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जानिए कितने साल पुराना है बाणगंगा मेले का इतिहास, और कैसे हुई इसकी शुरुआत

कभी मुनादी कराकर किया जाता था इस मेेले का प्रचार, अब हर जगह है फेमस

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Know how old is the history of Banganga fair and how it started

Know how old is the history of Banganga fair and how it started

शहडोल- संभाग का सबसे बड़ा और फेमस मेला है बाणगंगा का मेला, संभाग ही क्या इसके बाहर से भी लोग इस मेले में शामिल होने आते हैं। ये मेला अपने आप में सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए है। इस मेलेे की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है ये मेला जो पूरे 5 दिन तक चलता है।

IMAGE CREDIT: patrika

125 साल पुराना है ये मेला
बांण गंगा मेले का नाम आते ही जहन मे 125 वर्ष पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। इस मेले की शुरूआत तात्कालीन रीवा महाराजा गुलाब सिंह ने 1895 मे कराई थी। तब से बांणगंगा मे निरंतर मेले की परांपरा चली आ रही है। मेले का उदेश्य स्नान, दान व पुण्य की मिसाल कल्चुरी कालीन एक हजार पहले बने विराट मंदिर के प्रांगण में अपनी अमिट छाप छोड़ रही है।

मेले का स्वरूप भी रहट से आकाशीय झूले तक पहुंच चुका है। मेले में लोगों का मेल मिलाप और उत्साह पुरानी रीति रिवाज को समेटे हुए आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का गवाह बना हुआ है। जब मेले की शुरुआत हुई थी तब तीन दिन तक ही मेला रहता था। जो अब 5 दिन तक भरने लगा है।

ऐेसे हुई बाणगंगा मेले की शुरुआत
जानकार बताते हैं कि मेला आयोजन के लिए महाराजा गुलाब सिंह ने एक कमेटी बनाई थी। जिसमें सोहागपुर इलाकेदार राजेन्द्र सिंह शारदा कटारे,व ठाकुर साधू सिंह शामिल रहे। इन्हें सोहागपुर इलाकेदार का नजदीकभी माना जाता था। इसी कमेटी ने बांणगंगा में मेला लगाने का प्रस्ताव पास किया गया। और इस मेले का प्रचार प्रसार करने के लिए गांव-गांव डुग्गी (मुनादी कराना) पिटवाकर प्रचार-प्रसार किया गया। उस जमाने में भी रहट झूले का चलन था। जो अपनी आवाज के लिए लोगों के बीच एक खास पहचान रखता था। बदलते वक्त के साथ अब मेले ने भी आधुनिक रूप ले लिया है। भजन कीर्तन से लेकर कवि सम्मेलन,नृत्य मंण्डली मेले मे मनोरंजन का साधन बन रही हैं।

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यहां का विराट मंदिर है खास
बांणगंगा मेले में विराट मंदिर देखने की ललक लोगो को दूर-दूर से खींच लाती है। विराट मंदिर एक हजार वर्ष पुराना है। इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं। 9वीं 10वी शताब्दी में इसे कर्चुली शासक युवराज देव प्रथम ने बनवाया था। उन्होंने अपने राज्य क्षेत्र में 84 हजार इस तरह के मंदिर बनबवाने का संकल्प लिया था। लेकिन दो ही मंदिर बनवा सके। जिसमें एक विराट मंदिर और दूसरा उमारिया जिले का मढ़ीबाग मंदिर शामिल है। इन दोनों ही मंदिरो में भगवान भोले नाथ विराजमान हैं। जिनके दरबार में मकर संकाति पर्व पर मेला लगता है। इसके बाद युवराज प्रथम के पुत्र अमरकंटक में कर्ण मंदिर और जबलपुर के भेड़ाघाट में 64 योगिनी और शहडोल जिले में अंतरा मंदिर बनवाया। जो कर्चुली कालीन की पहचान बने है।

पहले बांणगंगा का पानी होता था खास
विद्यावाचस्पति डॉ. राजेश उपाध्याय जो इतिहासकार भी हैं बताते हैं कि बाणगंगा मेले को महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू करवाया था, वो पिछले कई साल से मेले को देखते आ रहे हैं, इसको महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू करवाया था। बाणगंगा कुंड के पानी का औषधीय महत्व था, लेकिन अब बाणगंगा का पानी खराब हो गया है। कुंड में बाहर का पानी डालने से बाण गंगा का पानी का औषधीय महत्व नहीं रह गया।