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ग्लोबल वार्मिंग से मिलेगी मुक्ति, ग्रीन हाउस गैस बनेंगी वरदान

कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड जैसे ग्रीन हाउस गैसों के चलते सूर्य की इंफ्रारेड किरणें धरती पर आ तो जाती हैं पर निकल नहीं पाती। इससे धरती का औसत तापमान बढ़ता है। जिससे धरती का ऋतु चक्र गड़बड़ा रहा है।

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Dhirendra Kumar Mishra

Jul 26, 2017

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measure relief from global warming, green house proves boom

जीवाश्म ईंधनों को जलाने से ऊर्जा मिलती है, पर इनकी मात्रा सीमित है व भविष्य में समाप्त हो जाएंगी। यह भी एक तथ्य है कि इन ईंधनों के जलने से कार्बन डाई ऑक्साइड गैस निकलती है, जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण है। लिहाजा वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हैं कि कार्बन डाईऑक्साइड को फिर से ईंधन में तब्दील कर दिया जाए, ताकि ईंधन की कमी न हो और वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा भी न बढ़े।



स्वटजरलैंड के छात्र मार्सेल ने किया कमाल
कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड को पानी में से बुलबुलों के रूप में एक उत्प्रेरक कॉपर ऑक्साइड पर से प्रवाहित किया जाता है और विद्युत धारा के रूप में ऊर्जा प्रदान की जाती है। इसमें दिक्कत यह आ रही थी कि विद्युत ऊर्जा का ज्यादा उपयोग कार्बन डाईऑक्साइड को कार्बन मोनोऑक्साइड में बदलने के बजाय पानी के अणुओं को तोडऩे में हो जाता था। लिहाजा इस क्रिया की कार्यक्षमता बहुत कम हो जाती थी। लौसाने स्थित स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र मार्सेल ने यह क्रिया कॉपर ऑक्साइड की पतली झ्ल्लिी को टिन ऑक्साइड के इलेक्ट्रोड पर फैलाकर किया। इस नए उत्प्रेरक ने पहले की अपेक्षा कार्बन डाईऑक्साइड को ज्यादा आसानी से तोड़कर कार्बन मोनोऑक्साइड में बदल दिया। टिन ऑक्साइड की वजह से कॉपर ऑक्साइड उत्प्रेरक पर से वे हॉटस्पॉट खत्म हो गए, जो पानी को तोड़ रहे थे। इससे इस क्रिया की कार्यक्षमता बढ़ गई।



अब ईंधन बनाने के काम आएगी सीओ2
पिछले साल अमरीका के ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने नैनो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से घुलनशील कार्बन डाई ऑक्साइड गैस को एथेनॉल में बदलने में कामयाबी हासिल की। जिससे ईंधन बनाया जा सकता है, तो एक दूसरे प्रयोग में अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा के शोधकर्ताओं ने कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण से वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड को जैविक पदार्थ में बदलने में सफलता हासिल की है। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन मुक्त होता है। इस जैविक पदार्थ का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में हो सकता है।



यह था पहला सफल प्रयोग...
सूर्य के प्रकाश को सोखने के लिए प्रो. नीबेल ने जीवधारियों के पावर हाउस (माइट्रोकोंड्रिया) में मिलने वाले प्रोटीन साइटोकोम सी का उपयोग किया। उन्होंने उनके लिए कुछेक नैनोमीटर पर लगी हीरे की असंख्य अतिसूक्ष्म कीलों वाली एक पीठिका बनाई। साइटोकोम सी वाले प्रोटीन अणु इन कीलों के बीच स्थान बनाते हैं। उन्हें खारे पानी से गीला रखा, तकि नष्ट न हों। धूप पडऩे पर इन प्रोटीन अणुओं के एलेक्ट्रॉन हीरे की नुकीली कीलों को आवेश देने लगते हैं।