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Pench tiger reserve: पेंच टाइगर रिजर्व में खतरे में वन्य जीव, बढ़ रहा इंसानों का दखल

पेंच टाइगर रिजर्व में खतरे में वन्य जीव, बढ़ रहा इंसानों का दखल

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Under the State Tiger Transfer Project, tigresses will be sent from Uttarakhand to Rajasthan

उत्तराखंड से बाघिन राजस्थान भेजी जाएगी

सिवनी. जिला पेंच टाइगर रिजर्व के कारण पूरे विश्व में विख्यात है। पेंच टाइगर रिजर्व मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर नेशनल हाईवे-44 में स्थित खवासा से 15 किलोमीटर अंदर पड़ता है। यहां बाघ के साथ-साथ अन्य जीव जंतु देखे जा सकते हैं। हर साल पेंच टाइगर रिजर्व में बाघों संख्या बढ़ रही है। हालांकि जंगल में बढ़ते इंसानी दखल से बाघ अब रहवासी क्षेत्र में पहुंच रहे हैं। बीते छह माह में बाघों ने आधा दर्जन से अधिक बार ग्रामीणों पर हमला किया है। वन विभाग से जुड़े जानकारों का कहना है कि भले ही हमारे पेंच टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन हमारे पास इन्हें जंगल में ही सीमित रखने के लिए कोई मास्टर प्लान नहीं है। दूसरी तरफ पेंच टाइगर रिजर्व के अंतर्गत खवासा, तुरिया, करमाझिरी, जुमतरा में वन भूमि पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। पिछले दस वर्ष की बात करें तो टाइगर रिजर्व के आसपास के क्षेत्रों में काफी रिसॉट्र्स के निर्माण के कारण जंगली जानवरों का जीवन खतरे में पड़ गया है। वह दिन दूर नहीं जब बाघ शहरों की तरफ रूख करेंगे। इसका सबसे बड़ा कारण जंगल में वन संपदा खत्म होती जा रही है। पेड़ों पर कुल्हाड़ी चल रही है और व्यावसायिक उपयोग बढ़ता जा रहा है। पेंच टाइगर रिजर्व में सफारी की संख्या भी बढ़ गई है। ऐसे में बाघों को दिक्कत होने लगी है।

रिसॉर्ट की संख्या पर नहीं लग रहा ब्रेक
पेंच टाइगर रिजर्व में बीते कुछ वर्षों में रिर्सार्ट की संख्या भी बढ़ी है। जहां बाघों की जगह थी वहां अब लोग व्यावसायिक उपयोग कर रहे हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए सफारी की संख्या भी बढ़ गई है। रिसॉट्र्स में सुबह से लेकर देर रात तक पार्टी सहित अन्य कार्यक्रम हो रहे हैं। तेज आवाज में डीजे साउंड बजाया जा रहा है। आतिशबाजी भी हो रही है। ऐसे में अब बाघ भी लोगों के घरों तक पहुंच रहे हैं। साल 2010 में बाघों की संख्या 65 हो गई थी, लेकिन 2014 में पेंच टाइगर रिजर्व में 43 बाघों की मौजूदगी पाई गई थी। वहीं साल 2018 में बाघों की संख्या 65 पाई गई थी। साल 2022 में बाघों की संख्या 123 हो गई। यह संख्या उनकी है जो पेंच के साथ ही अन्य जंगलों का इस्तेमाल करते हैं।

अपशिष्ट पदाथों की व्यवस्था नहीं
पेंच टाइगर रिजर्व क्षेत्र में रिसॉर्ट संचालकों के पास रिसॉट्र्स से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं है। वे अपशिष्ट पदाथों को जंगल में ही फेंक रहे हैं।

बढ़ रहा आक्रोश
पेंच टाइगर रिजर्व के कुरई क्षेत्र में बीते दिन एक 63 वर्षीय किसान को बाघ ने अपना शिकार बनाया था। उस मामले में स्थानीय लोगों ने वन विभाग अमले एवं पुलिस की गाडिय़ों पर तोडफ़ोड़ की थी। लोगों का जंगलों पर और बाघों का गांवों पर दखल बढ़ता जा रहा है। ग्रामीण भी आक्रोशित हो रहे हैं। ऐसे में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि बाघ अपने जंगल तक और लोगों का जंगल पर दखल कम से कम हो। इसके लिए मास्टर प्लान बनाना होगा। जिससे आगामी भविष्य में बाघों को कोई परेशानी न हो। उन्हें भोजन एवं रहने को घर मिले। अगर ऐसा नहीं होगा तो परिणाम भयावह देखने को मिलेंगे।

एनजीटी ने बनाई है जांच समिति
एनजीटी ने पेंच टाइगर रिजर्व में बढ़ते अतिक्रमण और अवांछित गतिविधियों से वन्य जीवों पर पड़ रहे प्रभावों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है। समिति को निरीक्षण कर छह सप्ताह में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही वन विभाग से भी जवाब मांगा गया है। दरअसल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीअी सेंट्रल जोन बेंच ने यह निर्देश दिए हैं। समिति में टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर, प्रमुख सचिव वन और मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है। संभवत: समिति मार्च माह में अपनी रिपोर्ट दे देगी।

इनका कहना है…
रिसॉर्ट जंगल में नहीं गांव में है। यह बात सही है कि आतिशबाजी, शोर की वजह से जानवर डिस्टर्ब होते हैं। अब तक जो भी हादसे हुए हैं वे गांव और जंगल की सीमा में हुए हैं। अगर सावधानी रखेंगे तो दुर्घटनाएं भी नहीं होंगी। समिति की जांच चल रही है।

रजनीश सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, पेंच टाइगर रिजर्व