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जिस जगह पर आ रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी, यहां के महलों की है दिलचस्प कहानियां

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PM Modi coming in Mandla, Read intresting stories 2018

शहडोल- प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी मंडला जिले के रामनगर में आ रहे हैं। जहां उनका कार्यक्रम 24 अप्रैल को प्रस्तावित है। जिसकी तैयारियां तेज कर दी गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के इस आदिवासी अंचल में आने की खबर से ही पूरे अंचल में खुशी की लहर है। लेकिन क्या आपको पता है रामनगर के जिस गांव में प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी आ रहे हैं, वो जगह बहुत खास है। वहां बनी ऐतिहासिक महलों की कहानियां बहुत फेमस हैं। इतना ही नहीं इन महलों का पुरातात्विक महत्व भी बहुत है। इन ऐतिहासिक महलों को लेकर बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं, जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे।

यहां है रामनगर
रामनगर वो खास जगह है जहां प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आ रहे हैं। ग्राम पंचायत रामनगर मंडला जिले में है जो विखासखंड बिछिया के अंतर्गत आता है, और मंडला जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 20 किलोमीटर है।

किलों की कहानी
मंडला जिले में रामनगर एक ऐसी जगह है जहां मोतीमहल, बेगम महल, और रायभगत की कोठी, ये सभी बहुत प्रचलित हैं। और इन्हें लेकर कई कहानियां भी फेमस हैं। कहते हैं महल के निर्माण के लिए राजा हृदयशाह ने पत्थरों को बुलाया था, तंत्रशक्ति के जोर पर ये पत्थर हवा में उड़कर निर्माण स्थल तक पहुंचे थे।

दरअसल अष्टफलक पत्थरों का पहाड़ रामनगर किले से करीब 4 किलोमीटर है, गौड़काल में इस पहाड़ के पत्थरों का उपयोग महल निर्माण के लिए किया गया था। यहां पुराने जानकार स्थानीय लोगों का कहना है कि जब इन किलों का निर्माण हुआ था, तो ये पत्थर पहाड़ी से उड़कर यहां आए थे। इनका कहना है कि गौड़ शासनकाल में परिवहन के साधन नहीं थे, भारी पत्थरों को लाने ले जाने में सालों गुजर जाते, जबकि महल का निर्माण महज ढाई दिन में हुआ था। हलांकि इतिहासकार इस बात को सिरे से खारिज करते हैं। इतिहासकारों का कहना है कि पत्थर कहीं बाहर से मंगाए गए थे। जितनी जरूरत थी उनके पत्थर उपयोग किए गए बाकी के पत्थर आज भी काली पहाड़ी में हैं।

मोतीमहल, बेगम महल और रायभगत की कोठी का निर्माण काली पहाड़ी के अष्टफलक पत्थरों से हुआ था। रामनगर के लोगों का कहना है कि राजा हृदयशाह ने रामनगर में अपना महल बनाने के लिए तंत्र शक्ति से पत्थरों का भंडारण किया था। इन्हीं काले पत्थरों से महज ढाई दिनों में विशाल मोतीमहल, बेगममहल और रायभगत की कोठी का निर्माण कराया गया था।