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नई खोज: अब प्रयोगशाला में भी तैयार होगा मां का दूध, ब्रेस्ट मिल्क की तरह होंगे पोषक तत्व, जानिए बाजार में कब तक आएगा

अब मां के दूध की तरह ही पौष्टिक दूध प्रयोगशाला में तैयार हो सकेगा। वैज्ञानिकों ने इसे बॉयोमिल्क नाम दिया है। रिपोर्ट के, मुताबिक, बॉयोमिल्क में मौजूद पोषक तत्वों का प्रयोगशाला में परीक्षण भी किया गया है। बॉयोमिल्क में मां के दूध की तरह पोषक तत्व, फैटी एसिड, प्रोटीन और दूसरे वसायुक्त तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, इसकी पूरी कोशिश की गई है।  

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Ashutosh Pathak

Jun 06, 2021

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नई दिल्ली।

किसी भी नवजात के लिए मां का दूध न सिर्फ संपूर्ण बल्कि, सर्वोत्तम आहार भी माना गया है। जन्म के बाद से बच्चे को निर्धारित अवधि तक मां का दूध देने की सलाह दी जाती है। हालांकि, कई बार तमाम वजहों से मां के शरीर में दूध नहीं बनता, जिससे बच्चा इससे वंचित रह जाता है और उसके शरीर में शुरुआती दौर में जरूरी पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते।

अब ऐसे अभिभावकों के लिए अच्छी खबर है। मां का दूध यानी बे्रस्ट मिल्क अब प्रयोगशाला में भी तैयार हो सकेगा। इसमें भी मां के दूध की तरह पोषक तत्व मौजूद होंगे। इस दूध को बनाने वाली कंपनी ने यह भी बताया है कि इसे तैयार करने पर काम चल रहा है और अगले तीन साल में यह बाजार में उपलब्ध्या हो सकेगा।

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इस तकनीक की खोज अमरीका की महिला वैज्ञानिकों ने की है। इसके तहत अब मां के दूध की तरह ही पौष्टिक दूध प्रयोगशाला में तैयार हो सकेगा। वैज्ञानिकों ने इसे बॉयोमिल्क नाम दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बॉयोमिल्क में मौजूद पोषक तत्वों का प्रयोगशाला में परीक्षण भी किया गया है। बॉयोमिल्क में मां के दूध की तरह पोषक तत्व, फैटी एसिड, प्रोटीन और दूसरे वसायुक्त तत्व पर्याप्त मात्रा में मौजूद हो, इसकी पूरी कोशिश की गई है। वैसे, वैज्ञानिक यह भी दावा कर रहे हैं कि बॉयोमिल्क में मौजूद पोषक तत्व मां के दूध से भी अधिक है।

बॉयोमिल्क को जो कंपनी बना रही है, उसकी सह-संस्थापक और चीफ साइंटिस्ट लैला स्ट्रिकलैंड ने बताया कि दूध में एंटीबॉडी भले ही मौजूद नहीं है, लेकिन इसकी न्यूट्रिशनल और बॉयोएक्टिव कंपोजीशन किसी भी दूसरे उत्पाद के मुकाबले अधिक हैं। उन्होंने बताया कि बॉयोमिल्क बनाने की योजना उनके दिमाग में तब आई, जब उनका बच्चा समय से पहले पैदा हो गया। तब तक उनके शरीर में बे्रस्ट मिल्क बनना शुरू नहीं हुआ था। ऐसे में लैला को अपने बच्चे को दूध के जरिए पोषक तत्व देने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

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लैला ने इस बारे में कई कोशिशें की, मगर सब बेकार रहीं। तब उन्होंने वर्ष 2013 में प्रयोग में मेमरी कोशिकाओं को बनाया। इसके बाद वर्ष 2019 में उन्होंने फूड साइंटिस्ट मिशेल इग्गेर के साथ मिलकर इस प्रयोग पर और अधिक काम किया। उनका दावा है कि अगले तीन में इस दूध को बाजार में उपलब्ध कराने की योजना पर काम चल रहा है।