैं।
एेसे बचाएं इस मेहमान को
अपने घरों में सुरक्षित स्थानों पर गौरैया के घोंसले बनाने वाली जगहों या मानव जनित लकड़ी या मिट्टी के घोंसले बनाकर लटकाए जा सकते हैं। इसके अलावा पानी और अनाज के साथ पकाए हुए अनाज का बिखराव कर हम इस चिडिय़ा को दोबारा अपने घर आंगन में बुला सकते हैं। पर इस दौरान ध्यान रखें कि उन्हें कुछ पल के लिए अकेला छोड़ दें। फिर देखिए उनकी चहक कैसे आपके कानों को द्रवित करती है।
प्रकृति के संरक्षण में गौरैया का अहम योगदान है। इसके न होने से पेड़ों की वृद्धि रुक जाएगी। यह हमें बीमारी से बचाती है। इसलिए इनका संरक्षण बेहद जरूरी है।
डॉ. महेंद्र तिवारी, एचओडी, एन्वायर्नमेंट डिपार्टमेंट
गौरैया को हाउस पैरो नाम दिया गया है, मतलब वह घर पर ही रहेगी। आजकल लोग घरों में जालियां लगा देते हैं जिससे पक्षी प्रवेश नहीं कर पाते। मोबाइल टॉवर का रेडिएशन भी इनके विलुप्त होने का कारण है। लोगों को घरों के बाहर अनाज के दाने और पानी रखने चाहिए ताकि इनका अस्तित्व बना रहे।
डॉ. संजीव रामपल्लीवार, पक्षी विशेषज्ञ, रीवा
वर्तमान परिवेश में विलुप्त पक्षियों की चहचहाहट से हम रूबरू नहीं हो पाते हैं। आधुनिकता और विकास की अंधी दौड़ ने इनके आशियाने को ही नष्ट कर दिया। पहले घर के आंगन में बैठी गौरया हमें न जाने कितने संदेश दे जाती थी, आज की पीढ़ी उसके लिए तरस रही है। मूल कारण पर्यावरण का असंतुलन एवं वर्तमान परिवेश है। हमें इनके संरक्षण के लिए आगे आना होगा।
डॉ. संदीप पांडेय, प्राध्यापक भौतिक इंजीनियरिंग कालेज,रीवा
करीब 20 वर्ष से हमारे यहां गर्मियों में हर दिन चिडि़यों के लिए पानी और दाने की व्यवस्था की जाती है। नतीजा यह हुआ कि सुबह शाम उनके यहां ढेर सारी चिडि़या चहचहाती हैं।
विजय मिश्रा, सतना
एक नजर इधर भी
- गौरेया एक सामाजिक प्राणी है।
- डेंगू, मलेरिया जैसे बीमारियों से बचाने में सहायक।
- यह हमें जीने की कला सिखाती है।
- सौभाग्य की -सूचक है।
Published on:
20 Mar 2018 11:53 am
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