छह माह में तैयार होगा नक्शा
बेंगलूरू में अभी मछली के जीवाश्म का अध्ययन किया जा रहा है। अध्ययन पूरा होने के बाद वैज्ञानिकों की टीम इसे नक्शे के रूप में ढालेगी। इसमें 6 माह तक का समय लग सकता है।
बेंगलूरू में अभी मछली के जीवाश्म का अध्ययन किया जा रहा है। अध्ययन पूरा होने के बाद वैज्ञानिकों की टीम इसे नक्शे के रूप में ढालेगी। इसमें 6 माह तक का समय लग सकता है।
मृत्यु के समय लिया था सैंपल
वन अधिकारियों ने बताया कि अगस्त 2016 में मछली की मौत के समय चिकित्सकों की टीम ने मछली के डीएनए का सैंपल लिया था। इस सैंपल को बाद में शोध कार्य के लिए बेंगलूरू के एनसीबीएस भेज दिया गया था।
वन अधिकारियों ने बताया कि अगस्त 2016 में मछली की मौत के समय चिकित्सकों की टीम ने मछली के डीएनए का सैंपल लिया था। इस सैंपल को बाद में शोध कार्य के लिए बेंगलूरू के एनसीबीएस भेज दिया गया था।
यह है उद्देश्य
वन अधिकारियों की माने तो इससे मछली के जीन प्रारूप को समझने में आसानी होगी। साथ ही रणथम्भौर व अन्य अभयारण्यों में बाघों के जेनेटिक डिसऑर्डर व बिगड़ते अनुपात के कारणों का भी खुलासा हो सकेगा।
वन अधिकारियों की माने तो इससे मछली के जीन प्रारूप को समझने में आसानी होगी। साथ ही रणथम्भौर व अन्य अभयारण्यों में बाघों के जेनेटिक डिसऑर्डर व बिगड़ते अनुपात के कारणों का भी खुलासा हो सकेगा।
इन चीजों का होगा अध्ययन
मछली के डीएनए से सैंपल से विशेषज्ञों की टीम मछली व मछली के वंशजों का मेटाबोलिज्म, ताकतें, सूंघने की क्षमता, पाचन शक्ति आदि का अन्य बाघ बाघिनों के साथ तुलना करेंगे।
मछली के डीएनए से सैंपल से विशेषज्ञों की टीम मछली व मछली के वंशजों का मेटाबोलिज्म, ताकतें, सूंघने की क्षमता, पाचन शक्ति आदि का अन्य बाघ बाघिनों के साथ तुलना करेंगे।
11 शावकों को दिया था जन्म
रणथम्भौर में मछली ने कुल 11 शावकों को जन्म दिया था। 20 साल तक जीवित रही मछली ने 2006 से 2016 तक पर्यटकों को खासा आकर्षित किया था। इन दस सालों में सरकार को सालाना करीब 65 करोड़ के राजस्व की आय हुई थी।
रणथम्भौर में मछली ने कुल 11 शावकों को जन्म दिया था। 20 साल तक जीवित रही मछली ने 2006 से 2016 तक पर्यटकों को खासा आकर्षित किया था। इन दस सालों में सरकार को सालाना करीब 65 करोड़ के राजस्व की आय हुई थी।